Friday, April 24, 2020

मेरी करूणा भरी पुकार स्वामी सुन लेना




मेरी करुणा भरी  पुकार, स्वामी सुन लेना ।।टेर।।

गुण अवगुण करना माफ़, ध्यान तुम धर लेना ।
मैं निरलज नीच अपार, फिर भी संग रहना ।
मैं गया  जगत से हार , सुध बुध दे देना ।
मैं जतन करूं हर बार, गिरने मत देना ।
 लोभ लालच ने पकड़ा है हाथ ,ध्यान तुम धर लेना।
मैं नित नित करूं पुकार,अरज तुम सुन लेना ।
देवे काल थपेड़े  आय, मुझको बचा लेना ।
मैं निरगुण नीच अपार, फिर भी संग रहना ।
लोभ लालच ने घेरा आय ,दया तुम कर देना ।
मेरे अवगुण इतने नाथ, गिनती मत करना ।
मेरी करुणा भरी पुकार, स्वामी सुन लेना (१)
घट अंतर पर्दा  खोल , दरशन दे देना ।
मेरे गुण अवगुण सब माफ, स्वामी कर देना ।
मैंने किए जनम सब पाप, स्वामी हर लेना ।
तुम दीन बंधु भगवान , सदा मेरे संग रहना ।
कोइ गलती हो जाये नाथ ,माफ़ तुम कर देना ।
मन में अंधियारा होय , दीप तुम जला देना ।
मैं गया सभी से  हार ,बस संग तुम रहना ।
मेरे दिल दरपन में झांक ,कुछ मत कह देना ।
माया का मैं मोहताज़ R,उस से बचा लेना ।
परदेसी साजन आप ,फिर भी आ जाना ।
मैं दीन गरीब हूँ नाथ , इतना कर देना ।
शक्ति और भक्ति नाथ,मुझको दे देना ।
कई जनम ग नाथ,अब तो सुन लेना ।
तेरे शब्द बड़े अनमोल ,मुझको दे देना ।
 बस एक तुम्ही से आश,निराशा मत देना ।
यह करुणा भरी पुकार,स्वामी सुन लेना(२)
                      *राधास्वामी*
बहन शकुन्तला लखेरा चावण्डिया द्वारा रचित -विनती



**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- सत्संग के उपदेश -भाग 1- कल से आगे - वेदसर्वस्य ग्रंथ में लिखा है-" जभी यह देखने में आता है कि सब शाखा ग्रंथो में कोई ग्रंथ व्याख्यान और व्याख्येय नहीं है किंतु काचित्क पाठभेद और पाठ न्यूनाधिक को छोड़कर सब एक दूसरे के समान है तब 1131 में से चार व्याख्या और शेष 1127 व्याख्यान है यह कल्पना करना और मानना कैसे समझा जा सकता है।" ग्रंथकर्ताओं की राय में अध्यापक या अध्येता के भेद से पाठ के भेद या मंत्रों की कमी पेशी का नाम शाखा है क्योंकि शाखग्रंथों में इनके सिवा कोई दूसरा फर्क मालूम नहीं होता। खैर! शाखा का अर्थ कुछ भी हो लेकिन यह तस्लीम करना होगा कि न मून वेदो का मामला तय है न उनकी शाखाओं का और न उनकी तादाद का । इसी तरह भाष्यों के मुतअल्लिक़ हर कोई जानता है कि महीधर भाष्य में वैदिक मंत्रो को सख्त गंदे मानी पहनाये गए है। सायाणआचार्य एक अर्थ करते हैं स्वामी दयानंद जी दूसरे; किसे सही मानें किसे गलत माने। ईश्वर ने सृष्टि के आदि में वेद भगवान प्रकट करने की कृपा फरमाई लेकिन अफसोस! उनके असली मंत्र व अर्थ दुनिया में सदा प्रचलित रखने के लिए इंतजाम न फरमाया। हमारी राय है कि अगर वाकई वेद ईश्वरीय ज्ञान है तो उनके अर्थो को कोई ईश्वरकोटी मनुष्य ही समझ व समझा सकता है। अगर श्रद्धालु भक्त वेद के ग्रंथ मोल लेकर उनकी पूजा किया करें तो हरचंद ऐसा करना पाप नहीं है लेकिन ऐसा करने से लोगों को वेदों के अंदर बयान किये हुए रहस्य का न कुछ पता नहीं चल सकता है और न कुछ लाभ हो सकता है । क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**




