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*दयालबाग़ में सुबह के सतसंग के समाप्त होने पर जो बिनती पढ़ी जाती है उसके मानी नीचे दर्ज करते हैं:-*
*(1) ”ऐ गुरु महाराज! अहंकार को तजकर और मन की ज़बरदस्तियों से दुखी होकर हम दास अपना सीस हुज़ूर के चरणकमलों पर झुका कर अपनी बिनती पेश करते हैं।*
*(2) भवजल यानी संसार के अथाह सागर में अनन्त व अपार लहरें उठ रही हैं और ऊपर से कुल रचना पर ज़हरे हलाहल की धार बरस रही है जिसकी वजह से मन की बहिर्मुख वृत्तियाँ प्रबल हो रही हैं और संसार के मनुष्य आत्मा और सच्चे मालिक को भूलकर मायिक पदार्थों की जानिब दौड़ रहे हैं।*
*(3) ऐ समर्थ व पूर्ण धनी! आप गहरी दया बिचारें और काल कर्म की धार के कष्ट को निवारण फ़र्मावें।*
*(4) ऐ परम पिता! हम दासों ने आपकी शरण अडोल तरीक़े पर दृढ़ता के साथ धारण की है (कोई कष्ट या तकलीफ़ की हालत या मायिक पदार्थों का लोभ लालच हमें बहकाकर डाँवा डोल नहीं कर सकता,हमारी तबज्जह केवल आपके चरणों में लगी है)। शरण लेने के बाद जो कृपा आपने हमारे ऊपर फ़र्माई वह अतोल है,हमारी ज़बान उसके बयान करने में असमर्थ है।*
*(5) ऐ दाता! आपने अपने चरणकमलों का साया हमें बख़्शिश फ़र्माया, आपकी क्या स्तुति करें (आपकी कृपा का कुछ वार पार नहीं)। आपने हमारे लिये संसार में जन्म धारण फ़र्माया और हमें ख़ुद अपने पवित्र चरणों की पहचान इनायत फ़र्माई।*
*(6) अब ऐसी मेहर की बख़्शिश फ़र्माइये कि जो प्रीति प्रतीति हमें प्रदान हुई है वह बनी रहे और हमारा चित्त किसी वजह से भी डोलने न पावे और संसार सागर से पार उतर कर हमें आपके परम पवित्र चरणों में निवास मिले यानी हमारी सुरत मायिक मण्डलों से पार हो कर निर्मल चेतन देश में प्रवेश करे।*
*(7) ऐ परम पुरुष पूर्ण धनी राधास्वामी दयाल! जबतक हमारा बेड़ा संसार सागर से पार न हो जावे तबतक हमारी बराबर सँभाल फ़र्माइये।*
*(8) ऐ सच्चे मालिक! दासों की इतनी अर्ज़ मंज़ूर फ़र्माइये और फ़ौरन मंजूर फ़र्माइये। हम आपके पवित्र चरणों के आश्रित हैं और उन पर न्यौछावर यानी क़ुर्बान हैं।*
इस बिनती का मुताला करने से समझ में आ सकता है कि एक सच्चा सतसंगी क्या ख़्वाहिश लेकर सच्चे मालिक के चरणों की तरफ़ रुजू लाता है और किस गति की प्राप्ति के लिये हाथ पाँव मारता है। साधारण सृष्टिनियमों और कर्मों की विरुद्ध ताक़तें सरीहन हमारी किश्ती को परमार्थी आदर्श से दूर ले जा रही हैं इसलिये कुल कर्तार से दीनता व नम्रता पूर्वक प्रार्थना की जाती है कि वे बेड़े को मंजिले मक़सूद पर पहुँचावें और ऐसी मौज फ़र्मावें कि हमारी सुरत यानी आत्मा मन व माया के झमेलों से छुटकारा पाकर निर्मल चेतन देश में दाख़िल हो और जबतक यह गति हासिल न हो तब तक रक्षा का हाथ हमारे सिर पर बना रहे और हमारी प्रीति प्रतीति में कमी न होने पावे। नीज़ यह समझते हुए कि सतगुरु कैसे दुर्लभ रत्न होते हैं और किन क़ायदों की पाबन्दी में उन की संसार में आमद होती है और उनके ज़ाहिरन् साधारण मनुष्यों की तरह रहने से उनकी परख पहचान करना कैसा दुश्वार है सच्चे दिल से शुकराना अदा किया जाता है कि उन्होंने कृपा करके हमारे लिये सबके सब संयोग जोड़ दिये और अपनी तरफ़ से दया फ़र्माकर अपनी परख पहचान बख़्शिश फ़र्माई।
राधास्वामी
प्रस्तुति - उषा रानी / राजेंद्र प्रसाद सिन्हा
