Friday, July 17, 2020

कबीर


__________________________________कबीर

कबीर
रामानन्द न सूफी कोई, और न मेरे गुरु अनेकI
भरम तुम सभी मिटालो, मेरे गुरु का नाम विवेकIIटेकII

रामानन्द मेरे गुरु नहीं हैं, यह सब है गलतबयानी.
रामानंद जब गये जगत से, मेरी उम्र बहुत थी यानी.
यह ब्राह्मणों की कारस्तानी, न इरादे उनके नेकII1II
भरम तुम सभी मिटालो, मेरे गुरु का नाम विवेकIIटेकII

ब्राह्मण कर्म झूठ पे चलते, झूठ ही उनकी करनीI
यह भी झूठ गढ़ा विप्रों ने, न नीमा मेरी जननीI
रांड कोई जनके बमनी, गई ताल किनारे फेंकII2II
भरम तुम सभी मिटालो, मेरे गुरु का नाम विवेकIIटेकII

मैं जाति, वर्ण, कुल, गोत्र न मानूं, पोथी का घोर विरोधीI
मैं समतावादी, बुद्धिवादी, जनता के हित का शोधीI
मैं न पूजूं देवा क्रोधी, मैं ध्याऊं निरगुण एकII3II
भरम तुम सभी मिटालो, मेरे गुरु का नाम विवेकIIटेकII

अर्ण वर्ण की बात करें जो, उनसे न मेल बढ़ावेंI
हम अरामखोरों को, हरगिज ना अपना गुरु बनावेंI
कँवल न भीख मांगने जावें, खुद खावें रोटी सेकII4II
भरम तुम सभी मिटालो, मेरे गुरु का नाम विवेकIIटेकII(कंवल भारती )

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