Tuesday, February 18, 2020

साहबजी महाराज के अनमोल बचन





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सतसंग के उपदेश
भाग-1
(परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज)
मिश्रित बचन

       52- ब्रत रखने में हर्ज नहीं है बल्कि कुछ फ़ायदा ही है क्योंकि जिस दिन खाना न खाया जावेगा उस दिन तबीअत हलकी रहेगी।

 जब खाना मेदे में पहुँचता है तो उसको हज़्म करने के लिए जिस्म का ख़ून मेदे की तरफ़ ज़ोर के साथ दौड़ता है। नतीजा यह होता है कि दिमाग़ में ख़ून की कमी हो जाती है और नींद व सुस्ती ग़ालिब हो जाती हैं। यही वजह है कि पेट भर खाना खाते ही अक्सर लोगों को सोने की सूझती है और उनका जिस्म बेक़ाबू हो जाता है।

 इसलिये वक़्तन् फ़वक़्तन् खाने में नाग़ा करना परमार्थियों के लिये मुफ़ीद है।

 लेकिन यह टेक रखना कि किसी ख़ास दिन ही ब्रत रखना मुफ़ीद होता है यह उम्मीद रखना कि महज़ ब्रत रखने से परमार्थी नफ़ा हासिल हो जावेगा नामुनासिब है। ब्रत रखने से तबीअत में हलकापन आजाने पर शौक़ीन परमार्थी को अपनी तवज्जुह मामूल से ज़्यादा अन्तर में जोड़नी चाहिये तभी ब्रत से परमार्थी फ़ायदा हासिल होगा।

       53- अक्सर ऐसा होता है कि एक शख़्स परमात्मा के मुतअल्लिक़ बहुत से सवालात करता है और तसल्लीबख़्श जवाब हासिल करता है लेकिन फिर भी जहाँ का तहाँ ही रहता है। दूसरा शख़्स कोई सवाल नहीं करता और थोड़ी सी संत मत की चर्चा सुनकर हर बात को आसानी से समझ जाता है और साधन करने के लिये मुस्तैद हो जाता है। मूर्ख लोग ऐसे प्रेमीजनों को अन्धविश्वासी कहते हैं मगर यह ख़्याल उनका ग़लत है। अन्धविश्वास तब हो जब उन्हें कुछ समझ में न आया हो। अगर कोई शख़्स जल्दी व आसानी के साथ सच्चे परमार्थ के सिद्धान्तों को अनुभव कर लेता है तो यह उसके लिये तारीफ़ की बात है और लोगों का ऐसे प्रेमीजनों को अन्धविश्वासी गरदानना ज़ाहिर करता है कि उनकी अनुभव-शक्ति निहायत कमज़ोर है।

राधास्वामी

प्रस्तुति - अनिल /पुतुल


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