**राधास्वामी!! 22-02-2021- आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) सुरतिया वार रही। तन मन गुरु चरन निहार।। अलख अगम के पार चढाई। राधास्वामी चरन मिला आधार।।-(राधास्वामी दयाल सरन हिये धारी। उन मेहर से दिया मेरा काज सँवार।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-11-पृ. सं.114,115)
(2) होली खेलन मन चाव(सखी आज)।।टेक।। मस्त हुई सखियाँ बेहाली। प्रेम प्रीति दोउ हाथ उडाव।। नैन कमल को वार देन हित। तन मन छोड सिमटाव।।-(पँहुची जाय सब राधास्वामी धामा। चरन कमल में गईं लिपटाव।। वार वार सब घूम घूम कर। चरन अम्बु में गई समाव।।) (प्रेमबिलास-शब्द-9-पृ.सं.12,13)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे:
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🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन-
कल से आगे:
-[ सृष्टि उत्पत्ति]-( 161)-का भाग:- (७)
यह भी लिखा है कि:- गुन तीनों यहाँ से उत्पाने। ब्रह्मा बिष्णु महेश कहाने।
ब्रह्मा, विष्णु, महेश शरीरधारी पुरुष हुए हैं।
उनको तीन गुण कहना मूर्खता है क्योंकि तीनों गुण जड हैं।।
(८) यह कि जब सिवाय राधास्वामी अनामी के किसी चीज की हस्ती नहीं थी और वह पूर्ण धनी थे तो उनके हृदय में सृष्टि उत्पन्न करने का विचार ही क्यों पैदा हुआ? बिना कारण के कोई कार्य प्रकट नहीं होता।
*(९) यह कि एक और स्थान पर यह भी लिखा है:-
जन्मे मरे जीव चौरासी। काल निरंजन डाली फाँसी।
जबकि जोत और निरंजन मालिक के अंश है फिर यह क्यों लिखा है कि उन्होंने सारा संसार जाल में फँसाया हुआ है?
(१०) यह की टुकड़ा और बूंद उस चीज के होते हैं जिसमें जर्रे या परमाणु विद्यमान हों। क्योंकि आपकी पुस्तकों में लिखा है कि संसार दयाल की एक बूंद है इससे सिद्ध होता है कि आपका दयाल चेतन नहीं किंतु जड़ प्रकृति है।।
(११) यह कि पाँच भूत, चार खानि, तीन गुण आदि वस्तुएँ किससे निकली और उसका मूल कारण क्या था? यदि कहो कि वह दयाल की बूंद है तो जबकि दयाल चेतन है तो यह संसार भी चेतन होना चाहिए।।
(१२) फिर लिखा है कि ब्रह्म के चार मुँह थे। उसने चार धुन निकालीं इसलिए चार वेद हो गये। यह कहना मूर्खता है।।
(१३) फिर आपकी पुस्तक मतसंदेश में लिखा है कि रचना तीन बड़े दर्जो में विभक्त हैं। आपके पास इसके लिए क्या प्रमाण है? जब चेतन एकरस पदार्थ है तो उसका लोक बनाना और आत्माएँ उत्पन्न करना निरर्थक है। जबकि उसमें कोई दूसरी वस्तु मिली नहीं तो लोक और आत्माएँ कहाँ से आ गईं?
(१४) और यह भी लिखा है कि पहले दर्जे के नीचे से गुबारर अर्थात माया प्रकट हुई। जितने रंग हैं लाल से लेकर काले तक सब मन और माया के रंग है। यह गुबार किसका है? यदि कहो दयाल का तो वह अशुद्ध हुआ । यदि कहो माया का तो माया कहाँ से आई ? यदि कहो उसकी सत्ता दयाल से भिन्न है तो आपका यह लिखना कि सृष्टि के आरंभ में सिवाय उनमुन के और कुछ न था झूठ हुआ।।
(१५) यदि संसार की रचने वाली धारें है तो वे समुन्द्र से पृथक नहीं हो सकती और जबकि समुंद्र शुद्ध है तो उन धारों में काला पीला गुबार कहाँ से आ गया?क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा
- परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!
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