राधास्वामी!! 22-02-2021-आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) क्यों फिरत भुलानी जक्त म़े।
दिन चार बसेरा।।-
(राधास्वामी ध्यान धर। तू साँझ सबेरा।।)
(सारबचन-शब्द-9-पृ.सं.269,270)
(2) अडोला तेरी महिमा भारी।।टेक।।
प्रेम सिंध है रुप तुम्हारा। निज कर सोत और पोत कहा री।।-
(राधास्वामी दया मौज अस धारी। सबके है निज मात पिता री।।)
(प्रेमबानी-2-शब्द-8-पृ.सं.410)
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज
- भाग -1- कल से आगे :-(33 )-
12 जून 1940- हुजूर पुरनूर ने फरमाया- अगर आपने आज का बचन( बचन नंबर 130, सत्संग के उपदेश,भाग 3) सुना हो जो अभी पढ़ा गया तो मालूम हो जावेगा कि हुजूर साहबजी महाराज ने कैसे स्पष्ट और असंदिग्ध शब्दों में संगत को बचाने और जिंदा रहने की हिदायतें फरमाई।
यह काम संगत को बचाने का है, बचन कहने से पूरा नहीं हो सकता । इसके लिये सबको मिलकर काम करना होगा और इसीलिये और इस बचन की रोशनी में जो काम आपको दिया जावे उसको यत्न व परिश्रम से करें ।।
(34)-14 जून 1940- को हाथरस में सत्संग के समय पाठ होने से पहले हुजूर ने फरमाया- हमारे यहाँ सत्संग में खास बात है कि बाज वक्त कोई भाषण देने के बजाय पोथी में से शब्द मौज से निकलवा कर पढ़े जाते हैं और शब्द मौके व वक्त से ऐसे निकलते हैं कि जो प्रसंग उस वक्त चलता है उसका जवाब या उसके संबंध में हिदायते उसमें रहती है। चुनाँचे जब यह शब्द पढा गया-
क्या नर सोया बावरे लाँबी टाँग पसार।
चोरन ने तोहि लूटिया घर बीच खोदा मार।।
( प्रेमबिलास- शब्द 54)
फरमाया कि यह शब्द चेतावनी का है, इसमें जीव को सचेत किया गया है कि संसार में आने के बाद भूल का पर्दा तेरे ऊपर ऐसा पड़ गया है कि तू अपनी हकीकत को बिसार बैठा है। इसमें बयान किया गया है कि-
क्या हिरदय तुम धारिया कुमति कौन तुम लीन।
माल अपना सब फूँक कर जग बिच हाँसी कीन।।
(प्रेमबिलास, शब्द 54)
यानी जो कुछ तेरा माल था इस संसार में काल, कर्म और माया
के हाथों लुट गया और तू खाली हाथ रह गया। दरअसल संसार में भारी भूल पड़ी हुई है और तमाम संसार अंधा हो कर गलत दिशा में चला जाता है।
सच्चे सुख की तलाश करने के बजाय गलत बातों में उलझा कर दुःख उठाता और हाय हाय करता है। इसलिये ऐसे भूले और जीवो को नीचे के दोहे में नतीजा बतलाया और पथ- प्रदर्शन किया गया है-
सेवा जिन करी हिरदय चिंता धार।
छूटत ही सो पहुँचिया साहब के दरबार।।
( प्रेमबिलास, शब्द-54)🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-
[ भगवद गीता के उपदेश]
- कल से आगे:-
जिसकी योग के जरिये ब्रह्म में लीन होने से यह हालत हो गई कि उसका मन बाहरी सामानों में नहीं फँसता और उसे अपने आत्मा ही में आनंद प्राप्त होता है वह हमेशा कायम रहने वाले आनंद को भोगता है।
दुनियावी सामान से तअल्लुक होने पर जो सुख प्राप्त होते हैं वह वास्तव में दुख के मूल होते हैं क्योंकि उनका आदि भी है और अंत भी, इसलिए बुद्धिमान उनके मिलने पर उनका रस नहीं लेते जो शख्स यहाँ अर्थात् पृथ्वी पर शरीर त्यागने से पहले काम क्रोध से पैदा होने वाले ताकतवर लहरों को बर्दाश्त करने की काबिलियत रखता है वही युक्त यानी सावधान है और वही सुखी है।
जो शख्स अपने आप में सुखी और मग्न है और जिसके अंदर प्रकाश हो रहा है वह योगी ब्रह्म बनकर ब्रह्म में लीन होता है। जिनके सब पाप नष्ट हो गये हैं, जिनकी दुई दूर हो गई है, जिनका अपने आपे पर काबू है और जो सब जीवो की भलाई में लगे रहते हैं, ऐसे ऋषि (तत्वदर्शी) ब्रह्म में लीन होते हैं ।
【25】
जो पुरुष काम क्रोध की मैल से रहित है, अपने मन को पूरे तौर बस किये हैं और जिनको आत्मज्ञान प्राप्त है उनके लिए ब्रह्म की प्राप्ति नजदीक ही का मुआमला रहता है।
दुनियावी सामानों से संबंध छोड़ करके और तवज्जुह (दृष्टि) भँवों के मध्य में लगाकर और नाक के अंदर आने वाले और बाहर जाने वाले स्वाँसो को बराबर करके और इंद्रियाँ, मन व बुद्धि बस में लाकर सच्चा मन मोक्ष के लिए दिलो जान से कोशिश करता हुआ हमेशा के लिये इच्छा, भय और क्रोध को झाड़ कर मुक्ति को प्राप्त होता है।
वह मुझको सब यज्ञों और तपों का भोगने वाला सब लोकों का महेश्वर और सब जीवों का सच्चा हितकारी जान कर शांति को प्राप्त होता है।
【 29】
क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर महाराज-
प्रेम पत्र- भाग 1- कल से आगे:-
अब समझना चाहिए कि गुरु नाम परमार्थ का रास्ता बताने वाले और अंधेरे में प्रकाश कराने वाले का है। सो जब कि यह ताकत किसी में पाई नहीं जाती तो उसका नाम गुरु किस तरह हो सकता है?
