**29 अप्रैल 1940 से शारीरिक व्यायाम का अभ्यास शुरू किया गया ताकि भविष्य में कृषि प्रोग्राम शुरू करने के लिए स्त्री व पुरुष शरीर से सक्षम बनाया जा सकें। 1943 में मेहताजी महाराज ने अधिक अन्न उपजाओ अभियान के अंतर्गत ऊसर व बंजर भूमि को कृषि योग्य बनाने का अभियान शुरू किया। यह जमीन ऊँचे टीलों, कांटेदार झाड़ियों से भरी हुई थी । इसलिए कांटेदार झाड़ियों आदि को हटाने,भूमि को समतल करने और खेती के योग्य बनाने के लिए एक बड़ा अभियान शुरू किया गया। सतसंगियों ने जाडे, गर्मी व बरसात में घंटो कार्य किया। मेहताजी महाराज उनके पथ - प्रदर्शन व उत्साहवर्धन के लिए स्वयं उपस्थित रहते थे। बाहर से दयालबाग आने वाले सतसंगियों ने भी इस कार्य में भाग लिया।प्रतिदिन सूर्योदय के साथ सतसंगियों को सेवा का अवसर मिला, जो इस कलयुग में अपने कर्मों की धूल झाड़ने का सबसे सरल उपाय है। हन 1955-1956 से सतसंगी बहनों ने भी खेतों में कार्य कलना प्रारंभ कर दिया। सन 1943 तथा 1944 में मेहताजी महाराज ने बडे विस्तृत दौरे किये। दक्षिण भारत के एक लंबे दौरे में, जो पूरे 1 महीने चला, सतसंगियों को सत्संग करने का मौका मिला। वह 8 फरवरी 1943 को काकीनाडा पहुंचे। सन 1937 में साहबजी महाराज ने अपने अत्यधिक कमजोर स्वास्थ्य के कारण काकीनाडा के दौरे का प्रोग्राम निरस्त कर दिया था। अब मेहताजी महाराज ने काकीनाडा में एकत्रित सतसंगियों पर विशेष दया व मेहर की। उस साल बसंत 8 फरवरी का था इसलिए करीब 3000 सत्संगी जो यहां उस दिन उपस्थित थे उनके माथे पर हुजूर ने टीका लगाया। दयालबाग लौटने पर सतसंगियों ने टीका लगानज व दमा व मेहर की प्रार्थना की। 21 फरवरी 1943 को इस प्रार्थना को स्वीकृति देकर पूरा किया। कोयम्बटूर में एक आम सभा में उन्होंने सामाजिक आदर्श व लक्ष्यों को स्पष्ट करते हुए "ए बेटर वर्लड आर्डर" विषय पर अपने विचार व्यक्त किये। यह लम्बे, दुष्कर और बार बार के दौरे, साहबजी महाराज के उस कथन की याद दिलाते है, जब उन्होंने कहा था कि वह एक बलिष्ठ शरीर में दक्षिण भारत आयेंगे।**
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