Friday, February 19, 2021

सतसंग सुबह RS 20/02


 **राधास्वामी!! 20-02-2021- आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-                                   

  (1) हित कर कहता सुन सुर्त बात। गोता मत खा मूरख साथ।।-(कहें यह राधास्वामी अचरज बात। मिलज जब सतसँग सरन समात।।) (सारबचन-शब्द-7-पृ.सं.268,269)                                                

(2) अनामी प्यारे राधास्वामी।।टेक।। गत मत तुम्हरी कोइ नहिं जाने। घट घट अंतरजामी।।-(राधास्वामी गुन गाऊँ मैं नित नित। मोहि लीना चरन मिलानी।।) (प्रेमबानी-2-शब्द-6-पृ.सं.406)                                       

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज-

 भाग -1- कल से आगेः- ( 31)-    

                             

  7 जून 1940 प्रेमी भाई माधवराव नायडू के संबंध में हुजूर ने फरमाया कि प्रेमी भाई माधव राव जी संभवत: 1916 में रिटायर होने के बाद मदरास से यहाँ सत्संग में आ गये थे। कुछ दिनों की बीमारी के बाद आज तीसरे पहर राधास्वामी धाम तशरीफ ले गये।

इस अरसे में शायद ही कभी जन्म-भूमि को वापस गये होंगे। जहाँ तक मेरा ख्याल है वह इस तमाम अरसे में हुजूर साहबजी महाराज के चरणों में हाजिर रहे। उनको सबके साथ मोहब्बत थी और किसी के साथ लड़ाई झगड़ा न था।आप अभ्यास के पक्के थे और हुजूर साहबजी महाराज के प्यारे  थे। उनकी बीमारी का तमाम जमाना बहुत अच्छी तरह से गुजरा।

 अपनी रवानगी से काफी अरसा पहले उन्होंने अपनी लड़की और दामाद को बुलाने के लिए कहा। चुनाँचे लोग कल यहाँ आ गये और उन्होंने उनको अपने जीवन- काल में देख लिया। आज तीसरे पहर आपने आखिरी सफर अख्तियार किया। मुझे विश्वास है कि आप लोग मेरे साथ इस प्रार्थना में शामिल होंगे कि हुजूर राधास्वामी दयाल दया फरमा कर उनको अपने चरणों में निवास दें।


क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज

-[ भगवद् गीता के उपदेश]-

कल से आगे:-

 लेकिन हे अर्जुन! योगसाधन के बिना सच्चा त्याग अत्यंत कठिन है। योगयुक्त (योग में सावधान) मुनि जल्दी ही ब्रह्म में पहुँच जाता है। जो योगमुक्त है, शुद्धात्मा है, जिसने मन व इन्द्रियाँ बस में कर रक्खी है, जिसका आत्मा जगत् का आत्मा है, वह कर्म करता हुआ भी कर्म के असर से निर्लेप रहता है।

 योग युक्त तत्वदर्शी देखता, सुनता, छूता, सूंघता, खाता, चलता- फिरता, सोता और साँस लेता हुआ यही अनुभव करता है कि उससे स्वयं कोई कर्म नहीं बन रहा है।

 वह बोलता, देता, लेता और  आँखें खोलता और बंद करता हुआ यही अनुभव करता है कि इन्द्रियाँ अपने विषयों के साथ संबंध कर रही है।

 जो शख्स कर्म करता है लेकिन उनमें दिल की पकड़ छोड़ कर और उन्हें ब्रह्म के अर्पण करके उस पर उनका कोई असर नहीं होता जैसे कमल के पत्ते पर जल का कोई असर नहीं होता।

【 10】                             

   क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**



**परम गुरु हजूर महाराज-

 प्रेम पत्र- भाग 1- कल से आगे-( 3)-


 [तीसरा पुरुष और स्त्रियों को एक गुरु धारण करके दूसरा गुरु करना]:-

यह निहायत कमसमझ और ओछी बुद्धि वालों की बात है। वे कहते हैं कि स्त्रियों का गुरु उनका पति है। दूसरा गुरु धारण करने की उनको जरूरत नहीं है। और इसी तरह से पुरुषों का गुरु व पंडित या पुरोहित है कि जिसने उनको यज्ञोपवीत यानी जनेऊ  पहनाया। जो यही बात दुरुस्त है तो फिर परमार्थ की समझ और करनी तो खत्म हुई, क्योंकि पुरुष अपनी अपनी स्त्रियों से सिवाय दुनिया के कारोबार के या निहायत नीचे दर्जे की सेवा और खिदमत के, जैसे रोटी पकाना, मकान और बर्तन साफ करना, लड़कों को खिलाना या अपने भोग बिलास के और कोई काम नहीं लेता और न उनको परमार्थ की बात सुनाता है और समझाता है।

फिर ऐसे गुरु से क्या फायदा परमार्थ का या अंतर की आँख खुलने का या मालिक की पहचान और उसके मुनासिब भजन और बंदगी करने का हासिल हो सकता है?  जैसे कि वह पुरुष  और परमार्थ विद्या से खाली है, ऐसे ही उसकी स्त्री भी खाली रहेगी।

 और जो हर एक ऊँची कौम का दस्तूर जो इस वक्त में जारी है देखा जाता है तो मालूम होता है कि बहुत सी जगह स्त्रियाँ बेवा और सुहागिन बराबर गुरु धारण करती है।जो निंदको की यह बात सही है कि स्त्रियों को बिल्कुल गुरु करना जरूरी नहीं , तो फिर बेवा होने पर उनको भेषो या पंडितों या साहबजादो या  गुसाइयों से क्यों उपदेश दिलिया जाता है? 

उनके पति का ही उपदेश क्यों नहीं काफी समझा जाता है?  पर किसी को भी अपने पति से कुछ परमार्थी मदद नहीं मिलती, नहीं तो बेवा होने पर उसी की कार्रवाई करती। इससे साफ जाहिर है कि यह निंदा की बातें उन लोगों की बिल्कुल नादानी और बेखबरी का सबब है कि अपने और बिरादरी के घरों के हाल से अच्छी तरह से वाकिफ नहीं है और दूसरों पर तान मारने को तैयार होते हैं। कर्मशः                        

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


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