**राधास्वामी!! 23-02-2021- आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) सुरतिया खिलत रही। देख गुरु मनमोहन छबि आज।।-
(राधास्वामी दया से गई भौ पारा
राधास्वामी!! 23-02-2021-
आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) सुरतिया खिलत रही। देख गुरु मनमोहन छबि आज।।
-(राधास्वामी दया से गई भौ पारा।
तज दिया मन कपटी का राज।।)
(प्रेमबानी-4-शब्द-10-पृ.सं.112,113)
(2) शेरो-सखुन का गाना कोई हमसे सीख जाय।
कहता हूँ एक तराना कोई हमसे सीख जाय।।-
(मुर्शिद की आँख बीच से है रास्ता चला।
उस आँख में समाना कोई हमसे सीख जाय।।)
( प्रेमबिलास-शब्द-10-पृ.सं.13,14,15)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**राधास्वामी!! 23-02-2021-
आज शाम सतसंग में पढा गया बचन -
(161)-
का शेष भाग-
उत्तर- प्रत्येक बुद्धिमान व्यक्ति समझता है कि सृष्टि की उत्पत्ति का वर्णन में लाना अत्यंत दुष्कर है। मनुष्य की बुद्धि उसे ग्रहण करने और वाणी से वर्णन करने में असमर्थ है। परंतु इन कठिनाइयों के होते हुए भी प्राय: प्रत्येक व्यक्ति इस विवरण के जानने की इच्छा रखता है। सो हर मजहब में अपनी रीति से सृष्टि की उत्पत्ति का हाल वर्णन किया गया है।
और हर समय के दार्शनिक और वैज्ञानिक इस विषय पर अपने विचार प्रकट करते रहे हैं। इसी प्रकार संतो ने भी अपनी वाणी में जहाँ-तहाँ सृष्टि की उत्पत्ति का वर्णन किया है।
पूर्वोक्त कड़ियाँ पुस्तक सारबचन छन्दबन्द के बचन नंबर 38 के 'जेठ मास' शीर्षक के नीचे आई है। इस शब्द में प्रथम सृष्टि की उत्पत्ति से पूर्व की दशा का वर्णन में लाने की चेष्टा की गई है। फरमाया कि उस समय मालिक ने कर्ता- रूप धारण न किया था, और उस न समय कोई रचना थी।
न मालिक कर्ता रूप से प्रकट हुआ था और न वर्तमान काल की सी अनुभव में आने वाली माया की रूकावट प्रकट थी। न कोई द्रष्टा था न दृश्य था, न स्थूल मसाला था और न सूक्ष्म मसाला।
सारांश यह कि सृष्टि-क्रम के चालू होने पर जितनी भी दशाएँ प्रकट हुई है और जितनी सृष्टि प्रकट हुईं है वह उस समय कुछ न थी। आखिर उस समय कुछ था भी?