जो लोग कि टेकी है और सच्चे परमार्थ से बेखबर, वे अपने बाप दादे के गुरु की औलाद को जो कोई मिले, चाहे वह कुछ जानता है या नहीं, उसी को गुरु बनाते हैं। लेकिन जब उनके दिल में सच्चा खोज पैदा होता है तो वे देखते हैं कि जिसको उन्होंने गुरु बनाया वह बिल्कुल गुरुवाई की चाल से और असली परमार्थ से आप बेखबर है, फिर दूसरे को वह क्या बतावेगा और जीव के कल्याण के मुआमले में उसकी क्या मदद करेगा?
तब लाचार होकर वे भेदी और अभ्यासी गुरु खोज कर उसकी सरन लेते हैं, और अपने जीव का कारज उसके वसीले से बनवाते हैं। तो अब समझना चाहिए कि ऐसे नादान गुरु के छोड़ने में क्या पाप और बुराई हुई?
जो कोई अपने लड़के को पढ़ाना चाहता है और किसी उस्ताद के पास उसको भेजता है, तो जो वह उस्ताद काबिल पढ़ाने के हैं तो खैर, नहीं तो फौरन उसको दूसरा उस्ताद तलाश करके उसके सुपुर्द करता है। और जो विद्यार्थी कि एक उस्ताद से पढता है और जब उसको ज्यादा इल्म होती है या बड़ी-बड़ी किताबें पढ़ना चाहता है कि जो वह उस्ताद नहीं पढ़ा सकता और समझा सकता है, तो वह दूसरे उस्ताद को, जो उससे ज्यादा इल्म रखता है, तलाश करके उससे इल्म पढ़ना शुरू करता है । जो वह यह टेक बाँधता कि एक उस्ताद करके दूसरा नहीं करना चाहिए, या जो लड़के मदरसे में एक दर्जै में पढते हैं, वह उम्र भर उसी उस्ताद से पढ़ने का इरादा करें और ऊँचे दर्जे में चढना न चाहे या दर्जाचढने पर भी उस उस्ताद को न छोडें, तो ये सब मूर्ख रहेंगे और उनको तरक्की इल्म की कभी हासिल न होगी। इसी तरह जो वंशावली गुरु या अपने पति को गुरु मान बैठ रहेंगे, वे परमार्थ में हमेशा कौदन और मूर्ख बने रहेंगे उनको कुछ परमार्थी फायदा हासिल न होगा ।
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
परम गुरु हुजूर महाराज-
प्रेम पत्र- भाग 1- कल से आगे:-
अब समझना चाहिए कि गुरु नाम परमार्थ का रास्ता बताने वाले और अंधेरे में प्रकाश कराने वाले का है। सो जब कि यह ताकत किसी में पाई नहीं जाती तो उसका नाम गुरु किस तरह हो सकता है?
जो लोग कि टेकी है और सच्चे परमार्थ से बेखबर, वे अपने बाप दादे के गुरु की औलाद को जो कोई मिले, चाहे वह कुछ जानता है या नहीं, उसी को गुरु बनाते हैं। लेकिन जब उनके दिल में सच्चा खोज पैदा होता है तो वे देखते हैं कि जिसको उन्होंने गुरु बनाया वह बिल्कुल गुरुवाई की चाल से और असली परमार्थ से आप बेखबर है, फिर दूसरे को वह क्या बतावेगा और जीव के कल्याण के मुआमले में उसकी क्या मदद करेगा?
तब लाचार होकर वे भेदी और अभ्यासी गुरु खोज कर उसकी सरन लेते हैं, और अपने जीव का कारज उसके वसीले से बनवाते हैं।
तो अब समझना चाहिए कि ऐसे नादान गुरु के छोड़ने में क्या पाप और बुराई हुई? जो कोई अपने लड़के को पढ़ाना चाहता है और किसी उस्ताद के पास उसको भेजता है, तो जो वह उस्ताद काबिल पढ़ाने के हैं तो खैर, नहीं तो फौरन उसको दूसरा उस्ताद तलाश करके उसके सुपुर्द करता है।
और जो विद्यार्थी कि एक उस्ताद से पढता है और जब उसको ज्यादा इल्म होती है या बड़ी-बड़ी किताबें पढ़ना चाहता है कि जो वह उस्ताद नहीं पढ़ा सकता और समझा सकता है, तो वह दूसरे उस्ताद को, जो उससे ज्यादा इल्म रखता है, तलाश करके उससे इल्म पढ़ना शुरू करता है ।
जो वह यह टेक बाँधता कि एक उस्ताद करके दूसरा नहीं करना चाहिए, या जो लड़के मदरसे में एक दर्जै में पढते हैं, वह उम्र भर उसी उस्ताद से पढ़ने का इरादा करें और ऊँचे दर्जे में चढना न चाहे या दर्जाचढने पर भी उस उस्ताद को न छोडें, तो ये सब मूर्ख रहेंगे और उनको तरक्की इल्म की कभी हासिल न होगी। इसी तरह जो वंशावली गुरु या अपने पति को गुरु मान बैठ रहेंगे, वे परमार्थ में हमेशा कौदनऔर मूर्ख बने रहेंगे उनको कुछ परमार्थी फायदा हासिल न होगा ।
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
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