**राधास्वामी!!19-02-2021-आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) जाग चल सूरत सोई बहुत। काहे को पूँजी अपनी खोत।।-(निरख ले घट में अमृत जोत। खोलिया राधास्वामी भक्ति सोत।।) (सारबचन-शब्द-6-पृ.स.267,268)
(**राधास्वामी!!19-02-2021-
आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) जाग चल सूरत सोई बहुत। काहे को पूँजी अपनी खोत।।
-(निरख ले घट में अमृत जोत।
खोलिया राधास्वामी भक्ति सोत।।)
(सारबचन-शब्द-6-पृ.स.267,268)
(2) पियारे मेरे सतगुरु दाता।।टेक।।
देखत रहूँ रुप मनभावत। और न कोई सुहाता।।-
(राधास्वामी प्यारे बसें हिये में। और न चित्त समाता।।)
(प्रेमबानी-2-शब्द-5-पृ.सं.408)
सतसंग के बाद:- पवित्र परिवार द्वारा पढे गये पाठ की रिकार्डिंग दिखाई व सुनाई गई।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज
- भाग- 1- कल का शेष:-
राधास्वामी संगत का यह कर्तव्य हो जाता है कि वह इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए प्रबंध करें । खर्च दो तरह के होते हैं (१) जाति या निजी (२) जमाअत या संगत के।
अब्बल खर्च का ताल्लुक हक व हलाल की कमाई से है जो हर सतसँगी मेहनत व मशक्कत करके कमावेगा । इसके अलावा संगत के इंतजामात और कारोबार चलाने के लिए खर्चा अलग दरकार होगा। मालूम हो कि सत्संग को इन दोनों किस्म के खर्चों का प्रबंध करना होगा।
दूसरे शब्दों में ऐसे ऐसे काम जारी करने होंगे जिनमें हिस्सा लेकर सत्संगी अपने हक व हलाल की कमाई काफी और गुजारे के काबिल पैदा कर सकें और संगत के खर्चे के लिए जो रुपया दरकार है उसके पैदा होने का उपाय निकल आवे। इसमें कामयाबी उसी वक्त मिल सकती है जब संगत के तमाम व्यक्ति, क्या छोटे और क्या बड़े सब, मिल कर इस काम को करें।
यह बात याद रखिए कि अगर संगत बढेगी तो उसके खर्चे में भी वृद्धि हो जावेगी और उस खर्च को पूरा करने के लिए नए और बड़े पैमाने पर प्रबंधों की आवश्यकता होगी । इस समय के अंदर जो इंडस्ट्रीज और बिजनेस के काम जारी है उनके प्रोग्राम को तरक्की दी जा रही है वह सब इस दृष्टिकोण से किया जा रहा है।
हमारे इन शब्दों की रोशनी में जो काम पंचवर्षीय प्रोग्राम का हुजूर साहबजी महाराज फरमा गये हैं आप उसके महत्व पर विचार कीजिए कि मौजूदा हालत में उसकी पूर्ति कितनी आवश्यक है। इसके पूरा होने से ही संगत के तमाम व्यक्ति मेहनत करके अपने गुजारे के लिए काफी रुपया पैदा कर सकेंगे और संगत बेकारी व बेरोजगारी का शिकार होने से बच जावेगी।
यही एक ऐसा अद्वितीय तरीका है जिस पर कारबंद होने से संगत अपने मिशन के फैलाने और कारोबार बढ़ाने में सफलता प्राप्त कर सकता है। वह दिन बड़ा पवित्र होगा जब सतसंग के अन्दर उपरोक्त सवाल हमेशा के लिये हल हो जावेगा। अगर आइंदा दो-तीन साल के अंदर इस कोशिश में कामयाबी हासिल हो जाए तो अच्छी बात हो।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज
-[भगवद गीता के उपदेश]-【 पाँचवा अध्याय】-
{ सन्यास योग}:-
[ अब सांख्य और कर्म योग का फर्क बयान होता है और कर्म योग को श्रेष्ठ बतलाया जाता है।] कृष्ण महाराज का उपदेश सुनकर अर्जुन ने पूछा- महाराज ! अपने कर्मों के त्याग की भी महिमा बयान फरमाई और कर्म योग की भी। अभी है तो फैसला कीजिये कि इन दोनों में श्रेष्ठ कौन है।
