**राधास्वामी!!
12-06-2020-
आज शाम के सतसंग में पढे गये पाठ-
(1) राधास्वामी दीन दयाला। मोहि दरशन दीजे।। मेरे प्यारे गुरू दातारा। निज किरपा कीजे।। अब मेहर हिये उमँगाओ। जल्दी निज रूप दिखाओ।। मेरे घट में प्रेम बढाओ। तब तन मन शांति धराओ।। (प्रेमबानी-3-शब्द-8,पृ.सं.280)
(2) हे प्रीतम तुम गुन क्या गाऊँः चरनन पर मैं बलि बलि जाऊँ।। (प्रेमबिलास-शब्द-129,पृ.सं. 289)
(3) यथार्थ-प्रकाश-भाग पहला-
कल से आगे।।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**राधास्वामी!!
12-06 -2020 -आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन
- कल से आगे-
【 अनुराग और विराग】:-
(18) यह एक प्रतिदिन के अनुभव की बात है कि जब मनुष्य को किसी काम का चस्का लग जाता है तो दूसरे कामों से उसका चित्त आप से आप हट जाता है, जैसे जिन लोगों को शतरंज, ताश आदि से प्रेम है वे सब काम छोड़कर दिन भर इन्हीं खेलों में लगे रहते हैं और उन्हें सूर्य के उदय और अस्त तक की सुधि नहीं रहती।
इसी प्रकार यह आशा की जाती है कि अगर किसी के हृदय में कुल मालिक के दर्शन का सच्चा और गहरा अनुराग जाग उठे तो गृहस्थाश्रम में रहते हुए ही उसके हृदय में संसार से सहज वैराग्य उत्पन्न हो जाएगा और उसके लिए किसी अंश में भी आवश्यक न होगा कि घर बार त्याग कर जंगलों की राह ले और वहां जाकर अपने शरीर को कष्ट दे।
लेकिन मालूम हो कि यह अनुराग, जिसकी सहायता से प्रेमी परमार्थी की शुरू की कठिनाइयां ऐसे सहज में हल हो जाती है, जरा कठिनता से उत्पन्न होता है। अगर कोई मनुष्य चाहे कि केवल पुस्तकें पढ़ कर या व्याख्यान सुनकर अपने हृदय में अनुराग जगा ले तो असंभव है ।
जब किसी मनुष्य के उन पुराने संस्कारों की समाप्ति का समय निकट आ जाय, जिनके कारण उसकी सुरत को रचना के आदि में संसार में उतरना पड़ा, और उसकी सुरत का झुकाव माया अर्थात प्रकृति की ओर कम हो जाए तब कहीं उसके हृदय में कुलमालिक के चरणो के लिए अनुराग उत्पन्न होता है। यही कारण है कि संसार में बहुत से लोग, जो हरचंद बडे योग्य और चतुर है, अनुराग से शून्य हैं ,और बहुतेरे, जो बड़े सीधे सादे हैं इससे मालामाल है।
राधास्वामी-मत में ऐसे लोगों को "दयापात्र " कहा जाता है । ये ही लोग भक्ति मार्ग की कदर कर सकते हैं और ये ही साधन की युक्तियों को सीख कर संतो के उपदेश से पूरा लाभ उठा सकते हैं । इसी कारण राधास्वामी सत्संग में न विद्धत्ता की परवाह की जाती है, न किसी और सांसारिक योग्यता की। अगर परवाह है तो इसी प्रेम के अंकुर अर्थात अनुराग की।
जिस मनुष्य के हृदय में यह अंकुर मौजूद है उसे बिना रोक टोक शरीक कर लिया जाता है और जो इससे शून्य है वह प्रथम तो स्वयं ही सत्संग से दूर रहता है और यदि किसी कारण से निकट आ भी जाता है तो थोड़े ही समय में अपने आप किनारा खींच लेता है ।
राधास्वामी दयाल का बचन है-
{सारबचन,बचन 8, शब्द पहला।}
यह कहना उन जीवन कारन।
जिनके बिरह अनुराग की धारन।।
विषयी संसारी और रागी।
इनको टेक न चहिये त्यागी।।
इनको टेक सहारा भारी।
टेक बिना कुछ नाहिं अधारी।।
उनको नहीं उपदेश हमारा।
उनको जगत कामना मारा।।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
&knbsp;
(यथार्थ प्रकाश -भाग पहला -
परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!)**
............................
.....
No comments:
Post a Comment