 **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- रोजाना वाक्यात -27 अगस्त 1932 -शनिवार:- सरदार लक्ष्मण सिंह साहब जो नामधारी पंथ के एक बड़े स्तंभ है दयालबाग हाय हुए हैं। उनसे मालूम हुआ कि नामधारी संगत के दिल में राधास्वामी मत के लिए बहुत श्रद्धा है। मैंने दिल से शुक्रिया अदा किया कि ऐसे लफ्ज सुनने में तो आये। नामधारी पंथ के गुरु साहब से लुधियाना में मुलाकात हुई थी। निहायत सादा मिजाज और तपस्वी मालूम होते हैं। नामधारी पंथ अनुयायियों को मालूम हो कि हमारा दिल उनकी संगत के लिए पूरी श्रद्धा व प्रेम रखता है।।                  रात के सत्संग में रूहानियत के मानी और पहुंचे हुए पुरुषों की चंद पहचाने ब्यान हुई। बाज लोग प्रेम या बिरह के शब्दों का पाठ सुनकर रोने लगते हैं । बार जोर से सर हिलाने लगते हैं ।बाज लंबी-लंबी मालाएं गले में पहने फिरत हैं बाज ढीले ढाले वस्त्र धारण कर लेते हैं। इनमें से एक भी अंतरी गति का निशान नहीं है। जैसे बिजली के छूने से बिजली की कुव्वत और गर्म चीज के स्पर्श करने से उसकी हरारत छूने वाले के अंदर प्रवेश कर जाती है ऐसे ही अंतर में किसी धाम के धनी तक पहुंच हासिल होने पर उसकी गुण अभ्यासी के अंदर आ जाती है और किसी ने सच्चे मालिक का साक्षात्कार किया है तो उसका आत्मा मामूली आत्मा नहीं रह जाता। उसके अंदर मालिक की सी सिफ्त नजर आने लगती है।  यह निहायत   गंभीरता से जिंदगी बसर करता है उसकी हर बात सुनो और बकायदा होती है । वह वादा का सच्चा और कौल का पक्का होता है। वह  जब मौका पडे सच्ची बात कहने से कतई खौफ नही खाता।वह अपनी जिंदगी का एक मिनट नष्ट नहीं करता। वह हमेशा प्रेम के रंग में रंगा दिखाई देता है। मुश्किल से मुश्किल काम निहायत आसानी से पूर्णता कर देता है। वह संसार सागर में रहता है लेकिन लकड़ी के टुकड़े की तरह हमेशा उसकी सतह पर तैरता है।🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**





परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- सत्संग के उपदेश- भाग दो- शुरू में अपनेतई आद्दी बनाने के लिए समय का मुकर्रर करना जरूरी है और नीज दुनियावी कामकाज के झमेलो और मन की कमजोरियों से बचने के लिए हमेशा मुकर्ररा वक्तों पर अभ्यास में बैठना मुफीद है लेकिन साथही यह भी याद रखना चाहिए कि वह सच्चा मालिक, जिसकी पूजा की जाती है, किसी वक्त गाफिल नहीं होता और ना ही किसी वक्त खास वक्त अपने भक्तों की तरफ खासतौर पर मुखातिब होता है। उसका दरवाजा 24 घंटे खुला रहता है और वह हर वक्त दया व बक्शीश करने के लिए तैयार रहता है। समय नीयत करने की जरूरत हमारी अपनी कमजोरियों की वजह से पैदा होती है न कि सच्चे मालिक के समयविभाग के कारण।  इस बयान से जाहिर है कि अगर कोई शख्स दिन रात में सिर्फ एक मरतबा मालिक की याद में हो और अपनी तवज्जुह अंतर में जोड़ लें तो वह शख्स उन लोगों से, जो दिन में 5-7 मर्तबा नमाज पढ़ते हैं लेकिन अपनी तवज्जुह पर काबू नहीं रख सकते, हजार दर्जे नफे में है । लेकिन अगर यह लोग 5-7 मर्तबा की नमाज में हरबार या अक्सर अपनी तवज्जुह अंतर में जोड़ लेते हैं तो ये नफा में है । क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻
[11/04, 01:56] Mamta Vodafone: **परम गुरु हूजूर महाराज-प्रेमपत्र-भाग-1,(16)-【वर्णन दर्जों का जो संतो ने रचना में मुखर्रर किये है और बडाई संत मत की】:- (1) राधास्वामी दयाल ने जो दर्जे रचना में वर्णन किए हैं अथवा जो स्थानों का भेद दिया है, उसको सही मानना चाहिए और उसकी प्रतीति करके उसके मुहाफिक अभ्यास में चाल चलनी चाहिए और धुर स्थान का पूरा पूरा यकीन करके वहां के पहुंचने का इरादा सच्चा और पक्का मन में धरना चाहिए।।                            (2) एक दृष्टांत दिया जाता है उससे हाल कुल दर्जो का जो राधास्वामी दयाल ने वर्णन किया है अच्छी तरह समझ में आ सकता है। तिल का जो दरख्त है उसके देखने से मालूम होता है कि उसकी जाहिरी सूरत स्थूल रूप में दाखिल है और अंतर में जो रस की जड़ से डाली और पत्तों तक रगों में होकर जारी रहता है वह उसका सूक्ष्म रूप है और बीज उसका कारण रूप है, और जिस वक्त की बीज को पेला यानी उसका मंथन किया तब उसके तेल प्रगट हुआ और स्थूल और कारण रुप के खोल खल रूप होकर जुदा हो गए। यह तेल तुरिया रुप है ।जब उसका भी मंथन किया गया यानी उसको रोशन किया तब उसकी रोशनी कि लौं में यह दर्जे जाहिर होते हैं।  (१) पहले सफेद और साफ रोशनी। यह दयाल देश का रूप है और इसका जो आखिरी सिरा ऊपर की तरफ को है वह सुन्न के मुकाम से मेल रखता है या वह सुन्न के स्थान का बताने वाला है ।और बाकी सफेद रोशनी में दयाल देश की रचना के दर्जे गुप्त है।।         (२) और जहां से कि सफेदी के ऊपर सुर्खी शुरू हुई, वह त्रिकुटी का नमूना है।                            ( 3) और जहां से कि सुर्खी के ऊपर पीली रोशनी हरे रंग से मिली हुई शुरू हुई, वह सहसदलकमल  का नमूना है क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**



*💐👳🏼‍♀कबीर जी की पगड़ी👳🏼‍♀💐💐*



        *एक बार संत कबीर ने बड़ी कुशलता से पगड़ी बनाई। झीना- झीना कपडा बुना और उसे गोलाई में लपेटा। हो गई पगड़ी तैयार। वह पगड़ी जिसे हर कोई बड़ी शान से अपने सिर सजाता हैं। यह नई नवेली पगड़ी लेकर संत कबीर दुनिया की हाट में जा बैठे। ऊँची- ऊँची पुकार उठाई- 'शानदार पगड़ी! जानदार पगड़ी! दो टके की भाई! दो टके की भाई!'*

      *एक खरीददार निकट आया। उसने घुमा- घुमाकर पगड़ी का निरीक्षण किया। फिर कबीर जी से प्रश्न किया- 'क्यों महाशय एक टके में दोगे क्या?' कबीर जी ने अस्वीकार कर दिया- 'न भाई! दो टके की है। दो टके में ही सौदा होना चाहिए।' खरीददार भी नट गया। पगड़ी छोड़कर आगे बढ़ गया। यही प्रतिक्रिया हर खरीददार की रही।*

       *सुबह से शाम हो गई। कबीर जी अपनी पगड़ी बगल में दबाकर खाली जेब वापिस लौट आए। थके- माँदे कदमों से घर- आँगन में प्रवेश करने ही वाले थे कि तभी... एक पड़ोसी से भेंट हो गई। उसकी दृष्टि पगड़ी पर पड गई। 'क्या हुआ संत जी, इसकी बिक्री नहीं हुई?'- पड़ोसी ने जिज्ञासा की। कबीर जी ने दिन भर का क्रम कह सुनाया। पड़ोसी ने कबीर जी से पगड़ी ले ली- 'आप इसे बेचने की सेवा मुझे दे दीजिए। मैं कल प्रातः ही बाजार चला जाऊँगा।'*

