**राधास्वामी!! 18-02-2021- आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) सुरतिया करत रही। गुरु दर्शन सहित उमँग।।-( सुरत खिलावत मन बिगसावतः नई उठावत प्रेम तरंग।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-9-पृ.सं.110,111,112)
(2) राह रपटीली साईं घर दूर।।टेक।। गहरी नदियाँ मग बिच बहियाँ। करम भरम की छाई धूर।।-(रोय रोय कर नैन गँवायो। चारों ओर भई मजबूर।। ) (प्रेमबिलास-शब्द-8-पृ.सं.10,11)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
आज शाम सत्संग में पढ़ा गया- बचन
कल से आगे -(159 )-
अंत में आक्षेपक संतोष के लिए पुस्तक सारबचन वार्तिक से एक अवतरण उपस्थित करते हैं जिसके पढ़ने से ज्ञात होगा कि राधास्वामी- मत के पवित्र आचार्यों की समाधिपूजा के विषय में क्या सम्मति थी। संतों का ईस्ट धारण करने वाले भाइयों का वर्णन करते हुए फरमाया है:- "
जैसाकि और लोग मूरत या तीरथ और पोथी और ग्रंथों की पूजा में लगे हैं ऐसे ही जो संतो के घर से के जीव भी पूजा समाधि और झंडा और ग्रंथ वगैरा में लग गये और संतों के निज स्वरुप और उनके पद का भेद और हाल रास्ते का और तरीक अभ्यास का मालूम नहीं हुआ और बाहरमुखियों की तरह सिर्फ समाधि और ग्रंथ वगैरा की टेक बाँध ली तो वे भी और मतों के बाहरमुखी पूजा करने वालों की तरह कर्म और भर्म में अटक गये और मुक्ति की प्राप्ति उनको भी नहीं हुई"
( भाग पहला, पृष्ठ ८० और ८१ हिंदी एडिशन, मुद्रित सन् १९०७ ई०)।।
इसी प्रकार दूसरे स्थान पर आया है:-
" हिंदू और मुसलमान दोनों में जो अंधे हैं उन के वास्ते तीर्थ व्रत मंदिर और मस्जिदों की पूजा है और जिनको आंखें है उनके वास्ते वक्त के सतगुरु की पूजा है। हरएक के वास्ते यह बात नहीं है। सिर्फ सत्संगी को और जिनको आंखें हैं उन्ही को सतगुरु की कदर होगी" ( भाग दूसरा, बचन १३३,पृ.सं.७०)
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻 यथार्थ प्रकाश-
भाग दूसरा-
परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**
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