**परम गुरु हुजूर महाराज-
प्रेम पत्र- भाग 1
-कल से आगे-( 4 )-
【नाम का जाप】-
आजकल जो लोग नाम का जाप करते हैं वह बहुत करके(१) जवानी नाम लेते हैं और मन और चित्त और दृष्टि उनके उस वक्त डावाँडोल रहते है यानी सुमिरन में शामिल नहीं होते हैं। इस सबब से ऐसे सुमिरन से सिवाय थोड़ी सफाई के और कुछ हासिल नहीं होगा।(२) कोई कोई मानसी सुमिरध करते हैं,पर उसमें नामी का पता और भेद धाम का यानी बैठिकाने सुमरिन करते हैं।(३) इसी तरह स्वाँसा के साथ यानि दम के आते जाते वक्त बाजे नाम लेते हैं और (४) कोई कौई नाम की चोट दिल पर लगाते हैं, चाहे आवाज बुलंद के साथ चाहे हल्की आवाज के साथ नाम लेते हैं ।।
(2) यह सब नामी और उसके नाम के पते और भेद से बेखबर हैं, और इस सबब से सिवाय सफाई या किसी किसी को थोड़ी सिद्धि के सिवाय और कुछ फायदा हासिल नहीं हो सकता है, यानी ध तो नामी के स्थान में पहुंच सकते हैं और न दीदार और दर्शन पा सकते हैं । और जोकि उनका घाट नही बदलता, इस वास्ते उनके मन में प्रेम प्रकट होता है और न उनका उद्धार होना मुमकिन है।।
(3) संतो ने नाम की बहुत महिमा करी है और यह कि बगैर गुरू और नाम के किसी का उद्धार नहीं होगा, पर उनका नाम सच्चे मालिक का धुन्यात्मक नाम है उसका अभ्यास यह है कि मन चित्र से नाम की धन को जो घट घट में हो रही है, सुनना और धुन की डोरी पकड के नामी के सन्मुख पहुंचना। जब तक ऐसा ना होगा गहरा प्रेम मन में नहीं आएगा और ने हालत बदलेगी और न सच्चा उद्धार यानी मन माया के देश से जुदाई होगी ।और संत नामी के धाम का रास्ता और स्थानों का भेद वगैरह समझाते हैं।
क्रमश:🙏🏻राधास्वामी🙏🏻 **
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी दयाल की दया राधास्वामी सहाय
राधास्वामी
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