*दो बातन को याद रख, जो चाहत कल्यान।*
*"नारायण" एक मौत को दूजे श्री भगवान।।*
*एक बार मसकीन जी-- से किसी ने पूछा--- महाराज यह बताएं कि प्रभु का नाम लेते समय कौन से खतरे को याद करें, जिसके भय से मन सावधान और एकाग्र हो सके।*
*मस्कीन जी कहते हैं-- काल रूपी सांप का डर रखो जो कभी भी डंक मार सकता है। काल से डरो, क्योंकि वह हर समय सिर पर मंडरा रहा है, कभी भी प्राण ले सकता है, प्राण चले जाएंगे तो फिर कुछ नहीं कर पाओगे। अतः मृत्यु को सन्मुख समझकर राम से प्रीति कर लो और गोविंद के गुणों का गान करो।*
*मृत्यु को याद करने से बैराग्य पैदा होता है, अहंकार मिटता है, नम्रता आती है । नम्रता महापुरुषों को एक दूसरे से प्रभावित करती है।*
*रहीम जी के विषय में कहा जाता है कि जब वे चित्रकूट में गोस्वामी तुलसीदास जी से मिलने के लिए गए तो तुलसीदास जी ने सोचा कि यह कवि है, अतः उन्होंने कविता बनाकर ही प्रश्न किया--- " तन धूल धूसरित भयो, कहो रहीम किस काज " अर्थात मिट्टी की धूलि से भरे हुए शरीर को लेकर कैसे आना हुआ।*
*रहीम जी उत्तर देते हैं-- " जिस चरण रज परत अहल्या तरी सो ढूढत गजराज " अर्थात मैं हाथी की तरह श्री राम भगवान के चरणों की धूलि को ढूंढ रहा हूं, जिस के स्पर्श से अहल्या तर गई थी।*
*मेरे आराध्य देव श्री राम से ये इतना प्रेम करते हैं-- यह जानकर तुलसीदास जी उनके चरणों में गिर पड़े ऐसी प्रसिद्धि है।*
*भगवान से प्रेम करने वाला प्रेमी उनके भक्ति से ही नहीं, सृष्टि के कण-कण में उसके व्यापक स्वरूप को देखकर प्रेम करने लगता है। भगवान या सृष्टि इन दोनों में से किसी एक के साथ निस्वार्थ प्रेम कर लिया तो दोनों के साथ हो जाएगा।*
*"जिन प्रेम कियो तिन ही प्रभु पायो" --- शुद्ध निश्छल निष्कपट प्रेम में कुछ देने की इच्छा होती है, लेने की नहीं होती। मसकीन जी साफ शब्दों में कहते हैं--- आजकल गुरुद्वारे और मंदिर में परमात्मा से मिलने लोग नहीं जाते, बल्कि अपने सांसारिक मनोकामना पूरी करने जाते हैं। देकर लेना यह तो एक व्यापार है।*
*देकर लेने की इच्छा न रखना भक्ति है।*
*यथार्थ में परमात्मा के द्वार तो हजारों में एक जिज्ञासु जाता है, दस हजार में एक साधु जाता है, और लाखों में एक संत जाता है।*
✍✍ हे करुणासागर! मैं आपकी शरण में हूं, प्रभु कृपा बनाए रखना।
!! जय श्री राम !!
राम अयोध्या राम की , सरयु नदी के तीर।
गली गली में है लिखी , वहाँ कथा रघुवीर।
!! जय श्री राम !!
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