फरमाया:- जो कुछ था सो अब कह भाखूँ। उनमुन सुन बिसमाधी राखूँ।१०।।
हैरत हैरत हैरत होई। हैरत रुप धरा इक सोई।११।
आपहि आप न दूसर कोई । उठी मौज परगट सत सोई।१५।
उस समय केवल एक कुलमालिक था और दूसरी कोई वस्तु प्रकट न थी । और मालिक उस समय उन्मुनि अवस्था में अर्थात सुन्न- समाधि रूप था अर्थात् उसकी शक्ति उसके भीतर गुप्त थी।
जैसे पत्थर के कोयले के अंदर अग्नि गुप्त है; उस कोयले को देख या छूकर किसी को उसके भीतर गुप्त शक्ति का ज्ञान नहीं होता । यह अग्नि शक्ति की उन्मुनि अवस्था है । जब आग सुलगा दी जाती है तो उससे गर्मी, प्रकाश आदि का आविर्भाव होता है- यह अग्नि शक्ति की प्रकट अवस्था हैँ सारांश यह है कि सृष्टि होने से पहले चेतन शक्ति का भंडार सच्चा कुलमालिक अपने आप में रत था, उन्मुनि अवस्था में था, हैरत रूप था।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा-
परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज! l
तज दिया मन कपटी का राज।।)
(प्रेमबानी-4-शब्द-10-पृ.सं.112,113)
(2) शेरो-सखुन का गाना कोई हमसे सीख जाय।
कहता हूँ एक तराना कोई हमसे सीख जाय।।-
(मुर्शिद की आँख बीच से है रास्ता चला।
उस आँख में समाना कोई हमसे सीख जाय।।)
( प्रेमबिलास-शब्द-10-पृ.सं.13,14,15)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे। 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**राधास्वामी!! 23-02-2021-
आज शाम सतसंग में पढा गया बचन
-(161)-का शेष भाग-
उत्तर- प्रत्येक बुद्धिमान व्यक्ति समझता है कि सृष्टि की उत्पत्ति का वर्णन में लाना अत्यंत दुष्कर है। मनुष्य की बुद्धि उसे ग्रहण करने और वाणी से वर्णन करने में असमर्थ है। परंतु इन कठिनाइयों के होते हुए भी प्राय: प्रत्येक व्यक्ति इस विवरण के जानने की इच्छा रखता है।
सो हर मजहब में अपनी रीति से सृष्टि की उत्पत्ति का हाल वर्णन किया गया है। और हर समय के दार्शनिक और वैज्ञानिक इस विषय पर अपने विचार प्रकट करते रहे हैं। इसी प्रकार संतो ने भी अपनी वाणी में जहाँ-तहाँ सृष्टि की उत्पत्ति का वर्णन किया है।
पूर्वोक्त कड़ियाँ पुस्तक सारबचन छन्दबन्द के बचन नंबर 38 के 'जेठ मास' शीर्षक के नीचे आई है। इस शब्द में प्रथम सृष्टि की उत्पत्ति से पूर्व की दशा का वर्णन में लाने की चेष्टा की गई है।
फरमाया कि उस समय मालिक ने कर्ता- रूप धारण न किया था, और उस न समय कोई रचना थी। न मालिक कर्ता रूप से प्रकट हुआ था और न वर्तमान काल की सी अनुभव में आने वाली माया की रूकावट प्रकट थी। न कोई द्रष्टा था न दृश्य था, न स्थूल मसाला था और न सूक्ष्म मसाला। सारांश यह कि सृष्टि-क्रम के चालू होने पर जितनी भी दशाएँ प्रकट हुई है और जितनी सृष्टि प्रकट हुईं है वह उस समय कुछ न थी। आखिर उस समय कुछ था भी? फरमाया:-
जो कुछ था सो अब कह भाखूँ। उनमुन सुन बिसमाधी राखूँ।१०।।
हैरत हैरत हैरत होई। हैरत रुप धरा इक सोई।११। ★ ★ आपहि आप न दूसर कोई । उठी मौज परगट सत सोई।१५।
उस समय केवल एक कुलमालिक था और दूसरी कोई वस्तु प्रकट न थी । और मालिक उस समय उन्मुनि अवस्था में अर्थात सुन्न- समाधि रूप था अर्थात् उसकी शक्ति उसके भीतर गुप्त थी।
जैसे पत्थर के कोयले के अंदर अग्नि गुप्त है; उस कोयले को देख या छूकर किसी को उसके भीतर गुप्त शक्ति का ज्ञान नहीं होता । यह अग्नि शक्ति की उन्मुनि अवस्था है । जब आग सुलगा दी जाती है तो उससे गर्मी, प्रकाश आदि का आविर्भाव होता है- यह अग्नि शक्ति की प्रकट अवस्था हैँ सारांश यह है कि सृष्टि होने से पहले चेतन शक्ति का भंडार सच्चा कुलमालिक अपने आप में रत था, उन्मुनि अवस्था में था, हैरत रूप था।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा-
परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!
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