🙏 *क्या धर्मग्रन्थ पढ़ने का अधिकार सबको नही है?* 🙏
जन्म के आधार पर, तुम्हारे कुल और ख़ानदान के आधार पर तो वर्गीकरण हिंदू धर्म में हो ही नहीं सकता क्योंकि वेदांत का मूल सिद्धांत ही यही है कि शरीर तो तुम हो ही नहीं, जब तुम शरीर हो ही नहीं तो शरीर के आधार पर तुम्हारा वर्गीकरण कैसे हो गया? तो शरीर के आधार पर न कोई पंडित है, न कोई ब्राह्मण है। ये जो कुरीति है कि ब्राह्मण घर में पैदा हुआ और शूद्र के घर में पैदा हुआ तो शूद्र, ये कुरीति समाजिक है, धार्मिक नहीं।
बात चेतना के स्तर की है, चेतना के स्तर के आधार पर लोगों की श्रेणियाँ निर्धारित होती हैं, वर्गों का विभाजन होता है, ऐसी मंसा थी वेदांत की, उस मंसा को बाद में लोगों ने भ्रष्ट कर दिया। कोई ऐसी चीज़ नहीं है जो समय में प्रवाहित हो और समय के प्रवाह में आगे जाकर दूषित न हो जाए।
शूद्र वो हुआ जिसकी चेतना का स्तर बिल्कुल नीचला है और वो अपने आपको शरीर के अलावा कुछ जानता ही नहीं, जिसकी चेतना पशु समान है उसको शूद्र बोलते हैं। तुम अपनी चेतना को कहाँ तक ले जा पाए ये बात तय करती है कि तुम ब्रह्माण हो या शूद्र।
🚩 *सनातन प्रज्ञा* 🚩
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