Thursday, April 23, 2020

घर की बात




प्रस्तुति - कृति  शरण /
 सृष्टि शरण / अमी शरण / मेहर स्वरूप


*कोरोना  की इस विपत्ति के समय एक साथ 3 महीने का राशन लेकर आए अपने पुत्र को उसके पिता ने कहा कि*
*अपने पूर्वज कितनी दूरदर्शिता रखते थे। हमको भी घर में वैसी ही दूरदर्शिता रखना चाहिए।*

*वे लोग घर में 1 साल का गेहूं, चावल और तेल के डिब्बे स्टॉक कर लेते थे। इसी तरह से तुवर  दाल, चना दाल, मूंग दाल आदि भी साल भर के लिए रखते थे। एक बार गेहूं, चावल साल भर के आ जायें तो ऐसी विपत्ति में कोई डर ना रहे और भोजन व्यवस्था चलती रहे।*

*पुत्र और बहुओं के साथ पोते पोतियों  को भी आनंद लेकर, रुचि लेकर इस बात को सुनते हुए देखकर उन्होंने कहा-*

*हमारे इस विशाल देश में करोड़ों लोग मध्यम वर्गीय ग़रीब हैं, अगर उनको ताज़ी सब्ज़ी नहीं मिले तो आज वे बेहाल हो जाते हैं। हमारे पूर्वज घर में अचार रखते थे, उससे बहुत आनन्द से भोजन हो जाता था। यह भी हमारी संस्कृति की एक विशेषता है। ऐसी विशेषता विदेशियों के पास नहीं है।*

*अभी तो छोटे परिवार हैं, परंतु पहले संयुक्त परिवार बड़े होते थे, तो सारे साल चले इतना खट्टा, तीखा, मीठा कई प्रकार का अचार घर में रखा रहता था। कुछ नहीं मिले तो अचार और रोटी पूरा भोजन होता था।*

*इसी तरह दूध या छाछ हो तो उसके साथ भी रोटी का भोजन हो जाता था।  दूध पर मलाई निकाल कर रोटी पर चुपड़कर उस पर थोड़ी शक्कर डालकर बीड़ी  बनाकर चार-पांच  रोटी नाश्ते में खा लेते थे।*

*ऐसे ही कटोरी में खाने का थोड़ा तेल, नमक, मिर्ची और शक्कर डाल कर और थोड़ी हींग मिलाकर जो ज़ायक़ा बनाते थे और उस ज़ायक़े को रोटी के साथ बड़े प्रेम से खाते थे।*

*इसी तरह रोटी के छोटे-छोटे टुकड़े करके उसमें गुड़ और घी मिला करके और लड्डू छोटे-छोटे बनते थे इनको बड़े प्रेम से खाया जाता था।*

*_ऐसी लॉक डाउन की  विपत्ति के समय  नई पीढ़ी को भी  यह ध्यान रखना चाहिए कि अगर हमारे पास  बाज़ार जाने की सुविधा ना हो, तो हम घर पर  किस प्रकार अपना भोजन  की व्यवस्था कर सकें, बिना  बाहर निकले।*

_*हमारी संस्कृति ऐसी है कि हम अपनी ज़रूरतों को घर पर ही पूरा कर सकते हैं। अमेरिका और पश्चिमी देशों में  ऐसी संस्कृति नहीं है। वहा  ब्रेड खाई जाती है वो भी मार्केट की घर पर तो बनती ही नहीं ।आज जैसी लॉकडाउन  की स्थिति में वे लोग पागल जैसे या मानसिक असंतुलन की स्थिति में पहुंच जाते हैं।*_

_*अमेरिका और यूरोप में जितने लोगों की मृत्यु हो रही है,  उनमें ८०% वृद्ध हैं। इसका कारण भी यही है  कि वहां वे लोग  संयुक्त परिवार को नहीं जानते। अकेले रहते हैं  और इस कारण से मानसिक और शारीरिक रूप से अस्वस्थ रहते हैं। हमारे यहां पर संयुक्त परिवार में  सारे परिवार के लोग अपने बुज़ुर्गों का ध्यान रखते हैं। कोरोना वायरस अपने शरीर की आंतरिक सिस्टम  को हिला सकता है, परंतु हमारी संस्कृति कोरोना के विरुद्ध ढाल बनकर  हमारी रक्षा करती है और कोरोना वायरस नहीं होने दे सकती।*

*_नई पीढ़ी को पुरानी पीढ़ी से इस प्रकार की बातों को सीखना चाहिए और पश्चिम की अंधी नक़ल  नहीं करनी चाहिए।_*
         🙏🙏🌹

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