**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज
- रोजाना वाक्यात -11 सितंबर 1932-
रविवार:- जब से दयालबाग वापस आये हैं खूब बारिश हो रही है । दयालबाग अपने यौवन पर है ।अब समझ में आता है कि ऋषि लोग जो मालिक के प्रेमी थे क्यों हरे-भरे जंगलों में रहन-सहन अख्तियार करते थे। साफ सुथरे व आसपास के वातावरण का इंसान के जिस्म व मन पर निहायत जबरदस्त असर पड़ता है । ऐसे मकाम पर अनायास ही मालिक की याद आती है और मन के अंदर भक्ति व प्रेम का भाव रह-रहकर जोश मगरता है। तीसरे पर विद्यार्थियों का सत्संग हुआ । मजमून यह था कि राधास्वामी मत में जो साधन कराया जाता है उसका नाम सुरत शब्द अभ्यास है लेकिन शब्द अभ्यास से मतलब महज किसी आवाज का सुनना नहीं है। बात यह है मालिक की शक्ति से कुल सृष्टि प्रकट हुई है। उसकी शक्ति धारों की शक्ल में सृष्टि के अंदर फैली है। और जहां धार है वहां धुन है। राधास्वामी मत बतलाता है कि इस धुन को पकड़कर इंसान की रुह मालिक की शक्ति की धारों तक पहुंच हासिल सकती है। शब्द महज गिलाफ है और मालिक की शक्ति की धारे असली चीज है। और असली मतलब उन शक्ति की धारों के साथ ताल्लुक कायम करने से है। इस अभ्यास से कामयाबी हासिल करने के लिए प्रेम व शौक की बेहद जरूरत है। प्रेम व शौक तभी पैदा होते है जब मन से संदेह दूर हो जाये और संदेह सतसंग के उपदेश सुनने से दूर होते हैं इसलियें हर सुरत शब्द अभ्यास के जिज्ञासु को अव्वल सतसंग में शरीक होकर अपने मन के संदेह मिटाने चाहिए और संदेह दूर होकर मन में काफी प्रेम व शौक पैदा होने पर अभ्यास की कमाई करनी चाहिए।
क्रमवः🙏🏻 राधास्वामी 🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-
सत्संग के उपदेश- भाग 2- कल का शेष-
आचार्यबिशप साहब ने पानी का एक प्याला लेकर अपने विश्वासों के कुछ मंत्र पढ़े और इसके बाद उस प्याले से पानी लेकर जिसे होली वाटर यानी पवित्र जल कहा जाता है, जगह-जगह बुनियादों पर छिडका। इसी तरह (यानी हिंदू भाइयों के तरीके बमूजिब) जॉर्डन नदी व चश्मए जमजम का पानी ईसाई व मुसलमान भाइयों के नजदीक पवित्र है। हमारी मंशा किसी जमात के मजहबी कायदों के मुतअल्लिक़ कोई बहस करने की नहीं है बल्कि इस अम्र की जांच से है कि आवाम के दिल में पवित्रता के मुतालिक क्या-क्या ख्यालात बैठे हुए हैं। संतमत यह सिखलाता है की पवित्रता सिर्फ आत्मा यानी सुरत के अंदर है और जो हाल रोशनी का है वही पवीत्रता का है यानी जैसे रोशन चीज अपने संबंध में आने वाली प्रकाशहीन चीजों को रोशन कर देती है इसी तरह पवित्आत्मा भी अपवित्र से अपवित्र चीज को जो उसके संबंध में आवे,, पवित्र कर देती है । मगर जैसे बावजूद सूर्य की एक ही किस्म की किरणे चमकने के दुनिया के अंदर सब के सब पदार्थ इस रंग के नहीं है बल्कि मुख्तलिफ रंग के हैं, क्योंकि उनकी बनावट इस किस्म की है मुखतलिफ पदार्थ किरणों के मुखतलिफ अंशो को जज्ब करते हैं यानी अक्स डालते हैं इसी तरह आत्मा के संबंध में आने पर मुख्तलिफ पदार्थ मुख्तलिफ दर्जे की पवित्रता हासिल करते हैं। इसलिए अगर किसी पुरुष के अंदर आत्मशक्ति का भरपूर इजहार है और उसका मन व शरीर उसकी आत्मशक्ति की किरणों से रोशन है तो हरचंद उसका मन और शरीर