श्री कृष्ण जी बोले कर्मों के त्याग और कर्म योग दोनों से परम आनंद की प्राप्ति होती है मगर कर्म के त्याग के मुकाबले कर्मयोग निःसंदेह उत्तम है। जिस शख्स का दिल राग द्वेष से रहित और द्वन्द्वों से मुक्त है वह नित्यसंन्यासी यानी सदा का त्यागी है। वह सहज में मोक्ष को प्राप्त हो जाता है।
मूर्ख लोग सांख्य और योग को अलहदा अलहदा मार्ग बतलाते हैं लेकिन पंडित उनमें फर्क नहीं मानते। जिसने इनमें से एक पर कदम जमा लिया है उसे दोनों का फल प्राप्त होता है। जिस मुकाम पर सांख्यमार्गियों की रसाई होती है योगमार्गी भी वहाँ रसाई हासिल करते हैं। जो दोनों मार्गों को एक देखता है वही आँखवाला है।
【5】क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हुजूर महाराज-
प्रेम पत्र- भाग 1- कल से आगे:- ।।
शब्द।। धोखा मत खाना जग आये पियारे । धोखा मत खाना जग आय।।
कोई मीत न जानो अपना। सब ठग बैठे फाँसी लाय।।
जब सच्चा होय चले डगर गुरु। तबही चौकें रोकें आय।।
ऊँच नीच कहें बचन तोख के। मति को तेरे दें भरमाय।।
इनसे रहना समझ बूझ कर। हैं यह बैरी हित दिखलाय।।
तेरी हानि लाभ नहिं सोचें। अपने स्वारथ रहे लिपटाय।।
तू भी चतुरा गुरु का प्यारा। उन सँग रहु गुरु चरन समाय।।
उनको भी इस भाँति भलाई तेरी। भक्ति न थकती जाय।।
जो बेमुख गुरु भक्ति नाम से। कोई तरह काबू नहिं पाय।।
तो जुगती से दीन विधि से। छोड़ चलो सँग दोष न ताय।।
जो सन्मुख गुरु भक्ति नाम से। होयँ कदाचित् मेल मिलाय।।
राधास्वामी कहत बनाई । बहुरि-बहुरि तू भक्ति कमाय।।
भक्ति न छूटे कोई जुक्ती से। नहीं तो बहुबिधि रहो पछिताय।।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
2) पियारे मेरे सतगुरु दाता।।टेक।।
देखत रहूँ रुप मनभावत। और न कोई सुहाता।।-
(राधास्वामी प्यारे बसें हिये में। और न चित्त समाता।।)
(प्रेमबानी-2-शब्द-5-पृ.सं.408)
सतसंग के बाद:- पवित्र परिवार द्वारा पढे गये पाठ की रिकार्डिंग दिखाई व सुनाई गई।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज-
भाग- 1- कल का शेष:
- राधास्वामी संगत का यह कर्तव्य हो जाता है कि वह इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए प्रबंध करें । खर्च दो तरह के होते हैं (१) जाति या निजी (२) जमाअत या संगत के।
अब्बल खर्च का ताल्लुक हक व हलाल की कमाई से है जो हर सतसँगी मेहनत व मशक्कत करके कमावेगा । इसके अलावा संगत के इंतजामात और कारोबार चलाने के लिए खर्चा अलग दरकार होगा।
मालूम हो कि सत्संग को इन दोनों किस्म के खर्चों का प्रबंध करना होगा। दूसरे शब्दों में ऐसे ऐसे काम जारी करने होंगे जिनमें हिस्सा लेकर सत्संगी अपने हक व हलाल की कमाई काफी और गुजारे के काबिल पैदा कर सकें और संगत के खर्चे के लिए जो रुपया दरकार है उसके पैदा होने का उपाय निकल आवे। इसमें कामयाबी उसी वक्त मिल सकती है जब संगत के तमाम व्यक्ति, क्या छोटे और क्या बड़े सब, मिल कर इस काम को करें।
