परम गुरु हुजूर महाराज-
प्रेम पत्र -भाग 1- कल से आगे -
चौथी- यह की दुनिया और दुनियापरस्तों और धनवालों की मोहब्बत और संग से सच्चे मालिक राधास्वामी दयाल के चरणों के प्रेम में, और अभ्यास में भी, किसी का खलल और विघ्न पड़ता है ।
यह बात हर एक अभ्याही ऐसे लोगों का थोड़ा संग करके अपने अंतर में परख सकता है । इस वास्ते मुनासिब और जरूरी है कि ऐसे जीवों का संग और मोहब्बत उसी कदर रक्खी जावे कि इस कदर जरूरी और वाजिब को ज्यादा उनमें अपने दिल को बांधना अपना वक्त बेफायदा उनके संग में या दुनियाँ की गपशप में खर्च करना अभ्यासी को मुनासिब नहीं है।
विद्यावान लोग भी जिनको सच्चा शौक किताबों को पढ़ने का है, अपने वक्त को बहुत संभाल कर खर्च करते हैं, यानी सिवाय रोजगार और देह और गृहस्थी के जरूरी कामों के बाकी वक्त अपना नई नई किताबों और अखबारों की सैर में खर्च करते हैं । फिर परमार्थी अभ्यासी को किस कदर ख्याल अपने वक्त का कि फजूल और फायदा खर्च न होवे, रखना चाहिए।। पांचवी -राधास्वामी दयाल के चरणों की सच्ची सरन और उनकी मेहर और दया का आसरा और भरोसा ।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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