आत्मा के बराबर चैतन्य व पवित्र नहीं हो सकते लेकिन बमुकाबले दूसरे मनुष्यों के मन व शरीर के पवित्र समझे जाएंगे। संतमत की पवित्रता की तारीख से एक यह भी नतीजा निकलता है कि जो शख्स , हिंदू हो या मुसलमान, ऊंची जात का हो या शुद्र व अछूत, अपनी आत्मशक्ति के जगाने का साधन करता है वह पवित्र है और उन लोगों से, जो दूसरे के कारणों से अपनेतई पवित्र समझते हैं, हजारहां दर्जे बढ़कर है। खुशी का मुकाम है कि ब्रह्मांड पुराण के उस श्लोक का रचयिता जिसके अर्थ ऊपर दर्ज किए गए ,संतमत की शिक्षा के साथ सहमत है। असल श्लोक नीचे लिखे जाता है:-'"जन्मना जायते शुद्र:, संस्काराद् द्विज उच्चयते। वेदपाठाद् भवदे् विप्रो, ब्रह्म जानाति ब्राह्मण:।।"
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**राधास्वामी!! 24-04-2020-
आज शाम के सतसंग में पढे गये पाठ-
(1) मनुआँ क्यों सोचे नाहि, जग में दुख भारी ।।टेक।।(प्रेमबानी-3,शब्द-11,पृ.सं.233)
(2) स्वामी तुम काज बनाए सबन के।।टेक।। (प्रेमबिलास-शब्द-104,पृ.सं.150)
(3) सतसंग के उपदेश-भाग तीसरा-कल से आगे।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**राधास्वामी!!
24-04 -2020 -
आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन
- कल से आगे-( 117 )
क्योंकि छोटा बच्चा तजुर्बे से जानता है कि उसके रोने में बड़ा असर है इसलिए वह अपनी हर एक मांग रो कर पूरी करता है , और जब वालदैन किसी कदर सर्दमेहरी से पेश आते हैं तो वह और भी जोर से चीखता है ।
यहां तक कि वालदैन उसकी ख्वाहिश पूरी करने के लिए मजबूर हो जाते हैं। इसी तरह चूँकि हाकिम जानते हैं कि लोग सजा के कानून से डरते हैं इसलिए अपने अहकाम सजा के कानून का डर दिखला कर मनवाते हैं।
ठीक इसी तरह प्रेमी जन जानते हैं कि प्रेम व दीनता का अंग लेकर और तबीयत यकसू करके अगर सच्चे मालिक के हुजूर में कोई अर्ज पेश की जाए तो वह जरूर मंजूर हो जाती है। इसलिए हर शख्स के वास्ते ,जो मालिक की हस्ती में अकीदा रखता है और मालिक से स्वार्थ परमार्थ में मदद का उम्मीदवार है, लाजमी है कि अपने अंदर प्रेम व दीनता का अंग जगावे और यकसूई तवज्जुह का महावरा करे।
सत्संग में जो सेवा वगैरह का सिलसिला जारी है वह इसी गरज हैं कि हर सत्संगी के अंदर प्रेम व दीनता का अंग पैदा हो । और सुमिरन व ध्यान के उपदेश की पहली गरज यही है कि सतसंगी तवज्जुह की यकसूई हासिल करने में कामयाब हो।
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻
सत्संग के उपदेश- भाग तीसरा।**
*परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज
- सत्संग के उपदेश:-
(मिश्रित बचन )-
कल से आगे:- (3)- जब कभी कोई तकलीफ सिर परआवे तो मत घबराओ क्योंकि तुम अकेले नहीं हो; हुजूर राधास्वामी दयाल तुम्हारे अंग संग रक्षक व सहाई मौजूद हैं । यह सच है कि दुनिया के सब काम हमेशा तुम्हारी मर्जी के मुआफिक नहीं हो सकते लेकिन याद रक्खो कि उन दयाल की रक्षा का पंजा सिर पर रहते हुए तुम्हारा कभी असली परमार्थी बिगाड़ भी नहीं हो सकता । अगर मौज कभी तुम्हारे मन की गढत करने की होगी तो भी दया का हाथ तुम्हारे अंगसंग रहेगा:-" गुरु कुम्हार शिष कुंभ है , गढ़ गढ़ काढें खोट।