यह बात याद रखिए कि अगर संगत बढेगी तो उसके खर्चे में भी वृद्धि हो जावेगी और उस खर्च को पूरा करने के लिए नए और बड़े पैमाने पर प्रबंधों की आवश्यकता होगी । इस समय के अंदर जो इंडस्ट्रीज और बिजनेस के काम जारी है उनके प्रोग्राम को तरक्की दी जा रही है वह सब इस दृष्टिकोण से किया जा रहा है।
हमारे इन शब्दों की रोशनी में जो काम पंचवर्षीय प्रोग्राम का हुजूर साहबजी महाराज फरमा गये हैं आप उसके महत्व पर विचार कीजिए कि मौजूदा हालत में उसकी पूर्ति कितनी आवश्यक है। इसके पूरा होने से ही संगत के तमाम व्यक्ति मेहनत करके अपने गुजारे के लिए काफी रुपया पैदा कर सकेंगे और संगत बेकारी व बेरोजगारी का शिकार होने से बच जावेगी। यही एक ऐसा अद्वितीय तरीका है जिस पर कारबंद होने से संगत अपने मिशन के फैलाने और कारोबार बढ़ाने में सफलता प्राप्त कर सकता है।
वह दिन बड़ा पवित्र होगा जब सतसंग के अन्दर उपरोक्त सवाल हमेशा के लिये हल हो जावेगा। अगर आइंदा दो-तीन साल के अंदर इस कोशिश में कामयाबी हासिल हो जाए तो अच्छी बात हो।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-[भगवद गीता के उपदेश]-【 पाँचवा अध्याय】- { सन्यास योग}:-[ अब सांख्य और कर्म योग का फर्क बयान होता है और कर्म योग को श्रेष्ठ बतलाया जाता है।] कृष्ण महाराज का उपदेश सुनकर अर्जुन ने पूछा- महाराज ! अपने कर्मों के त्याग की भी महिमा बयान फरमाई और कर्म योग की भी। अभी है तो फैसला कीजिये कि इन दोनों में श्रेष्ठ कौन है। श्री कृष्ण जी बोले कर्मों के त्याग और कर्म योग दोनों से परम आनंद की प्राप्ति होती है मगर कर्म के त्याग के मुकाबले कर्मयोग निःसंदेह उत्तम है। जिस शख्स का दिल राग द्वेष से रहित और द्वन्द्वों से मुक्त है वह नित्यसंन्यासी यानी सदा का त्यागी है। वह सहज में मोक्ष को प्राप्त हो जाता है। मूर्ख लोग सांख्य और योग को अलहदा अलहदा मार्ग बतलाते हैं लेकिन पंडित उनमें फर्क नहीं मानते। जिसने इनमें से एक पर कदम जमा लिया है उसे दोनों का फल प्राप्त होता है। जिस मुकाम पर सांख्यमार्गियों की रसाई होती है योगमार्गी भी वहाँ रसाई हासिल करते हैं। जो दोनों मार्गों को एक देखता है वही आँखवाला है। 【5】क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र- भाग 1- कल से आगे:- ।। शब्द।। धोखा मत खाना जग आये पियारे । धोखा मत खाना जग आय।। कोई मीत न जानो अपना। सब ठग बैठे फाँसी लाय।। जब सच्चा होय चले डगर गुरु। तबही चौकें रोकें आय।। ऊँच नीच कहें बचन तोख के। मति को तेरे दें भरमाय।। इनसे रहना समझ बूझ कर। हैं यह बैरी हित दिखलाय।। तेरी हानि लाभ नहिं सोचें। अपने स्वारथ रहे लिपटाय।। तू भी चतुरा गुरु का प्यारा। उन सँग रहु गुरु चरन समाय।। उनको भी इस भाँति भलाई तेरी। भक्ति न थकती जाय।। जो बेमुख गुरु भक्ति नाम से। कोई तरह काबू नहिं पाय।। तो जुगती से दीन विधि से। छोड़ चलो सँग दोष न ताय।। जो सन्मुख गुरु भक्ति नाम से। होयँ कदाचित् मेल मिलाय।। राधास्वामी कहत बनाई । बहुरि-बहुरि तू भक्ति कमाय।। भक्ति न छूटे कोई जुक्ती से। नहीं तो बहुबिधि रहो पछिताय।। 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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