राधास्वामी!
!08-06-2020-
आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन-
कल से आगे:
-【 राधास्वामी- मत के तीन साधन】:
- कल से आगे:-(12) हर कोई जानता है कि हर धार्मिक संप्रदाय में किसी न किसी रीति से मालिक की याद की जाती है । जैसे कोई सज्जन तसबीह और माला के द्वारा ,कोई उंगलियों पर गिन कर , विशेष नामों और मंत्रों का जप करते हैं, कोई संध्या, गायत्री, नमाज आदि के द्वारा मालिक का स्मरण करते हैं , कोई जिव्हा से उच्चारण करके , कोई मन ही मन में , कोई हृदय पर चोट लगा कर किसी पवित्र नाम का जप करते हैं ।
पर राधास्वामी- मत में जो अभ्यास की युक्ति बतलाई जाती है वह इन सबसे अलग और श्रेष्ठ है । इसके अनुसार अभ्यासी को सुरत की जबान से नाम का जप और सुरत की दृष्टि से स्वरूप का ध्यान करना होता है।।
(13) जब सुमिरन और ध्यान की सहायता से अभ्याशी का मन किसी कदर स्थिर हो जाता है तो उसे समय-समय पर सुरत की बैठक के स्थान पर चैतन्य शब्द ,जिसे संतमत की परिभाषा में अनहद शब्द कहते हैं, सुनाई देने लगता है। यह चैतन्य शब्द हर मनुष्य के अंतर में , चाहे वह किसी जाति या संप्रदाय का हो, हर वक्त जारी है, और जो कि सर्वसाधारण की तवज्जुह बहिर्मुख संसारी सामान की ओर प्रवृत्त है इसलिए उन्हें चैतन्य शब्द का अनुभव नहीं होता।।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ प्रकाश- भाग 1-
परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!
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