**राधास्वामी!! 01-03-2021- आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) चेत चलो यह सब जंजाल। काम न आवे कुछ धन माल।।-(राधास्वामी गुरु जब होयँ दयाल। चरन शरन दे करें निहाल।।) (सारबचन-शब्द-पहला चितावनी भाग दूसरा-पृ.सं. 279)
(2) मिले मोहि आज गुरु पूरे। ओहो हो हो अहा हा हा।।-(मिला अब राधास्वामी पद मूरे। ओहो हो हो अहा हा हा।।) (प्रेमबानी-2-शब्द-14-पृ.सं.415,416)
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
परम गुरु मेहताजी महाराज-
भाग 1- कल से आगे-( 38)-
4 सितंबर, 1940 की शाम के सत्संग में हुजूर ने फरमाया- हुजूर साहबजी महाराज ने "गुरु गोविंद सिंह और उनके पाँच प्यारों" के संबंध का बचन एक आस गरज को सामने रखकर लिखा था। बचन पढ़ने से पता चलता है कि जिस दौर से सत्संग आजकल गुजर रहा है उसमें और सिक्खों की उस जमाने की हालत में पूर्ण समानता है। जो सूरतेहाल सिक्खों पर उस जमाने में गुजर रही थी उसी तरह की एक नई सूरत हमारे संगत के सामने भी दरपेश है।
जिस तरह से जब गुरु गोविंदसिंह जी ने देखा कि उनकी सिक्ख कौम तुर्कों के जुल्मों सितम का शिकार हो रही है और वह लोग इसकी बर्बादी के दरपै हैं तो उन्होंने अपनी कौम में संगठन कायम करके इसको तबाही और बर्बादी से बचाना चाहा।
इसी तरह से जब हजूर साहबजी महाराज ने देखा कि इस वक्त दुनियाँ की हालत आम तौर पर और हिंदू मजहब की खास तौर पर बहुत अबतर हो रही है तो बेकारी और बेरोजगारी हर जगह सब को परेशान कर रही है, तो ख्याल किया कि लोगों में संगठन पैदा किया जाय और उसकी शुरुआत सतसंग कम्युनिटी से ही की जाय। इसलिए उन्होंने इस तरफ कमली कदम उठाने का फैसला किया।
जिस तरह से गुरु साहब ने इस सिलसिले में अपनी संगत में से सच्चे और अजमाये हुए सेवक चुनने और महत्वपूर्ण ऐलान सुनाने की गरज से आनंदपुर में सिक्खों का आम जलसा किया जिसमें कौम को बचाने के लिए पाँच बहादुरो के सिर तलब किये, इसी तरह से हजूर साहबजी महाराज ने सूबा मद्रास के सतसँगियों की इस किस दरख्वास्त पर कुछ अरसा बाद सूबा मद्रास में इंडस्ट्रीज का काम शुरू करने का फैसला किया।क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-
[ भगवद् गीता के उपदेश]
- कल से आगे:-
योगी को चाहिए कि इस संकल्प से पैदा होने वाली सभी कामनाएँ एक दम दिल से निकाल करके और मन के द्वारा इंद्रियों को हर तरफ से रोक कर धीरे-धीरे खूब स्थिर की हुई बुद्धि के द्वारा शांत हो और मन को आत्मा में जोड़कर किसी भी चीज का ख्याल अपने अंदर न उठने दे । 【25 】
जब जब मन चंचलता और चपलता करके किसी तरफ भाग निकले, तब तक उसे रोक कर आत्मा के बस में लावे। जिस योगी का मन परम शांति और रजोगुण निश्चल हो गया है , जो पाप की मैल से रहित हो कर ब्रह्म रूप हो गया है, निःसंदेह वह परम आनंद का रस लेता है। जो योगी इस तरह अपने जीवात्मा को अंतर में जोड़कर पाप से रहित हो गया है, वह सहज में ब्रह्मस्पर्श के अपार आनंद का रस लेता है।
जीवात्मा योग के अंतर में हो जाने पर आत्मा को सब जीवो के अंदर और सब जीवों को आत्मा में निवास किये हुए देखता है और उसे सब जगह एक ही जलवा नजर आता है। अर्जुन! जो पुरुष मुझे हर जगह मौजूद और हर वस्तु को मेरे अंदर स्थित देखता है, मैं कभी उससे दूर नहीं होता, न वह कभी मुझ से दूर होता है ।
【30】 क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर महाराज
-प्रेम पत्र- भाग 1- कल से आगे:-
स्त्रियों के अनपढ़ और मूर्ख रखने का सारा पाप और भार उनके पुरुषों की गर्दन पर है, क्योंकि जो पुरुष आप सच्चा परमार्थी होगा वह अपनी स्त्री को भी जरूर शामिल करेगा, और जो आप थोड़ी विद्या की कदर जानेगा कि जिससे उसकी स्त्री उसको और वह अपनी स्त्री को चिट्ठी पत्री भेज सके और घर का हिसाब किताब लिख सके, तो वह जरूर अपनी स्त्री को इस कदर विद्या जोर देकर पढ़ावेगा और उसको पोथी पढ़ने और परमार्थी अभ्यास करने पर तवज्जह दिलाता रहेगा कि जिससे उस स्त्री का और उस पुरुष का भी इस दुनियाँ में और फिर परलोक में भला होवे और पाप कर्मो से बचें।।
और जो आप पूरे गुरु से नहीं मिले और कुछ परमार्थ की कार्यवाही नहीं करते और अपने वक्त और अपनी नरदेही की कदर नहीं जानते, वे आपही बदकिस्मत रहे और अपनी स्त्री को भी अब आगे बनावेंगे और इस पाप का फल आगे भोगेंगे, क्योंकि जिसने नरदेही पाकर उसको पशु की तरह मेहनत मजदूरी और 🙏🙏🙏🙏खानपान में खर्च किया, वह मनुष्य स्त्री होवे चाहे पुरुष, पशु के समान है।
क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
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