*दयालबाग़ में सुबह के सतसंग के समाप्त होने पर जो बिनती पढ़ी जाती है उसके मानी नीचे दर्ज करते हैं:-*
*(1) ”ऐ गुरु महाराज! अहंकार को तजकर और मन की ज़बरदस्तियों से दुखी होकर हम दास अपना सीस हुज़ूर के चरणकमलों पर झुका कर अपनी बिनती पेश करते हैं।*
*(2) भवजल यानी संसार के अथाह सागर में अनन्त व अपार लहरें उठ रही हैं और ऊपर से कुल रचना पर ज़हरे हलाहल की धार बरस रही है जिसकी वजह से मन की बहिर्मुख वृत्तियाँ प्रबल हो रही हैं और संसार के मनुष्य आत्मा और सच्चे मालिक को भूलकर मायिक पदार्थों की जानिब दौड़ रहे हैं।*
*(3) ऐ समर्थ व पूर्ण धनी! आप गहरी दया बिचारें और काल कर्म की धार के कष्ट को निवारण फ़र्मावें।*
*(4) ऐ परम पिता! हम दासों ने आपकी शरण अडोल तरीक़े पर दृढ़ता के साथ धारण की है (कोई कष्ट या तकलीफ़ की हालत या मायिक पदार्थों का लोभ लालच हमें बहकाकर डाँवा डोल नहीं कर सकता,हमारी तबज्जह केवल आपके चरणों में लगी है)। शरण लेने के बाद जो कृपा आपने हमारे ऊपर फ़र्माई वह अतोल है,हमारी ज़बान उसके बयान करने में असमर्थ है।*
*(5) ऐ दाता! आपने अपने चरणकमलों का साया हमें बख़्शिश फ़र्माया, आपकी क्या स्तुति करें (आपकी कृपा का कुछ वार पार नहीं)। आपने हमारे लिये संसार में जन्म धारण फ़र्माया और हमें ख़ुद अपने पवित्र चरणों की पहचान इनायत फ़र्माई।*
*(6) अब ऐसी मेहर की बख़्शिश फ़र्माइये कि जो प्रीति प्रतीति हमें प्रदान हुई है वह बनी रहे और हमारा चित्त किसी वजह से भी डोलने न पावे और संसार सागर से पार उतर कर हमें आपके परम पवित्र चरणों में निवास मिले यानी हमारी सुरत मायिक मण्डलों से पार हो कर निर्मल चेतन देश में प्रवेश करे।*
*(7) ऐ परम पुरुष पूर्ण धनी राधास्वामी दयाल! जबतक हमारा बेड़ा संसार सागर से पार न हो जावे तबतक हमारी बराबर सँभाल फ़र्माइये।*
*(8) ऐ सच्चे मालिक! दासों की इतनी अर्ज़ मंज़ूर फ़र्माइये और फ़ौरन मंजूर फ़र्माइये। हम आपके पवित्र चरणों के आश्रित हैं और उन पर न्यौछावर यानी क़ुर्बान हैं।*
इस बिनती का मुताला करने से समझ में आ सकता है कि एक सच्चा सतसंगी क्या ख़्वाहिश लेकर सच्चे मालिक के चरणों की तरफ़ रुजू लाता है और किस गति की प्राप्ति के लिये हाथ पाँव मारता है। साधारण सृष्टिनियमों और कर्मों की विरुद्ध ताक़तें सरीहन हमारी किश्ती को परमार्थी आदर्श से दूर ले जा रही हैं इसलिये कुल कर्तार से दीनता व नम्रता पूर्वक प्रार्थना की जाती है कि वे बेड़े को मंजिले मक़सूद पर पहुँचावें और ऐसी मौज फ़र्मावें कि हमारी सुरत यानी आत्मा मन व माया के झमेलों से छुटकारा पाकर निर्मल चेतन देश में दाख़िल हो और जबतक यह गति हासिल न हो तब तक रक्षा का हाथ हमारे सिर पर बना रहे और हमारी प्रीति प्रतीति में कमी न होने पावे। नीज़ यह समझते हुए कि सतगुरु कैसे दुर्लभ रत्न होते हैं और किन क़ायदों की पाबन्दी में उन की संसार में आमद होती है और उनके ज़ाहिरन् साधारण मनुष्यों की तरह रहने से उनकी परख पहचान करना कैसा दुश्वार है सच्चे दिल से शुकराना अदा किया जाता है कि उन्होंने कृपा करके हमारे लिये सबके सब संयोग जोड़ दिये और अपनी तरफ़ से दया फ़र्माकर अपनी परख पहचान बख़्शिश फ़र्माई।
राधास्वामी
प्रस्तुति - उषा रानी / राजेंद्र प्रसाद सिन्हा
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