प्रस्तुति - ऊषा रानी सिन्हा /
राजेंद्र प्रसाद सिन्हा
**परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र- भाग 1-
(17)-
【 मालिक के चरणो में भय ,भाव, और अदब 】
:-(1) दुनिया में सब कोई, पुरुष और स्त्री और लड़के अपने अपने बड़ों का भय, भाव और अदब करते हैं, जैसे स्त्री पति का, पुत्र और पुत्री माता और पिता का, लड़के उस्ताद और शिक्षा देने वाले का, नौकर अपने हाकिम और मालिक का, वगैरह वगैरह । और यह लोग जो काम या चाल या व्यवहार इनके बड़ों की मर्जी के मुआफिक नहीं है या उनके नापसंद है , नहीं करते और उनके डर से ऐसे कामों में प्रवृत्त नहीं होते। इसी तरह सिवाय अपने बड़ों के लोग अपनी अपनी बिरादरी और फिरके का भी खौफ और ख्याल रखते हैं कि कोई चाल ऐसी ना चले कि जिसमें बिरादरी और फिरके के लोग नाराज होकर तान मारें। और जो कोई जिस संगत या जलसे में शामिल होता है उस संगत या जलसे के के मुआफिक अपना बर्ताव करता है , नहीं तो उस संगत या जलसे में रहने के लायक नहीं समझा जाता है और जो समझोती ना माने तो निकाल दिया जाता है।। (2) जब दुनियाँ की सब कार्रवाई में लोगों का ऐसा बर्ताव है तो सत्संग में, जो मालिक का घर है जहां उसके मिलने की जुगत हो रास्ता बताया और कमाया जाता है, जिस कदर सफाई और छोटी और होशियारी और प्रीति के साथ बर्ताव और व्यवहार परमार्थियों का( जो उस सतसंग में दाखिल होवें) होना चाहिए यानी हर हाल में यह जरूर और मुनासिब मालूम होता है कि उनका चाल चलन और व्यवहार अपने अपने दर्जे के मुआफिक किसी कदर दुनियादारों के चालचलन से अलग होना चाहिए। यानी दुनिया के लोग तो अक्सर अपने मतलब के मुआफिक कार्यवाही करते हैं और उसमें किसी के दुखी सुखी होने का ख्याल बहुत कम करते हैं, पर परमार्थि को चाहिए कि दुनिया के कामों में अपने निजी फायदे के वास्ते किसी को दुख और तकलीफ ना पहुंचावे और दूसरों के अवगुण देखने और सुनने और उनको मशहूर या प्रगट करने की आदत छोड़ता जावे और बरताव अपना हर एक के साथ सचौटी से रखें और किसी को धोखा ना देवे। इतना फर्क सत्संगी और संसारी लोगों के चाल चलन में, जब से कि वे सतसंग में आये और सच्चे मालिक और संतो के बचध सुने और समझे, जरुर आहिस्ता आहिस्ता होना चाहिये। और खराब जगह और खराब कामों और खराब सोहबत से परहेज करें । इसी तरह जितने बिकारी अंग हैं, उनमें सत्संगी प्रेमी का बर्ताव बनिस्बत संसारी लोगों के दिन दिन कम होना चाहिए। और यह बात ठीक ठीक जब बन आवेगी कि जब उनके मन में सच्चे मालिक का (जिसके चरणों में पहुंचना चाहता है और इस कारण उसे प्रीति लगाई है ) सच्चा खौफ और सच्चा प्यार और सच्चा अदब थोड़ा सा भी होगा ।और यह खौफ, और प्यार और अदब, जो उसने मालिक को मालिक जाना है, थोडा थौडा करके जरुर मन में पैदा होना चाहिये।
क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻 **
**परम गुरु हुजूर हुजूर साहबजी महाराज-
सत्संग के उपदेश-
भाग दूसरा-
