**राधास्वामी!! 21-02-2021-(रविवार) आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) हे सहेली अब गुरु के मारग चलना।
मन मारग छिन छिन तजना।।
-(राधास्वामी बचन पकडना।
फिर जम से काहे को डरना।।)
(सारबचन-शब्द-8-पृ.सं.269)
(2) अनंता तेरी गति नहिं जानी।।टेक।।
अपना भेद आप तुम गाया।
संत रुप जग आनी।।-
(मौपे दया करी राधास्वामी।
दीना चरन ठिकानी।।)
(प्रेमबानी-2-शब्द-7-पृ.सं.409,410) सतसंग के बाद:-
(1) दिल का हुजरा साफ़ कर जानाँ के आने के लिये।
ध्यान गैरों का उठा उसके बिठाने के लियै।।
(संतसानी संग्रह-2-शब्द-30,पृ.स.84,)
(2) अरी हे सहेली प्यारी। मन से क्यों तू हारे ,
गुरु है तेरे सहाई।।
(प्रेमबानी-3-शब्द-23-पृ.सं.173,174)
(3) पीले प्याला ओ मतवाला। प्याला नाम अमी रस का रे।।
-(संत बानी संग्रह-2-शब्द-13-पृ.सं.48)
(4) राधास्वामी आय प्रगट हुए जब सै।
राधास्वामी नाम सुनावें तब से।।
(सारबचन-शब्द-4-पृ.सं.54)
(5) तमन्ना यही है कि जब तक जिऊँ।
चलूँ या फिरुँ या कि मेहनत करूँ।।
पढूँ या लिखूँ मुँह से बोलू कलाम।
न बन आयज मुझसे कोई ऐसा काम।।
जो मर्जी तेरी के मुवाफिक न हो।
रजा के तेरी कुछ मुखालिफ जो हो।। ll
बधाई हे बधाई हे बधाई।।
( डा० जोशी बहनजी एवं पार्टी द्वारा)
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**ll
ll **परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज-
भाग-1- कल से आगे:-( 32)-
11 जून 1940 को सत्संग में हुजूर ने फरमाया- मैंने पहले भी ऐसा बयान किया कि पिछले छः साल से मैं बराबर रोजाना हुजूर राधास्वामी दयाल के चरणों में प्रार्थना करता रहा हूँ कि वह दयाल सत्संगियों को ऐसी सहूलियतें बख्शें जिसमें उनमें से हर एक को खाना व कपड़ा आसानी से मिल सके।
अब दया से ऐसा मौका हासिल है कि हर सत्संगी उसका फायदा उठावेँ आप साहिबान बतलावे कि आप लोग सुबह व शाम के सत्संग और व्यायाम के अलावा और भी काम करने को तैयार हैं या नहीं?
ऐसा वक्त जिंदगी में हमेशा नहीं आता। गत महायुद्ध के जमाने में अलबत्ता ऐसा वक्त आया था, लेकिन उस वक्त सिवाय इने गिने लोगों के, सबने इसका फायदा नहीं उठाया। जिन भाइयों और बहिनों ने उस वक्त काम किया उनमें से उस वक्त मर्दों ने औसतन बीस-पच्चीस रुपये से पचास रुपये तक औरतों ने दस बारह रुपये माहवार पैदा किया लेकिन इस दफा हम में से सबको इस काम में हिस्सा लेना चाहिए।
हुजूर साहबजी महाराज ने अक्षर फरमाया कि आइंदा चल कर भंडार घर से खाना पक कर घर पहुँचा करेगा और घर की तमाम औरते व लड़के काम करेंगे । आप सब लोग काम करें और आपकी उजरत आपके हिसाब में जमा हो जाया करे। जिंदगी की सब जरूरी चीजें आपको बदस्तूर मिलती रहेंगी। अब वक्त ऐसा आ गया है कि जो काम करेगा उसी को खाना मिलेगा।
अगर आप सब लोग तैयार हो तो बड़े भाई साहब यह दरख्वास्त हुजूर साहबजी महाराज के चरणों में पेश करने वाले हैं और छोटे भाई साहब उस पर सिफारिश करने के लिए तैयार हैं ।
ऐसी सूरत में प्रार्थना मंजूर हो जाने की पूरी उम्मीद है। याद रखिये कि अगर काम की बौछार आ गई तो आप में से हर एक को काम करना होगा ।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-
