संत पलटू साहिब के दोहे
प्रस्तुति - आत्म स्वरूप
आपै आपको जानते, आपै का सब खेल।
पलटू सतगुरु के बिना, ब्रह्म से होय न मेल॥1॥
पलटू सुभ दिन सुभ घड़ी, याद पड़ै जब नाम।
लगन महूरत झूठ सब, और बिगाड़ैं काम॥2॥
पलटू उधर को पलटिगे, उधर इधर भा एक।
सतगुरु से सुमिरन सिखै, फरक परै नहिं नेक॥3॥
बिन खोजे से न मिलै, लाख करै जो कोय।
पलटू दूध से दही भा, मथिबे से घिव होय॥4॥
वृच्छा बड़ परस्वारथी, फरैं और के काज।
भवसागर के तरन को, पलटू संत जहाज॥5॥
पलटू तीरथ को चला, बीच मां मिलिगे संत।
एक मुक्ति के खोजते, मिलि गई मुक्ति अनंत॥6॥
सुनिलो पलटू भेद यह, हंसि बोले भगवान।
दुख के भीतर मुक्ति है, सुख में नरक निदान॥7॥
सोई सिपाही मरद है, जग में पलटूदास।
मन मारै सिर गिरि पड़ै, तन की करै न आस॥8॥
ना मैं किया न करि सकौं, साहिब करता मोर।
करत करावत आपु है, पलटू पलटू सोर॥9॥
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