Sunday, February 23, 2020

राधास्वामी संतमत की शिक्षा का सार




प्रस्तुति - आशा सिन्हा / रीना शरण
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स्मारिका
परम पुरुष पूरन धनी हुज़ूर स्वामीजी महाराज

            26. स्वामीजी महाराज द्वारा स्थापित राधास्वामी मत की शिक्षा संक्षेप में निम्नवत हैः-
             मानव जीवन का उद्देश्य परम पद को प्राप्त करना है और यह मनुष्य शरीर में स्थित सुरत की बैठक के स्थान से सुरत को ऊपर चढ़ाने से प्राप्त होता है और यह चढ़ाई आध्यात्मिक धार की सहायता से जो अन्तर में शब्द के रूप में अनुभव की जाती है,संभव है।  यह शब्द शुद्ध निर्मल चेतन देश से,जोकि पूर्ण मुक्ति और मोक्ष का देश है, आता है। आध्यात्मिक साधनों की जुगति का भेद उन संत सतगुरू के प्रत्यक्ष उपदेश या हुक्म से सीखा जा सकता है, जिनका तार कुल मालिक से जुड़ा हुआ है।
            भक्ति के तीन साधन हैं :-
            (i) मनुष्य शरीर में सुरत की बैठक के स्थान पर पवित्र नाम का सुमिरन।
            (ii) सुरत की बैठक के स्थान पर संत सतगुरू के पवित्र स्वरूप का ध्यान।
            (iii) शब्द अभ्यास में सुरत के स्थान पर तवज्जुह को एकत्र व एकाग्र करके शब्द की धार यानि सुरत-शक्ति के साथ सम्बन्ध स्थापित किया जाता है, जो सत्ता चेतनता आनन्द और प्रकाशमय है।
            27. अन्य आवश्यक बातें निम्नवत हैं:-
            (i) संत सतगुरू की सेवा, जिसमें उन दयाल की आज्ञानुसार प्राणीमात्र की सेवा और उन दयाल की दया व मेहर और अन्तरी सहायता प्राप्त करना शामिल है।
            (ii) सतसंग-सामूहिक पवित्र सतसंग जिसके अधिष्ठाता सतगुरू होते हैं,जहाँ पवित्र बानियों व पोथियों से रोज़ाना पाठ होता है और प्रतिदिन बचन पढ़े जाते हैं और संत सतगुरू का संग प्राप्त होता है।
राधास्वामी

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