[ भगवद् गीता के उपदेश]- कल से आगे:- मतलब यह कि योगी शरीर,मन, बुद्धि और इंद्रियों से भी कर्म करते हैं लेकिन आसक्ति छोड़कर ताकि उनका आत्मा शुद्ध रहे। युक्त यानी सावधान पुरुष कर्मफल से मुँह मोड़ कर हमेशा कायम रहने वाली शांति हासिल करता है और आयुक्त पुरुष ख्वाहिश के बस फल की कामना करके बँध जाता है।
मन से सब कर्मों को त्याग कर शरीर का निवासी अर्थात् आत्मा राजा बनकर अपनी नौ द्वार वाली पुरी अर्थात् देह में आराम से निवास करता है और न खुद कोई काम करता है न कराता है देह का प्रभु अर्थात् आत्मा न कर्ता का भाव अर्थात् कर्तापन पैदा करता है न कर्म और न कर्मों के फलों के साथ संबंध। वह सिर्फ स्वभाव प्रकट करता है।आत्मा न किसी का पाप लेता है न किसी का पुण्य। चूँकि ज्ञान को अज्ञान ने ढाँक रक्खा है इसलिए जीवात्मा को भ्रम हो जाता है।【15】
पर जिनका अज्ञान आत्मा के ज्ञान से नष्ट हो गया है और जिनका ज्ञान सूर्य की तरह रोशन है उनको ज्ञान से परमात्मा का प्रकाश होता है। वे लोग परमात्मा का ध्यान करते हुए, परमात्मा में लीन,उसकी जात में कायम, सिर्फ उसका भरोसा किए हुए ज्ञान के जरिए अपने पापों की मैल झाड़कर ऐसी गति को प्राप्त होते हैं कि जहाँ से फिर वापसी नहीं होती। सच्चे ज्ञानी पुरुष के लिए ऐसे ब्राह्मण में, जो विद्या और दीनता से सुशोभित है, और गाय, हाथी बल्कि कुत्ते व चांडाल में कोई फर्क नहीं होता क्योंकि वह किसी से राग और द्वेष नहीं रखता। जिन लोगों का मन अडोल रहता है वे इस दुनियाँ में भी हर चीज पर फतेह पाये हुए हैं और चूँकि ब्रह्म सब दोषो से पाक और अडोल है इसलिए वे ब्रह्म ही में कायम होते हैं। ब्रह्म का जानने वाला, ब्रह्म की जात में कायम, स्थिरबुद्धि, निर्लेप, न प्रिय की प्राप्ति की में सुखी होता है न अप्रिय की प्राप्ति में दुखी होता है।【20】
क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हुजूर महाराज-
प्रेम पत्र- भाग 1- कल से आगे:-
इसी तरह जो पुरुषों को जनेऊ देने वाले से उपदेश काफी मिल जाता तो फिर वे उसी के मुआफिक कार्रवाई करते हैं और परमार्थी फायदा उससे उठाते । पर सब जगह बात देखने में आती है कि सिवाय उन लोगों के (कि जिनका मत यह है कि दुनियाँ के भोग बिलास करना और जैसे-तैसे धन जमा करके अपने मन की दुनियावी चाहो को पूरा करने में खर्च करना , और जिनका खुदा और परमेश्वर धन है कि उसकी प्राप्ति के वास्ते जैसी तैसी खिदमत और चाहे जिसकी नौकरी होवे बड़ी खुशी और उमंग के साथ बजा लाना, और जिनका गृह स्त्री है कि जैसे वह हुक्म करे उसका दिल और जान से अमल करना) और जितनी ऊँची जाति वाले लोग हैं वे जरूर दूसरा गुरु धारण करते हैं, यानी जो टेकी हैं वह अपने घर आने की चाल और रस्म के मुआफिक खानदानी गुरु धारण करते हैं, और जो सच्चे खोजी परमार्थ के हैं , चाहे ऐसा खोज कर उनके मन में पहले ही यानी वंशावली गुरु करने से पैदा होवे या पीछे, वे सच्चा और भेदी गुरु तलाश करके जिस मत और पंथ में मिले उसको अपना गुरु धारण करके अपना जन्म सफल करते हैं। फिर इस मुआमले में भी उन निंदको साहिबों की बेखबरी और मूर्खता अपनी बिरादरी और कुल ऊँची कौमों की रस्म और चाल से जाहिर है।।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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