Wednesday, February 17, 2021

सतसंग शाम RS 17/02


राधास्वामी!! 17-02-2021- आज शाम सतसँग में पढे गये पाठ:-      

                            

  (1) सुरतिया अचरज करत रही। पिरेमी जन का देख बिलास।।

-(राधास्वामी धाम पाय मगनानी।

आज हुई मेरी पूरन आस।।)

(प्रेमबानी-4-शब्द-8-पृ.सं.110)   

                                                                  

(2) इतनी अरज हमारी। सुन लो पिता पियारे।

 चरनों मैं आ गिरा हूँ। मैं दास अब तुम्हारे।।

एक ताव मन को दीना। बहने लगा पसीना।

 फिर परचा एक देकर। पकडा भुजा पसारे।।

-(हे दयाल मानो बिन्ती। दासी की मेटो चिन्ती।

धुर घर की मेहर माँगूः राधास्वामी ओट धारो।।)


 (प्रेमबिलास- शब्द-7-पृ.स. 9,10) 

                                                          

(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।                        🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**


**राधास्वामी!! 17-02 -2021

आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन-

कल से आगे-( 158)-   

                                                    

 प्रश्न-पर आपके यहाँ हार चढ़ाने और दर्शन करने के अतिरिक्त मत्था टेकने के लिए भी तो आज्ञा है ?  

                                       

 उत्तर- मत्था टेकना भी आदर -सूचक रीती है। सभी हिंदू अपने माँ बाप और दूसरे वृद्ध जनों को और अपने धर्मपुस्तकों को नमस्कार करते हैं। आर्य-समाजी 'नमस्ते' शब्द का दिन भर प्रयोग करते हैं । इसका अर्थ भी 'आपको नमस्कार है'  है। और वेदों में तो साँपों, कुत्तो, पृथ्वी आदि तक को नमस्कार किया गया है। जरा निम्नलिखित आवतरणों का अवलोकन करें:-                                                                                                     "सांपो में से जो अग्नि से जन्मे, जो औषधियों से जन्मे हैं, जो जलों में उत्पन्न हुई बिजलियाँ होकर आये हैं, जिनकी बहु प्रकार से बड़ी बड़ी जातियाँ हैं, उन सर्पों को हम नमस्कार से पूजते हैं" ( अथर्व वेद काण्ड १०, सूक्त ४,मंत्र २३, पंडित राजाराम का अनुवाद)    

                                                    

नमः हो रुद्र के एलबकारो (शोर करने वालों) को, बिन सूक्त के खाने वालों को, बड़े मुँह वाले कुत्तों को, यह मैंने नमस्कार किया है"।          

 नमः हो तेरी ललकारो वाली (सेनाओं ) को, नमः हो तेरी बालोंवालियो(ये बालोवालियाँ कौन है )

को, नमः नमस्कारकीगइयों को, नमः हो मिलकर आनंद मनातियों को, नमः हो हे देव! तेरी सेनाओं को, हमारे लिए स्वस्ति हो, हमारे लिए अभय हो" ( अथर्व वेद कांड ११, सूक्त २, मंत्र ३० और ३१)।        

"चट्टान, मैदान ,पत्थर और धूलि, यह सारी भूमि, जो पूरी तरह संभाली हुई होती है, उस सोने की छाती वाली पृथ्वी को मैं नमस्कार करता हूँ" ( काण्ड १२, सूक्त १, मंत्र २६) 

                                     "

 जिसमें अन्न, धान और जौ होते हैं, ये पाँच जिसकी मनुष्य जातियाँ हैं उस भूमि को नमस्कार हो, मेघ जिसका पति है और वृष्टि (बारिश) जिसकी चर्बी है" ( मंत्र ४२)। 

                  

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻 यथार्थ प्रकाश

 -भाग दूसरा- परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!


🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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