**राधास्वामी!! 13-06-2020- आज शाम के सतसंग में पढे गये पाठ- (1) आज आई बहार बसंत। उमँग मन गुरु चरनन लिपटाय।। (प्रेमबानी-3,शब्द-1(बचन-16-बसंत और होली) पृ.सं.281) (2) पाती भेजूँ पीव को प्रेम प्रीति सों साज। छिमा माँग बिनती कहूँ सुनिये पति महाराज।।। प्रीति लगी मेरी तुमसे जिगरी। चितऊँ तुम्हे और सब बिसरी।। (प्रेमबिलास-शब्द-129,पृ.सं.190)
(3) यथार्थ-प्रकाश-भाग पहला-कल से आगे। 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**राधास्वामी!
! 13-06 -2020 -आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन
कल - से आगे :
- (19)
कोई कोई पुरुष लौकिक ज्ञान विज्ञान और कलाकौशल के अनुरागी होते हैं और ज्ञान की पुस्तकों के पढने से उनकी बुद्धि इतनी तीव्र हो जाती है कि वाद विवाद में कोई मनुष्य उनके सामने ठहर नहीं सकता। यह दशा संसार में कीर्ति और विद्या तथा बुद्धि का आनंद लेने के लिए अत्यंत उपयुक्त है पर आध्यात्मिक शक्तियों के जगाने और परमार्थ में कदम बढ़ाने के लिए अत्यंत हानिकारक है । लौकिक विद्याएँ पढ़कर आमतौर मन की प्रवृत्ति संसार के पदार्थों की ओर इतनी प्रबल हो जाती है कि उसका रोकना और उलटना मनुष्य के लिए अत्यंत कठिन होता है। इसी कारण हर देश में हजारों ऐसे पढ़े-लिखे लोग नजर आते हैं जो वाद-विवाद में अपने तुल्य दूसरा नहीं रखते और लौकिक विद्याओं से बहुत कुछ परिचित हैं परंतु प्रमार्थ से सर्वथा शून्य ।। मुई बचश्मे खिरद हुस्ने दोस्त न नुमायद। बंबी ब दीदए मजनूँ जमाले लैला रा।। ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती कहते हैं कि बुद्धि की दृष्टि से मालिक के स्वरूप का दर्शन प्राप्त नहीं होता। जैसे लैला का सौंदर्य देखने के लिए मजनूँ की आंखों की आवश्यकता है, ऐसे ही मालिक के दर्शन के लिए सच्चे प्रेमी की दृष्टि की आवश्यकता है।।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
(यथार्थ प्रकाश -भाग पहला
-परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज)**
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