     *अगली सुबह... कबीर जी के पड़ोसी ने ऊँची- ऊँची बोली लगाई- 'शानदार पगड़ी! जानदार पगड़ी! आठ टके की भाई! आठ टके की भाई!' पहला खरीददार निकट आया, बोला- 'बड़ी महंगी पगड़ी हैं! दिखाना जरा!'*

*पडोसी- पगड़ी भी तो शानदार है। ऐसी और कही नहीं मिलेगी।*

*खरीददार- ठीक दाम लगा  लो, भईया।*

*पड़ोसी- चलो, आपके लिए- सात टका लगा देते हैं।*

*खरीददार - ये लो छः टका। पगड़ी दे दो।*

    *एक घंटे के भीतर- भीतर पड़ोसी पगड़ी बेचकर वापस लौट आया। कबीर जी के चरणों में छः टके अर्पित किए। पैसे देखकर कबीर जी के मुख से अनायास ही निकल पड़ा-*

*सत्य गया पाताल में,*
          *झूठ रहा जग छाए।*
*दो टके की पगड़ी,*
        *छः टके में जाए।।*

   *यही इस जगत का व्यावहारिक सत्य है। सत्य के पारखी इस जगत में बहुत कम होते हैं। संसार में अक्सर सत्य का सही मूल्य नहीं मिलता, लेकिन असत्य बहुत ज्यादा कीमत पर बिकता हैं। इसलिए कबीर जी ने कहा-*

*'सच्चे का कोई ग्राहक नाही, झूठा जगत पतीजै जी।*






*सदैव प्रसन्न रहिये!!*
🙏*जो प्राप्त है-पर्याप्त है!!🙏




**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- रोजाना वाकियात- 6 सितंबर 1932- मंगलवार:- सुबह होते ही मद्रास स्टेशन आया। ठहराव के लिये विश्राम स्थल पर पहुचे। सतसंगी भाई जमा थे।  परंपराअनुसार सुबह का सत्संग हुआ ।और फैसला किया गया कि शाम के वक्त मुक्तावली से "स्वामी सेवक संवाद" के अर्थ बयान किये जावें।  शाम के सत्संग में तीन प्रश्नों के उत्तरों का तात्पर्य अंग्रेजी जबान में बयान किया गया। 2 मद्रासी भाई उसका तेलुगु में अनुवाद करते रहे ।और एक भाई मुक्तावली से तेलगु इबारत का पाठ करता रहा है।  इस सम्वाद में राधास्वामी मत की कुल  तालीम का निचोड़ मौजूद है।  और ऐसे आसान शैली में बयान हुआ कि मुतलाशियों को बआसानी समझ में आ सकता है।।                           थोड़ी देर बाद सेठ चमरिया भी कलकत्ता से आ गए और उनसे फिल्म इंडस्ट्रीज के मुतअल्लिक़ बहुत सी बातें कि। उन्होंने बतलाया कि उन्होंने कुल सिनेमा हाउसेज की 1/4  आमदनी सतसंग सभा के नाम उत्सर्ग कर दी है। अब सभा दिल खोलकर टेक्निकल तालीम के लिए इंतजाम करें और टेक्निकल कॉलेज दयालबाग को तरक्की दे। मैंने शुक्रिया अदा किया और कहा 4-6 माह आमदनी का हाल देख कर फैसला करेंगे कि हमें उसके इस्तेमाल के लिए क्या करना चाहिए। एक जरूरत तो नहर की है दूसरे सूत कातने के कारखाने की। और तीसरी अनुबंध के अनुसार 6 लाख यूनिट बिजली खर्च में लाने की। यह जरूरतेदूर होने पर  कॉलेज की तरक्की के मुतअल्लिक़ कोई ख्याल उठाया जा सकता है। उनकी राय यही हुई कि अव्वल कारखानाजात को तरक्की दी जाय। ऐसा करने से आमदनी भी बढ़ेगी और बिजली के इस्तेमाल के लिए भी सूरत निकल आवेगी । आखिर में मैंने समझाया कि जब तक आपका दिमाग ठंडा और दिल साफ रहेगा आपको अपने काम में हर तरह की सहूलियत रहेगी। और जिस दिन दिल व दिमाग में फर्क आया आपके लिये यह सब काम परेशानी की सूरत पैदा करेगा।।                         शाम के वक्त चंद मिनटों के लिए सिनेमा हाउस देखने गए। लैला मजनूँ फिल्म दिखाई जा रही थी। मालूम हुआ कि इस फिल्म ने लोगों के दिलों को जीत लिया है। चौथी मर्तबा यह फिल्म मद्रास में आई है । 6 दिन से चल रही है। दिन में दो दफा दिखलाई जाती है लेकिन तो भी हाल भरा हुआ है। क्या फिल्मों के जरिए इस मुल्क में नेक व लाभकारी ख्यालात फैलाकर नौजवानों के दिलों में प्रकट परिवर्तन नहीं कर सकते? जरूर कर सकते हैं।

