आनंदित रहने की कला*/ कृष्ण मेहता
🕉️🌅🌄शुभप्रभात🌅🌄*
एक राजा बहुत दिनों से विचार कर रहा था कि वह राजपाट छोड़कर *अध्यात्म* (ईश्वर की खोज) में समय लगाए ।
राजा ने इस बारे में बहुत सोचा और फिर अपने गुरु को अपनी समस्याएँ बताते हुए कहा कि उसे राज्य का कोई योग्य वारिस नहीं मिल पाया है । राजा का बच्चा छोटा है, इसलिए वह राजा बनने के योग्य नहीं है ।
जब भी उसे कोई पात्र इंसान मिलेगा, जिसमें राज्य सँभालने के सारे गुण हों, तो वह राजपाट छोड़कर शेष जीवन अध्यात्म के लिए समर्पित कर देगा ।
*गुरु ने कहा, "राज्य की बागड़ोर मेरे हाथों में क्यों नहीं दे देते ? क्या तुम्हें मुझसे ज्यादा पात्र, ज्यादा सक्षम कोई इंसान मिल सकता है ?"*
राजा ने कहा, *"मेरे राज्य को आप से अच्छी तरह भला कौन संभल सकता है ?*
*लीजिए, मैं इसी समय राज्य की बागड़ोर आपके हाथों में सौंप देता हूँ ।"*
गुरु ने पूछा, *"अब तुम क्या करोगे ?"*
राजा बोला, *"मैं राज्य के खजाने से थोड़े पैसे ले लूँगा, जिससे मेरा बाकी जीवन चल जाए ।"*
गुरु ने कहा, *"मगर अब खजाना तो मेरा है, मैं तुम्हें एक पैसा भी लेने नहीं दूँगा ।"*
राजा बोला, *"फिर ठीक है, "मैं कहीं कोई छोटी-मोटी नौकरी कर लूँगा, उससे जो भी मिलेगा गुजारा कर लूँगा ।"*
गुरु ने कहा, *"अगर तुम्हें काम ही करना है तो मेरे यहाँ एक नौकरी खाली है । क्या तुम मेरे यहाँ नौकरी करना चाहोगे ?"*
राजा बोला, *"कोई भी नौकरी हो, मैं करने को तैयार हूँ ।"*
*गुरु ने कहा, "मेरे यहाँ राजा की नौकरी खाली है । मैं चाहता हूँ कि तुम मेरे लिए यह नौकरी करो और हर महीने राज्य के खजाने से अपनी तनख्वाह लेते रहना ।"*
एक वर्ष बाद गुरु ने वापस लौटकर देखा कि राजा बहुत खुश था ।
अब तो दोनों ही काम हो रहे थे । जिस अध्यात्म के लिए राजपाट छोड़ना चाहता था, वह भी चल रहा था और राज्य सँभालने का काम भी अच्छी तरह चल रहा था । अब उसे कोई चिंता नहीं थी ।
*क्या परिवर्तन हुआ ?*
*कुछ भी तो नहीं!*
*राज्य वही,*
*राजा वही,*
*काम वही;*
*बस दृष्टिकोण बदल गया ।*
इसी तरह जीवन में अपना दृष्टिकोण बदलें ।
मालिक बनकर नहीं, बल्कि यह सोचकर सारे कार्य करें की, *"मैं ईश्वर कि नौकरी कर रहा हूँ"*
*अब ईश्वर ही जाने।*
*सब कुछ ईश्वर पर छोड़ दें ।*
*फिर आप हर समस्या और परिस्थिति में खुशहाल रह पाएँ।
🙏🙏🙏
सदैव प्रसन्न रहिये
जो प्राप्त है-वो पर्याप्त है
*🥀
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