*“मैं पाया सुहाग सतगुरु का”*
*“मैं पाया सुहाग सतगुरु का”*
*परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज के भण्डारे के सुअवसर पर*
*आरती सतसंग में गाया गया।* 22/09/02008
*मैं पाया सुहाग सतगुरु का ।।*
*मैं पाया स्वरूप परम गुरु का* ।
*मुझे मिल गया नाम पर्म पुर्ष का ।*
*मैं सुमिरूँ नाम राधास्वामी का ।*
*मैं पाया सुहाग सतगुरु का ।।*
*मैं धाऊँ धाम राधास्वामी का ।*
*मैं दरसूँ पर्म प्रकाश राधास्वामी का ।*
*मैं निरखत लीला-बिलास राधास्वामी का ।*
*मैं पाया सुहाग सतगुरु का ।।*
*मैं अनहद शब्द सुनूँ ब्रह्मण्ड का ।*
*घंटा शंख मृदंग किंगरी सारंग का ।*
*मैं देखूँ प्रकाश व्यापक मन का ।*
*मैं पाया सुहाग सतगुरु का ।।*
*ज्योति, लाल-रवि, पूरनमासी चन्द्र का ।*
*मैं सुनूँ मुरली -बीन वाद्य सत पुरुष का ।*
*मैं परखूँ प्रकाश मध्याह्न भान का ।*
*मैं पाया सुहाग सतगुरु का ।।*
*मैं लखूँ शब्द-प्रकाश अलख अगम का ।*
*मैं चखूँ निर्मल अविरल बिलास धुर घर का ।*
*मैं पाया पूर्न सुहाग राधास्वामी चरन का ।*
*मैं पाया सुहाग सतगुरु का ।।*
*(प्रेम प्रचारक, 30 मार्च, 2009)*ग्रेशस हुज़ूर डा. प्रेम सरन सतसंगी साहब द्वारा रचित शब्द*
*परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज के भण्डारे के सुअवसर पर*
*आरती सतसंग में गाया गया।*
*(22.2.2009)*
*मैं पाया सुहाग सतगुरु का ।।*
*मैं पाया स्वरूप परम गुरु का* ।
*मुझे मिल गया नाम पर्म पुर्ष का ।*
*मैं सुमिरूँ नाम राधास्वामी का ।*
*मैं पाया सुहाग सतगुरु का ।।*
*मैं धाऊँ धाम राधास्वामी का ।*
*मैं दरसूँ पर्म प्रकाश राधास्वामी का ।*
*मैं निरखत लीला-बिलास राधास्वामी का ।*
*मैं पाया सुहाग सतगुरु का ।।*
*मैं अनहद शब्द सुनूँ ब्रह्मण्ड का ।*
*घंटा शंख मृदंग किंगरी सारंग का ।*
*मैं देखूँ प्रकाश व्यापक मन का ।*
*मैं पाया सुहाग सतगुरु का ।।*
*ज्योति, लाल-रवि, पूरनमासी चन्द्र का ।*
*मैं सुनूँ मुरली -बीन वाद्य सत पुरुष का ।*
*मैं परखूँ प्रकाश मध्याह्न भान का ।*
*मैं पाया सुहाग सतगुरु का ।।*
*मैं लखूँ शब्द-प्रकाश अलख अगम का ।*
*मैं चखूँ निर्मल अविरल बिलास धुर घर का ।*
*मैं पाया पूर्न सुहाग राधास्वामी चरन का ।*
*मैं पाया सुहाग सतगुरु का ।।*
*(प्रेम प्रचारक, 30 मार्च, 2009)*
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