परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज का पावन भंडारा समस्त सतसंग जगत को बहुत बहुत मुबारक।
आज आरती के समय पढा गया बचन
सच्चे रहनुमा (मार्गदर्शक) न रहने की वजह से सभी मज़हबों पर ज़ंग चढ़ गया है। और ज़माने की उलटफेर और ख़यालात में तबद्दुल (परिवर्तन) की वजह से अवाम (जन साधारण) बुज़ुर्गों की तालीम का असली मफ़हूम (आशय) समझने से क़ासिर (असमर्थ) है। साइंस की तरक़्क़ी और तालीम की इशाअत (प्रसार) से दिन ब दिन दुनिया में नई रोशनी फैल रही है।
कुछ अर्से के लिये दुनिया मज़हब से मुन्हरिफ़ (विमुख) हो जाये लेकिन देर अबेर सभी समझदार शान्ति के हुसूल (प्राप्ति) के लिये मज़हब का दरवाज़ा खटखटायेंगे।
(रोज़ाना वाक़िआत, भाग-2, डायरी,
परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज, सोमवार, 27 फ़रवरी, 1933 का अंश)
प्रेम सिंध से मौज उठ किया जगत उजियास ।
सतगुरु रूप औतार धर घट घट प्रेम प्रकास ।।
प्रेमी बिरही साध जन धर हिरदय विश्वास ।
निस दिन भाग सरावते निरखत प्रेमबिलास ।।🌹
स्मारिका
परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज ने स्वयं अपने रचे हुए दो शब्दों में उपदेश लेने के पहले की और बाद की दशा को बयान किया है। वे शब्द ये हैं-
1. सतगुरू मेरे पियारे, धुर घर से चल के आए।
(प्रेम बिलास शब्द 6)
2. मिले मोहि राधास्वामी प्यारे, सराहूँ भाग क्या अपना।
(प्रेम बिलास शब्द 47)
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