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**




: **परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र-
भाग-1-( 18
) -

【 जो लोग कि सिवाय संत मत के अभ्यास के और और काम कर रहे है,उनको क्या फायदा होगा?】

-(1) जो परमार्थी की कार्यवाही आजकल दुनिया में जारी है वह या तो (१) कर्मकांड या दान पुण्य (२) तीरथ और मूरत और निशानों की पूजा (३) ब्रत (४)  नाम का जाप (५) हट योग (६) प्राणायाम (७) ध्यान (८) मुद्रा की साधना (९) वाचक ज्ञान (१०) या पोथी और ग्रंथ का पाठ करना और मन से अस्तुति गाना और प्रार्थना करना वगैरह है।

इन साधनों से संतों के बचध के मुआफिअ जीव के सच्चे उद्धार के सूरत नजर नहीं आती, क्योंकि इन कामों में मालिक के चरणो का प्रेम और उसके दर्शन की चाह बिल्कुल नहीं पाई जाती। अब हर एक का हाल थोड़ा सा लिखा जाता है।। 

                

(१)-【 कर्मकांड और दान पुण्य 】-जो जीव इध कामों में बरत रहे हैं, चाहे जिस मत में होवें, उनका मतलब इन कामों के करने से या तो इस दुनियाँ के सुख और मान बड़ाई, धन और संतान की प्राप्ति और वृद्धि का है या बाद मरने के स्वर्ग या बैकुंठ या बहिश्त में सुख भोगने का। इनके मत में ना तो सच्चे मालिक का खोज और पता है उसके मिलने की जुगत का जिक्र है।

जितने काम कि यह लोग करते हैं सब बाहरमुखी हैं और उनका सिलसिला अंतर में सूरत और शब्द की धार के साथ बिल्कुल नहीं। इस सबब से इन कामों में जीव का सच्चा उद्धार नहीं हो सकता।

क्रमशः🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**




 **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज

 -सत्संग के उपदेश- भाग 2-( 42)-

【 असली पवित्रता क्या है?】:-

 आपने पवित्र, पवित्रता, शुद्ध ,शुद्धता Holy Sacred  वगैरह अल्फाज हजारों मौकों पर इस्तेमाल किए होंगे और इस्तेमाल होते सुने होंगे लेकिन गालिबन आपको कभी यह इत्तेफाक न हुआ होगा कि यह तहकीक करें कि पवित्रता किस चीज या वस्तु का नाम है कोई चीज पवित्र क्यों कही जाती है?  मिसाल के तौर पर देखिए-- गंगाजल पवित्र कहा जाता है और वजह यह बतलाई जाती है गंगा जी स्वर्ग से उतरकर संसार में आई है इसलिए पवित्र है और इसलिए गंगाजल भी पवित्र है। लेकिन और भी बहुत सी नदियां , जो स्वर्ग से नहीं उतरी, पवित्र मानी जाती है। इस पर जवाब दिया जाता है कि वे सब नदियाँ, जिनका जिक्र प्राचीन शास्त्रों में है, बावजह इसके कि पूर्व काल में ऋषियों व बुजुर्गो ने उनके किनारे विश्राम किया,पवित्र मानी जाती है ।लेकिन ऐसी भी बहुत सी नदियां हैं जिनका शास्त्रों में कही कोई जिक्र नहीं लेकिन फिर भी पवित्र मानी जाती है। चुनांचे 'राजाबरारी' में काजल व गंजाल नदियों के संगम का मुकाम पवित्र समझा जाता है और सूर्य व चंद्र ग्रहण के मौको पर और खास खास तिधियों पर हजारों लोग अपने शहर या कस्बे के करीब नदियों में पवित्र्ता हासिल कलने के लिये स्नान करते हैं। क्रमश

