**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज
-रोजाना वाकिआत- 24 अक्टूबर 1932 -सोमवार
:- नवाब मुजम्मिल उल्लाह खान साहब ने ₹5000 धर्म समाज कॉलेज अलीगढ़ को प्रदान किए हैं । नवाब साहब का बहुत सा इलाका है जिला अलीगढ़ के वाके है। धर्म समाज कॉलेज का किसी मजहब या मजहबी समूह से कोई तअल्लुक़ नही है लेकिन दिल्ली के अखबार सल्तनत में नवाब साहब पर इस भलाई के काम के इनाम में वह झाड डाली है कि त्राहि त्राहि।
अभी अभी महाराज अलवर ने उससे 12 या 13 गुनी रकम अलीगढ़ यूनिवर्सिटी को अनुदान की थी लेकिन किसी हिंदु ने बुरा ना माना था। अखबार सल्तनत का मालिक एक बड़ी काबिल हस्ती है। ना मालूम इस किस्म की पक्तियां इस अखबार में क्योंकर जगह हासिल कर लेती है? तालिमी संस्थाओं का मजहब से कोई तअल्लुक़ नही है। कम से कम धर्म समाज कॉलेज तो इस दोष से कतई मुक्त है ।
क्या अच्छा होता कि अखबार सल्तनत मुस्लिम नवाब साहब की दरियादिली और उनके गैर धर्मनिरपेक्ष विवेक की दाद देता। पैगम्बर साहब दुनिया में गैर मुस्लिमों ही के लिए तशरीफ़ लाये थे और उन्होंने गैर मुस्लिमों ही को कदमों में लगाया था और अब भी इस्लाम गैर मुस्लिमों को कुबूल करने के लिए तैयार है ।तो क्या यह कहा जाएगा कि मुस्लिम भाई सिवाय अपने रुपये पैसों के गैर मुस्लिमों को हर चीज देने के लिए तैयार है?
नही नहीं। इस्लाम की बुनियाद निहायत आला उसूलो पर कायम है। और धार्मिक मुस्लिम उदार होने की कोशिश करते हैं।.
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर महाराज -
प्रेम पत्र- भाग 1- कल से आगे-( 18 )
जो बचन कि ऊपर लिखे हैं यह वास्ते समझाने और होशियार करने सच्चे परमार्थिओं के हैं , जिनको अपने जीव के कल्याण का सच्चा फिक्र है और जो दुनियाँ की नाशवानता और अपने दुख सुख की हालतों को देखकर ऐसा जतन करना चाहते हैं जिससे बारंबार देह धरने और उसके संग दुख-सुख सहने से बचें ।।
पर वह लोग जो कि संसारी हैं या विषयी और रागी या टेक धारी हैं यह बाहरमुखी परमार्थ के चलाने वाले हैं और उसी में उन्होंने अपना रोजगार यानी आमदनी की सूरत निकाल रखी है, इन बचनों को पढ़कर या सुनकर पसंद नहीं करेंगे और ना उनको मानेंगे ।
और सच सच है कि उनके वास्ते यह बचन भी नहीं है , क्योंकि उनके मन में दुनिया और उसके सामान और भोग विलास की या नामवरी की चाह जबर है। और संतों के परमार्थ में यह बातें सहज सहज छोड़नी पड़ेगी, नहीं तो अभ्यास का रस और आनंद काम आएगा या नहीं आएगा और सच्चे उद्धार में देरी होगी या विघ्न पड़ेगा।।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻*
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज
-सत्संग के उपदेश- भाग 2
-कल से आगे:
- संतमत की यह तालीम कि गुरु जिंदा और पूरा होना चाहिए, एक निहायत आला परमार्थी उसूल पर कायम है। अगर गुरु जिंदा है तो जिज्ञासु अव्वल इच्छाअनुसार उनकी परख पहचान कर सकता है और दोयम् परख पहचान होने पर उनके संग व सोहबत से भरपूर फायदा उठा सकता है और सोयम् साधन की कमाई के सिलसिले में मुश्किलें पेश आने पर सलाह व मदद हासिल कर सकता है।
इन तीन बातों के अलावा बड़ा फायदा यह है कि गायब मालिक का न तो किसी से ध्यान बन सकता है और न किसी का मन भय मानता है। हजारों इंसान मालिक को हाजिर व नाजिर मानते हुए रोजाना ऐसे कर्म करते हैं जो एक बच्चे के सामने करते उन्हे शर्म आये।
जिंदा गुरु में श्रद्धा आने पर भक्तजन बहुत कुछ डर मानता है क्योंकि उसे मालूम है कि गुरु महाराज से कोई बात छिपी न रहेगी और नाकिस कर्म बन पडने पर उसे मर्दूदे दर्बार होने की ख्वारी व तकलीफ उठानी पडेगी।
इसी तरह हजारों इंसान खुदा या परमात्मा का ध्यान करते हैं और ध्यान के वक्त कभी सूर्य की चमक और कभी बादलों या आकाश के फैलाव की जानिब तवज्जो ले जाते हैं , जिसका नतीजा यह होता है कि मालिक का ध्यान करते हुए सारी उम्र बीत जाती है लेकिन एक छिन के लिए भी ना कभी ध्यान जमता है और न मालिक का दर्शन प्राप्त होता है।
सतगुरु भक्त अपने गुरु महाराज का भय,भाव व अदब लिये हुए जिंदगी बसर करता है, जिससे उसका नाजायज़ व नामुनासिब बातों से बहुत कुछ बचाव रहता है और उसके मन के अंदर प्रेम व प्रीति का दीपक हमेशा रोशन रहता है और हस्बहिदायत ध्यान जमाने पर उसको थोड़े ही अर्से में अंतरी आँख के टिमटिमाने पर आला रुहानी घाट के दर्शन प्राप्त हो जाते हैं।
इस किस्म के दर्शन से कमरे हिम्मत बांधकर वह इस काबिल बन जाता है कि आसानी से आकाश मार्ग पर चलता हुआ सच्चे कुल मालिक के दरबार तक रसाउ ही हासिल करें और एक दिन अमर व अविनू गति को प्राप्त हो।
क्रमशः।
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
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