Saturday, February 27, 2021

अंबाला मे हुजूर का वचन /04/5/2015


*परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज के पवित्र जन्म स्थान-(संत समागम, मोहल्ला कलाल माजरी, अम्बाला) में प्रातः 4.5.2015 को सतसंग दौरे पर परम पूज्य हुज़ूर प्रोफ़ेसर प्रेम सरन सतसंगी साहब द्वारा*        

 

*अत्यन्त जलाल में* *फ़रमाया गया अमृत बचन*

 


*यह एक ऐतिहासिक क्षण है और राधास्वामी दयाल के वांशिक परिवार की सदस्यता भी मौजूद है इस स्थान पर। परम गुरु साहबजी महाराज इस आयोजन में राधास्वामी दयाल के रूप में इस सभा के सभापति हैं। मुझे एक विशेष सेवा के लिए आज अगम आरती करने का सुअवसर प्राप्त है। हुज़ूर साहबजी महाराज के आदेश पर, यह मान्यता है कि, मैंने इस संसार में जन्म लिया, और सच्चा संत सतगुरु राधास्वामी दयाल ही हैं और उनकी आरती करने का सर्वश्रेष्ठ साधन अगम आरती करने का है और यह सौभाग्य, जैसा मैंने कहा, दयालबाग़ के वर्तमान घोषित संत सतगुरु को ही प्राप्त है इसलिये मैं दयालबाग़ या राधास्वामी सतसंग के संत सतगुरु का प्रतिनिधित्व करता हुआ, राधास्वामी दयाल से भिन्न एक पद नीचे, अगम पुरुष पद से, आज उन्हें श्रद्धांजलि (आरती), परम पुरुष पूरन धनी राधास्वामी दयाल को,परम गुरु साहबजी महाराज के रूप में, प्रस्तुत करता हूँ। अब पाठ करिये। राधास्वामी।*


*पाठ पढ़ा गया:-            आज साहब घर मंगलकारी।प्रसाद वितरण के पश्चात दूसरा पाठ पढ़ा गया:*

*स्वामी तुम काज बनाये सबन के। *           *उल्लिखित वर्णन के संदर्भ में संत समागम के बाहर निम्न पाठ की कड़ियों की ओर विशेष ध्यान आकृष्ट किया गयाः कौन करम हम ऐसा कीन्हा। आज साहब घर आये जी। (प्रेम प्रचारक, 18 मई, 2015)*

*परम पूज्य हुज़ूर डा. प्रेम सरन सतसंगी साहब का महत्त्वपूर्ण संदेश*


*परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज के पवित्र भंडारे के सुअवसर पर (मध्याह्न 15.2.2004)*

*..............आपने यह भी सुना कि मुख्य वस्तु सतसंग में राधास्वामी दयाल की प्रसन्नता है।* *और क्योंकि सबकी रसाई राधास्वामी धाम तक नहीं है इसलिये उनके प्रतिनिधि सतगुरु स्वरूप की प्रसन्नता प्राप्त करना आसान मालूम होता है। उसके बारे में भी परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज ने हमें बताया कि अगर आपमें निर्मलता पवित्रता इत्यादि उत्पन्न होती हैं और अडोल प्रेम और शान्ति आपको प्राप्त हो जाती है तो यह समझना चाहिये कि राधास्वामी दयाल प्रसन्न हो गये।अब अगर राधास्वामी दयाल का मिशन है कि पहले वह सतसंगियों को सुपरमैन बनायें और उसके बाद उनके उदाहरण के अनुकरण और अनुसरण से सारा प्राणिमात्र सुपरमैन बन सके तो हमारे ऊपर यह बड़ी ज़िम्मेदारी आ जाती है कि हम, राधास्वामी दयाल ने जो सेवा सुपरमैन बनने की बख़्शी है, उसको पूरी करें और उनकी प्रसन्नता प्राप्त करें। इसके लिये उन्होंने दयालबाग़ में साधन भी उपलब्ध करा दिये। दयालबाग़ की संस्कृति या सतसंग की संस्कृति जिसका उद्देश्य है सुपरमैन की नस्ल तैयार करना सतसंग में, उसके लिये उन्होंने शिक्षा का प्रबन्ध कर दिया। यहाँ की शिक्षा में आप देखेंगे कि सम्पूर्ण मानव के उद्भव की कल्पना की जाती है जो दूसरे शब्दों में सुपरमैन की कल्पना है। आप जो शैक्षिक पाठ्यक्रम का अध्ययन करते हैं, उसके द्वारा जो बौद्धिक विकास होता है और जो आपको धार्मिक अध्ययन और भारतीय संस्कृति के अध्ययन का अवसर प्राप्त होता है, उससे आप में ब्राह्मण के गुण आते हैं।* *आप शारीरिक क्रिया कलाप करके और खेलकूद में भाग लेकर के अपने को स्वस्थ और बलवान बनाते हैं और शिक्षा के माध्यम से प्रशासनिक क़ाबिलियत प्राप्त करते हैं, यह क्षत्रिय के गुण उत्पन्न करने के लिये प्रयत्न है। हमारी नवीन शिक्षा पद्धति में कार्यानुभव पाठ्यक्रम और व्यावसायिक शिक्षा को शैक्षिक पाठ्यक्रम में अभिन्न रूप से शामिल कर लिया गया है। और इस प्रकार हम व्यवसायों के लिये गुण प्राप्त करते हैं और यह वैश्यों के गुण हुए। जो विभिन्न सेवाएँ हम सतसंग के परिवेश में और शिक्षण संस्थान के पाठ्यक्रम द्वारा करने का अवसर प्राप्त करते हैं, जैसे सामाजिक सेवा कार्यक्रम इत्यादि उससे शूद्रों के गुण उत्पन्न होते हैं।*            *यह कहा जा सकता है कि यह शिक्षा तो सिर्फ़ उनको मिल पाती है जो दयालबाग़ के शिक्षा संस्थानों में पढ़ने का सुअवसर प्राप्त करते हैं।तो इसके लिये भी अब कुछ पहल की जा रही है कि इस शिक्षा पद्धति जिससे कि सुपरमैन बन सकते हैं उनको सतसंगी समुदाय तक देश के कोने कोने में और विदेश में भी पहुँचाया जा सके और इसके लिये दूरगामी शिक्षा और शिक्षा के विकेन्द्रीकरण द्वारा ऐसे प्रयास करने का ख़्याल है।तो आप देखेंगे कि यह सब नीतियाँ हमको हमारे उद्देश्य की तरफ़ ले जाती हैं, जैसा कि परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज ने अपने अमृत बचनों में हमें बताया।*                       *प्रेम प्रचारक,दिनांक 8 मार्च, 2004,पुनः प्रकाशित 3 मार्च, 2020 का अंश)*


 

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