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**




मुबारक भंडारा

करूं क्या बयां उनके रहमोकरम का
दया का सागर उमड़ उमड़ पड़ा।
चौदह अप्रैल की मध्यरात्रि साढ़े बारह बजे
दाता जी का काफिला खेतों को चल पड़ा।
सैलाब प्रेमियों का उमड़ने लगा
वाहनों का सिलसिला चल पड़ा।
साईकिल रिक्शा बस व ट्राली
कारों से भी सफ़र तय था हो रहा।
रात की नीरवता में बस वाहनों का शोर था
नौनिहालों का सिलसिला भी थमता न था।
वीरांगनाओं की अलग आन बान शान थी
सिर पर हेलमेट मुख पर मास्क हाथों में लाठियां थीं।
खेतों का नजारा पूरे शबाब पर था।।
चाय रस्क गुड़ चना अमृत पेय चिड़वा
केले व श्रीखंड का परशाद था।
काम करते करते सभी परशाद पा रहे थे
जूझ कर कटाई में सब भाग ले रहे थे।
रात्रि के एक बजे आरती संपन्न हुई
आरती का परशाद सबको बांटा गया।
प्रात: साढ़े तीन बजे खेतों काम समाप्त हुआ
घर कीओर सबने प्रस्थान किया।
पंद्रह अप्रैल के साढ़े दस बजे संदेश आ गया
दाता जी भंडारे के लिए खेतों में पधार रहे हैं।
आनन फानन सब खेतों को चल दिये
उनके इक इशारे पे सब हाजिर हो गये।
जहां तक जा रही थी नज़र
खेतों में सभी अनुशासनबद्ध बैठे थे।
पंद्रह फीट की दूरी लिए सब प्रेमीजन
सोशल डिस्टेंस का पालन कर रहे थे।
चल रहीं थीं दरातियां गेहूं पर
किंतु निगाहें टिकी थीं सिंहासन पर
सबकी निगाहें टिकी थीं
दाता जी की तशरीफ़ आवरी पर
दाता जी के शुभागमन पर
ग्यारह बजे भंडारा प्रारंभ हुआ।
दो शब्दों के  पाठ के उपरांत
दाता जी ने भोग लगाया।
सभी ने अपने अपने स्थान पर प्रशाद ग्रहण किया।
गेहूं कटाई का सिलसिला चलता रहा
सूर्य का प्रकाश भी बाधा बन न सका।
निर्मल रास लीला का नजारा चहुं ओर था
इक अजब सा नशा फैला सब ओर था।
दाता जीके चारों ओर सुरतें उमड़ रही थीं
नन्हे सुपरमैनों की भी भीड़ जमीं हुई थी ।
दाता जी सुपरविजन कर रहे थे खेतों में
सब प्रेमियों में अजब सा उमड़ा जोश था।
न तन की सुध थी न परवाह किसी की
सुरत डोर उनके चरणों में बंधी थी।
सुपरमैन की पीटी हुई उसी खेत में
वीरांगनाओं का प्रर्दशन भी अद्भुत रहा।
शाम के साढ़े तीन बजे खेतों की छुट्टी हुई
कारवां धीरे धीरे सिमटने लगा।
सब अपने अपने घर को मुखातिब हुए
रात का अंधकार घिरने लगा।
साढ़े दस बजे रात को एक संदेश गूंजने लगा
कार रेडी+++++++++++++++
कृष्ण की बांसुरी सुन घर-बार छोड़कर
गोपियां उनकी ओर दौड़ पड़तीं थीं।।
वैसे ही सारी संगत अपने अपने घर से चल दी
खेतों को दाता जी के पथप्रदर्शन पर।
यमुना का किनारा था बह रही थी शीतल पवन
आधी रात का समय था चांद अर्श पर खिला था।
आशिकों को सिर्फ अपने आका का ख्याल था
रात को भी दिन का सा आभास था।
हर काम यथावत् पूर्ण हो रहा था।
इलायची दाने  का परशाद चाय रस्क
अमृतपेय गुड़ चना चिड़वा व ककड़ी का परशाद
हर प्रेमी को वितरित हो रहा था।
चल रहीं थीं दरातियां उसी जोश में
तीन बजे सुबह छुट्टी का ऐलान सुन
सभी प्रेमीजन घर की ओर चल दिए।
था सुकून और आनंद मालिक के संसर्ग का
उन पलों में स्वर्ग हमारी गोद में था।
सुपरमैन और वीरांगनाओं की सेल्फडिफेंस पीटी
भंडारे वाले दिन तीन बार संपन्न हुई।
तीन शिफ्टों में झो खेतों का काम हुआ
दाता जी का साथ करीब बारह घण्टे तक मिला।
हर प्रेमी। प्रेम भक्ति में डूबा हुआ।
भंडारे का पवित्र दिवस यूं बीत गया
अविस्मरणीय स्मृतियों से झोली भर गया।
सराहें क्या भाग अपने जो मालिक का पर्याय मिला उनके स्वर्गिक आभामय स्वरूप का दीदार मिला।
वे दयाल यमुना के तट पर रचा रहे थे निर्मल रासलीला
सारी संगत को अपने प्रेमरंग में रंग। दिया।
उनकी आज्ञाओं पर यूं ही हम चलते रहें
उनकी वात्सल्य भरी गोद में मग्न हम रहें।
आरज़ू है यही बिनती है यही
उनकी कसौटी पर खरे हम उतरते रहें।
उनके रहमोकरम के काबिल हम बनें।
उनके सिवा कुछ न अब चाहिए
बस प्यार भरी इक नज़र चाहिए।