कल से आगे:- आजकल इस मुल्क में, जहां बच्चों की मौतों की तादाद बहुत ज्यादा है, करीबन हर वाल्दैन को इस मुसीबत का सामना करना पड़ता है। क्या वह इंसान पर सरासर जुल्म नहीं है कि पहले उसके दिल में औलाद की ख्वाहिश डालनि, फिर उसे औलाद न देना और अगर देना तो अचानक से रोते पीटते और चिल्लाते बिल्लातें छीन लेना? जाहिरन जुल्म जरूर है मगर गौर करो कि इंसान को किसने कहा था कि औलाद में मोह व ममता ् कायम करो। शादी की ख्वाहिश जरूर कुदरत ने उसके अंदर पैदा की मगर इसलिए कि दूसरी सुरतों( आत्माओं ) को इंसानी चोले में अवतार देने का मौका मिले। लेकिन इसकी वजह से इस कदर इजाजत है कि इंसान बखुशी शादी करें और जिस दिन वालदैन के घर औलाद पैदा हो उसकी इजाजत नहीं है की औलाद पैदा ना हो उसकी मुनासिब पर्वरिश करें लेकिन यह इजाजत नही है कि जिनके घर औलाद पैदा न हो वे उसके लिए हद से ज्यादा कोशिश करें या अगर बावजूद हर तरह की खबरगिरी के औलाद मर जाए तो नाहक परेशान खातिर हों। इंसान खुद ही मोह ममता में पडकर अपने लिये आयंदा मुसीबत के सामान इकट्ठा करता है और कुदरत को इल्जाम लगाता है । छोटी उम्र में बच्चे की भोली सूरत और सादे बोल चाल से मां बाप के दिल में गहरी मोहब्बत कायम हो जाती है और बड़े होने पर उससे उम्मीद़े बाँध लेने से जबरदस्ती गरजमंदी पैदा हो जाती है और नतीजा यह होता है कि औलाद के गुजर जाने पर माँ बाप दोनो की जिंदगी तलख हो जाती है । काश जिस कदर मोहब्बत इंसान अपनी औलाद के साथ करता है उसका आठवां हिस्सा भी सच्चे मालिक के चरणो में करें तो न सिर्फ दुनियावी दुख सुख उसके नजदीक फटकने न पाएंगे बल्कि वह हंसता खेलता हुआ जन्म मरण के चक्र से बाहर होकर अमर व अविनाशी आनंद को प्राप्त होगा।
क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हजूर साहबजी महाराज
- रोजाना वाक्यात
-3, 4 सितंबर- 1932 -शनिवार व रविवार:-
बेंगलुरु पहुंच गए। सेठ खुमानी चंद साहब के आनंद भवन होटल में कयाम है। कमरे निहायत साफ-सुथरे हैं लेकिन अंधेरे हैं ।मच्छरों की खासी रौनक है । सेठ साहब ने आवभगत में कोई कमी नहीं छोड़ी। मिलने पर मैंने शुक्रिया अदा किया और मैसूर राज्य के हालात दरयाफ्त किये।। 10:00 बजे दीवान साहब से मुलाकात की ।काफी गर्मजोशी से मिले । आपने ख्वाहिश जाहिर की कि इस मरतबा जरूर बंगलुरु में सत्संग का स्थाई रूप से कदम जम जाए। मैंने जवाब दिया इस बात की आपकी तवज्जो पर निर्भरता है। अपने डिप्टी कमिश्नर साहब बंगलूर से इंतजाम कर दिया है 4:00 बजे वह मुझे है खंड भूमि दिखलायें जाए जो उन्होंने हमारे लिए चयन किए हैं।। 4:00 बजे डिप्टी कमिश्नर के साथ तशरीफ़ लाये। उनके साथ जाकर जमीन देखी । लगभग 2 घंटे मुआयना में खर्च हुए। यह जमीन शहर की हद से 4 मील के फासले पर वाकै है। 150 एकड रकबा है। कुल जमीन पथरीली है लेकिन एक इंच से ऊँची घास नहीं है। पेड़ का नाम तक नदारद हालांकि रकबा काफी नीचाई में वाकै हैं। दरयाफ्त करने पर मालूम हुआ कि रिआसत का इरादा था कि बंद लगाकर यहां वाटर वर्क्स का तालाब बनाया जाए। अलावा नीचे में वाकै होने से बड़ा दोष यह है कि कुल रकबा ऊंचा नीचा है ।कहीं पर 10 15 फीट से ज्यादा हमवार सतह नहीं है । बिना दस लाख रुपया खर्च किये यह इलाका हर्गिज आबाद नही हो सकता। आबपाशी की सहूलियत न होने से यह डेरी के लिये भी उपयुक्त नही है। मायूस होकर घर लौट आये और मालिक का शुक्रिया अदा किया।
क्रमश:🙏🏻राधास्वामी🙏🏻 **
राधास्वामी
राधास्वामी
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राधास्वामी
राधास्वामी
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