राधास्वामी!! 23-02-2021- आज सुबह सतसँग में पढे गये पाठ:-
(1) सुरत तू दुखी रहे हम जानी।।टेक।। जा दिन से तुम शब्द बिसारा। मन सँग यारी ठानी।।-(राधास्वामी कहन सम्हारो। दुख छूटे सुख मिले निशानी।।) (सारबचन-शब्द-10-पृ.सं.270,271)
(2) अबोला तेरी लीला भारी।।टेक।। अंस होय सतपुर से निकसीं। तिरलोकी उन लीन रचा री।।-(सुरत शब्द का कर अभ्यास। राधास्वामी सरन हिये बिच धारी।।) (प्रेमबानी-शब्द-9-पृ.सं.410,411)
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज-
भाग 1- कल से आगे:-( 35 )- 21 जुलाई 1940
को विद्यार्थी के सत्संग में एक शब्द पढ़ा गया-
गुरु प्यारे नजर करो मेहर भरी।
(प्रेमबानी भाग,३,बचन १२, शब्द-१)
हूजूर ने पाठ खत्म होने के बाद छोटे लड़कों से पूछा कि " नजर प्रेम भरी चाहते हैं या कोई चीज रसभरी?"
हुजूर का इशारा आमों की तरफ था जो उस वक्त रक्खे हुए थे।
लडकों ने जवाब दिया-' नजर मेहर भरी।'
हुजूर ने फरमाया- आपको अभी से अपने जीवन का आदर्श कायम कर लेना चाहिए। अभी से यह बात आपको तय कर लेनी चाहिए कि आप बड़े होने पर और तालीम खत्म होने पर क्या काम करेंगे और किस तरह का जीवन व्यतीत करेंगे। आप के जीवन का आदर्श ऊँचा होना चाहिए हर काम को उसी आदर्श को सामने रख कर करना चाहिए।
दूसरी बात जिसकी तरफ मैं आपकी तवज्जह दिलवाना चाहता हूँ वह यह है कि आप मे से हर एक को सही कर्तव्य का ज्ञान होना चाहिए। आपको जीवन-काल में कईं किस्म के लोगों से वास्ता पड़ता है, हर एक के प्रति आपके खास खास कर्त्तव्य हैं। मिसाल के तौर पर आप लोगों को चाहिए कि अपनी छोटों से प्यार व मोहब्बत से बर्ताव करें और बड़ों के साथ इज्जत व अदब से पेश आवें।
इसी तरह से आपके कर्तव्य अपने घर व परिवार अपने शिक्षालय,अपने देश और कुल मालिक के प्रति भी खास और मुकर्रर है जिनका पालन करना आप लोगों के लिए उचित है। आप इन तमाम कर्तव्यों को अपनी पसंद और सुविधा के अनुसार तरतीब दे सकते हैं।
मेरी राय में, आपका अपने विद्यालय के प्रति जो कर्तव्य है, वह खासकर मौजूदा हालत में आप लोगों के लिए सबसे बड़ा और आवश्यक है । अगर आप इस कर्त्तव्य का अच्छी तरह से पालन करेंगे तो आप पाएंगे कि यहाँ के कार्यकर्ता और तमाम अध्यापक आपके हमदर्द और शुभचिंतक हैं और आपके आराम व आसायश का हर तरह ख्याल रखने वाले हैं। और यहाँ के कायदे और पाबंदियाँ धीरे धीरे आपके अंदर एक बेहतर और खुशगवार तबदीली करेंगी।
क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
**राधास्वामी! परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-
[ भगवद् गीता के उपदेश]
- छठा अध्याय- 【अध्यात्म योग】
-[ सन्यास और योग में विरोध नहीं है। फल का त्याग किये बिना कोई योगी बन ही नहीं सकता। अलबत्ता योगी बनने के लिए योग साधन करना आवश्यक है।
योग साधन की विधि बयान करते हुए श्रीकृष्ण जी हिदायत फर्माते हैं कि उनका ध्यान किया जावे और उनके दर्शन की प्राप्ति की इच्छा लेकर साथ किया जावे। इसके बाद योग- गति और ब्रह्मस्पर्श के अपार आनंद का बयान होता है। मगर अर्जुन मन की चंचलता का उज्र पेश करके इस गति को असाध्य या अप्राय साबित करता है।
लेकिन श्रीकृष्ण जी इत्मीनान दिलाते हैं कि लगातार अभ्यास और वैराग्य से मन बस में लाया जा सकता है और विश्वास दिलाते हैं कि अगर किसी योगी का एक जन्म में कार्य पूरा न हो तो उसका कोई बिगाड नहीं होता, उसे आइंदा बेहतर जन्म मिलता है और वह रफ्ता रफ्ता अपना कार्य पूरा करके एक दिन परम गति को प्राप्त हो जाता है।
परम गति से मुराद कृष्ण जी के रूप में समा जाना है। क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र- भाग-1- कल से आगे:- संतो ने कहा है कि:-
सुरत शब्द बिन जो गुरु होई । ताको छोड़ो पाप कटा ।। ★ दोहा ★
ओछे गुरु की टेक को, तजत न कीजै बार। द्वार न पावै शब्द का,भटके बारम्बार।। गुरु मिला है हद का, बेहद का गुरु और। बेहद का गुरु जब मिले, तब लगे ठिकाना ठौर।। गुरु सोई जो शब्द सनेही। शब्द बिना दूसर नहिं सेई।।
शब्द कमावे सो गुरु पूरा । उन चरनन की हो जा धूरा।।
और पहिचान करो मत कोई । लच्छ अलच्छ ना देखो सोई।।
शब्द भेद लेकर तुम उनसे। शब्द कमाओ तुम तन मन से।।
अब जो कोई ऐसी टेक बाँधते हैं कि एक गुरु करके दूसरा नहीं करना चाहते, उनको जानना चाहिए कि उनके मन में परमार्थ की चाह बिल्कुल नहीं है, नहीं तो वह परख कर गुरु धारण करते या जो गुरु पुरानी रस्म के मुआफिक उन दिनों में, कि जब परमार्थ का खोज और शौक नहीं था, कर लिया था, तो फिर सच्चा और पूरा गुरू खोज कर धारण करते।
लेकिन संत अथवा राधास्वामी मत का उपदेश संसारी और टेकी जिवो के वास्ते नहीं है, सिर्फ उन लोगों के वास्ते हैं कि जिनको अपनी और दुनिया की हालत देखकर सच्ची बिरह और ख्वाहिश अपने जीव के कल्याण के हृदय में पैदा हुई है। ऐसों की शांति सिवाय सच्चे और पूरे गुरु के कोई दूसरा नहीं कर सकता है, और इन्हीं जीवो को पूरे गूरु की कदर और पहचान भी आवेगी।
क्रमशः.
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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