स्वामी प्यारी कौड़ा




*हे मेरे मालिक सब ठीक करो,*
*अब मुझको दयालबाग आना है।*
*करनी है दो बातें तुमसे,*
 *अब फिर से दर्शन पाना है।।**

जो हालात हुए हैं जग के,
ये ना किसी ने सोचा होगा।
मौत के इस अजीब से डर ने
ना जीवन को नोचा होगा।।
आ के इसको ख़तम करो अब,
वचन ये तुमको निभाना है।
*है  मेरे मालिक सब ठीक करो,*
*अब मुझको दयालबाग आना है।*

हे मालिक आपकी प्यारी सूरत
मुझे याद बड़ा ही आती है।
तुमसे मिलने की चाह मालिक
रह रह कर दिल को तड़पाती है।।
नम हैं आंखें दिल है सूना,
ऐसे ना अब चल पाना है।
*हे  मेरे मालिक सब ठीक करो,*
*अब मुझको  दयालबाग आना है।*

ना सोचा था सपने में भी
ऐसे दिन भी आयेंगे।
नगरी सूनी होंगी तेरी,
सब घरों में बंध जाएंगे।
बिनती हमारी यही मालिक
अब इस बंधन से भी छुड़वाना है।
*हे  मेरे मालिक सब ठीक करो,*
*अब मुझको दयालबाग आना है।*

ऐसी कौन सी चीज़ है जिसका
पास तुम्हारे इलाज नहीं।
छेड़ा हमने ही कुदरत को,
आयी हमें भी लाज नहीं।
ये गलती हमारी क्षमा करो
इस बिगड़ी को तुम्हे बनाना है।
*हे  मेरे मालिक सब ठीक करो,*
*अब मुझको  दयालबाग
 आना है।*

🌸🙏 *राघास्वामी* 🙏🌸
(मालिक के चरणों मे छोटी सी प्रार्थना की हे)

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