प्रस्तुति - अनिल / पुतुल
+91 92*परम गुरु हुज़ूर मेहताजी महाराज के संदेश*
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*10 अगस्त, 1944 को संदेश दिया- Be an early riser and be economical, industrious, truthful, kind and considerate, a good citizen and a true Bhakta of Huzur Radhasoami Dayal. (आप प्रातःकाल उठने वाले, मितव्ययी, परिश्रमी, सत्यभाषी, दयावान् और लिहाज़ रखने वाले, उत्तम नागरिक और हुज़ूर राधास्वामी दयाल के सच्चे भक्त बनिए)।*
राधास्वामी
[17/02, 14:26] +91 92343 17526: सभा से प्राप्त दिशा निर्देशों के अनुसार उपदेश प्राप्त भाई बहन जो लंबे समय से ब्रांच नहीं आ रहे है, उनका नाम सत्संगियों की A लिस्ट से हटाकर लिस्ट B में डाला जाएगा जिसका मतलब है वे लोग किसी भी प्रकार की भेंट देने से वंचित हो जाएंगे साथ ही सेक्रेटरी और ब्रांच के office bearers के इलेक्शन में वोट नहीं कर सकते है।
लिहाज़ा आप सभी को सूचित किया जाता है कि जिन भाई बहनों की पिछले 2 वर्षों में शून्य (जीरो) हाज़िरी है उनका नाम B लिस्ट में ट्रांसफर किया जा रहा है। ऐसे भाई बहनों से निवेदन है कि वे ब्रांच आकर ब्रांच सेक्रेटरी से सम्पर्क करें और अपने न आने का कारण स्पष्ट करें एवं ब्रांच में सत्संग एवं सेवा में अपनी हाज़िरी अवश्य दर्ज कराएं। राधास्वामी
[17/02, 18:24] +91 92346 58709: **राधास्वामी!! 17-02-2020-आज शाम के सतसंग में पढा गया बचन-कल से आगे-(60) परोपकार करने के लिये अव्वल योग्यता या अधिकार की आवश्यकता है और अधिकार अपनी आला शक्तियाँ जगाने से आता है और आला शक्तियाँ अमल यानु साधन करने से जगती है इसलिए बुद्धिमान वही मनुष्य है जो पहले अपनी आला शक्तियां जगाने के लिए साधन करता है और साधन पूरा होने पर परोपकार में लगता है। बर्खिलाफ इसके बहुत से लोग, जो न कोई अधिकार रखते हैं, न तजुर्बा बिना जाने या दूसरों से सुने सुनाये काम करके अपने तई परोपकारी कहलाते हैं और इसी में संतुष्ट रहते हैं। यह उनकी भूल है। असली परोपकारी वह है जिसकी समझ में आ गया कि आम लोगों की असली भलाई किस बात में है और जिसमें वह भलाई करने का अधिकार मौजूद है और अगर यह दोनों बातें नहीं है तो जैसे कपड़े रंगा लेने से कोई शख्स असली साधू नहीं बन जाता वैसे ही परोपकार की पोशाक पहन लेने से कोई शख्स असली परोपकारी नहीं बन सकता।🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻 सत्संग के उपदेश- भाग तीसरा।**
[19/02, 16:40] +91 92346 58709: 💥💥💥💥
19-02- 2020 - आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन- कल से आगे-
( 62) बाज स्त्रियां प्रार्थना करती हैं कि उनके पति सत्संगी बन जाए उनका प्रार्थना करना बेजा नहीं है लेकिन उनके लिए मुनासिब है कि अपने पतियों के साथ ऐसा बर्ताव करें कि उनको यकीन हो जाए कि राधास्वामी दयाल की चरण शरण स्वीकार करने से उनका मन निर्मल हो रहा है। जब उनको इस तरह का विश्वास हो जाएगा तो जरूर उनको राधास्वामी- मत की शिक्षा जानने की इच्छा पैदा होगी और यह इच्छा पूरी करने के लिए जब मत की 2-1 पुस्तके ध्यान से पढ़ लेंगे तो अवश्य उनके मन में राधास्वामी- मत की सच्चाई व बुजुर्गी का विश्वास बैठ जाएगा। इस शिक्षा पर अमल करने से न सिर्फ स्त्रियों की अपने पतियों के बारे में इच्छा पूरी हो जाएगी बल्कि उनके घर में सुख शांति बढती जावेगी और उनके स्वभावों में निहायत खुशगवार तब्दीली होती जावेगी। किसी संबंधी को जबरदस्ती सत्संगी बनाने की चाह उठाना गलत व मुनासिब है । परमार्थ बारे में हर किसी को पूरी स्वतंत्रता रहनी चाहिए। इसके अलावा सभी जीव मालिक के बच्चे हैं और उसे अपने बच्चों की हमारे निस्बत कहीं अधिक फिक्र है। हम महज मोहबस उनकी उन्नति चाहते हैं मालिक अपने स्वभाव बस उनकी उन्नति की फिक्र करता है।
राधास्वामी
सत्संग के उपदेश- भाग तीसरा
[20/02, 08:54] +91 92346 58709: *जिस किसी को दुनिया का हाल और देहियों की नाशमानता और दुख सुख का भोग और मौत का सिर पर खड़ा होना देखकर, सच्चा खौफ और फिक्र अपने जीव के कल्यान का पैदा हुआ है, उसी को संत सतगुरु और उनका सत्संग प्यारा लगेगा क्योंकि वहां उसको भेद सच्चे मालिक और उसके धाम का, जहां से जीव आदि में आया है, और जुगत वहां चलकर पहुंचने की मालूम होवेगी और उनसे रास्ता तै करने में मदद मिलेगी।*
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