अंतर हाथ सहार दे, बाहर बाहें चोट।।"
(4) अंतर में सुरत का थोड़ा सा भी सिमटाव होने पर अभ्यासी के दिल में भारी आनंद पैदा होता है और कभी गहरा सिमटाव होने पर दर्शन प्राप्त होने की कृपा होती है उस वक्त के आनंद का तो वार पार ही नहीं है। इससे अनुमान किया जा सकता है कि मन व माया के बंधनों से निवृत होकर सुरत के निर्मल चेतन धाम में प्रवेश करने पर किस दर्जे का आनंद प्राप्त होगा और वे कैसे बडभागी हैं जो संसार के सुख व बिलास के बजाय सुरत के निर्बंध करने की फिक्र में लगे है।। (
5)-सच्चे प्रेमीजन को चाहिए कि अपने सभी धर्मों का खुशी से पालन करें और धर्मपालन के सिलसिले में अगर उसे कभी दुख तकलीफ सहनी पड़े तो खुशी से मंजूर करें। ऐसा ना होना चाहिए कि तकलीफ की सूरत नमूदार होते ही धर्म से पतित हो जाए। ऐसे मौकों पर दिल को मजबूत रखने से भारी परमार्थी तरक्की होती है और जल्द ही प्रेमीजन मालिक का गहरा दयापात्र बन जाता है।
(6) पिछले बुजुर्गों की जो तालीम है वह अव्वल तो ऐसी भाषा में है जिसका लेना आसान नहीं है और दूसरे खुदमतलबी लोगों ने उसके अंदर ऐसी मिलावटी कर दी है कि असल मिलावट का छाँट लेना निहायत कठिन हो गया है। सतसंगियों के बडे भाग है कि उनके लिए हुजूर राधास्वामी दयाल की शिक्षा सरल और निर्मल रुप में मौजूद है और हमेशा मौजूद रहेगी।
क्रमशः👏🏻 राधास्वामी**👏🏻
(मालिक के चरणों मे छोटी सी प्रार्थना)
*हे मेरे मालिक सब ठीक करो,*
*अब मुझको दयालबाग आना है।*
*करनी है दो बातें तुमसे,*
*अब फिर से दर्शन पाना है।।**
जो हालात हुए हैं जग के,
ये ना किसी ने सोचा होगा।
मौत के इस अजीब से डर ने
ना जीवन को नोचा होगा।।
आ के इसको ख़तम करो अब,
वचन ये तुमको निभाना है।
*है मेरे मालिक सब ठीक करो,*
*अब मुझको दयालबाग आना है।*
हे मालिक आपकी प्यारी सूरत
मुझे याद बड़ा ही आती है।
तुमसे मिलने की चाह मालिक
रह रह कर दिल को तड़पाती है।।
नम हैं आंखें दिल है सूना,
ऐसे ना अब चल पाना है।
*हे मेरे मालिक सब ठीक करो,*
*अब मुझको दयालबाग आना है।*
ना सोचा था सपने में भी
ऐसे दिन भी आयेंगे।
नगरी सूनी होंगी तेरी,
सब घरों में बंध जाएंगे।
बिनती हमारी यही मालिक
अब इस बंधन से भी छुड़वाना है।
*हे मेरे मालिक सब ठीक करो,*
*अब मुझको दयालबाग आना है।*
ऐसी कौन सी चीज़ है जिसका
पास तुम्हारे इलाज नहीं।
छेड़ा हमने ही कुदरत को,
आयी हमें भी लाज नहीं।
ये गलती हमारी क्षमा करो
इस बिगड़ी को तुम्हे बनाना है।
*हे मेरे मालिक सब ठीक करो,*
*अब मुझको दयालबाग आना है।*
🙏 *राघास्वामी* 🙏
*एक गुरसिख ने किसी दूसरे गुरसिख से पूछा कि मै सत्गुरु के दर पर जा रहा हूॅ क्या लेकर जाऊ ? उस गुरसिख ने कहा विश्वास लेकर जाओ*
*इस पर उसने पूछा कि श्री गुरू महाराज जी को कैसे मालूम होगा की मै विश्वास लेकर आया हूँ तो उस गुरसिख ने कहा जब तुम्हारा विश्वास पक्का होगा तो सत्गुरु के आगे तुम्हारी आँखों में पानी होगा और वह दो बूंद गिरने से पहले ही तुम्हारी झोली में वो सब कुछ डाल देंगे जिसकी तुम कभी कल्पना भी नही कर सकते*।
*
शुभ प्रभात*🙏🏻
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी दयाल की दया राधास्वामी सहाय राधास्वामी।।।।
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