Monday, April 6, 2020

दयालबाग में आज 07/04 को सुबह का सत्संग और पाठ




राधास्वामी!! 07-04-2020-                        आज सुबह के सतसंग में पढे गये पाठ:-             
                                                               (1) राधास्वामी लिया अपनाय सखी री। शोभा अद्भुत आज लखी री।। राधास्वामी आदि धाम से आये री। राधास्वामी सब से ऊँच धाये री।। 

(सारबचन-शब्द-5,पृ.सं. 70)                         

 (2) सुरतिया चटक चली। सुन धुन झनकार।।   

(प्रेमबानी-2,शब्द-97,पृ.सं.217)                                       

    🙏🏻राधास्वामी🙏🏻



परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -रोजाना वाक्यात- 24 अगस्त 1932 -बुधवार- आज स्वामीजी महाराज का जन्मदिन है । जो खास प्रेम और उत्साह के साथ मनाया जाता है। चुनाँचे आज दिन भर उत्सव रहा। तीसरे पहर मुख्तसर भंडारा हुआ ।

जिसमें चार हजार के करीब भाइयों बहने सम्मिलित हुई। रात के सत्संग में बयान हुआ कि आमतौर इंसान के अंदर चित्तवृतयाँ प्रबल रहती है है यह वृतियाँ आत्मा नही है। आत्मा बतौर बादशाह के हैं ।

मन बतौर वजीर के हैं और यह वृतियाँ बतौर गुलामों के । और बादशाह, वजीर व गुलाम में जमीन आसमान का फर्क होता है। इसलिये सतसंगी भाइयों को ख्याल रखना चाहिये कि जब तक उनके अंदर चित्तवृतियाँ रुक कर (गुलामों की काररवाइयाँ बंद होकर) आला दर्जे की प्रज्ञा प्रकट न हो उनका अभ्यास कच्चा है।

राधास्वामी!! 07-04-2020- आज सुबह के सतसंग में पढे गये पाठ:- (1) राधास्वामी लिया अपनाय सखी री। शोभा अद्भुत आज लखी री।। राधास्वामी आदि धाम से आये री। राधास्वामी सब से ऊँच धाये री।। (सारबचन-शब्द-5,पृ.सं. 70) (2) सुरतिया चटक चली। सुन धुन झनकार।। (प्रेमबानी-2,शब्द-97,पृ.सं.217) 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻

परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -रोजाना वाक्यात- 24 अगस्त 1932 -बुधवार- आज स्वामीजी महाराज का जन्मदिन है । जो खास प्रेम और उत्साह के साथ मनाया जाता है। चुनाँचे आज दिन भर उत्सव रहा। तीसरे पहर मुख्तसर भंडारा हुआ । जिसमें चार हजार के करीब भाइयों बहने सम्मिलित हुई। रात के सत्संग में बयान हुआ कि आमतौर इंसान के अंदर चित्तवृतयाँ प्रबल रहती है है यह वृतियाँ आत्मा नही है। आत्मा बतौर बादशाह के हैं ।

मन बतौर वजीर के हैं और यह वृतियाँ बतौर गुलामों के । और बादशाह, वजीर व गुलाम में जमीन आसमान का फर्क होता है। इसलिये सतसंगी भाइयों को ख्याल रखना चाहिये कि जब तक उनके अंदर चित्तवृतियाँ रुक कर (गुलामों की काररवाइयाँ बंद होकर) आला दर्जे की प्रज्ञा प्रकट न हो उनका अभ्यास कच्चा है।

 अभ्यास करने के यह मानी नही है कि अपना दिल खुश कर लें। अभ्यास अन्दरूनी तब्दीलियां पैदा करने की गरज से किया जाता है। जागृत अवस्था की प्रज्ञा निहायत अदना है। यह प्रज्ञा नष्ट होकर उससे ऊपर के दर्जै की और फिर आगे की और फिर उससे परेशान की प्रज्ञा प्रकट हो और फिर हमारा आत्मा बेगिलाफ होकर अपना ज्ञान हासिल करें और फिर सच्चे मालिक का दर्शन हो। अगर इन बातों को जहन में रखकर अभ्यास किया जावेगा तो बहुत से विघ्नों से रक्षा रहेगी।

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻

अभ्यास करने के यह मानी नही है कि अपना दिल खुश कर लें। अभ्यास अन्दरूनी तब्दीलियां पैदा करने की गरज से किया जाता है। जागृत अवस्था की प्रज्ञा निहायत अदना है। यह प्रज्ञा नष्ट होकर उससे ऊपर के दर्जै की और फिर आगे की और फिर उससे परेशान की प्रज्ञा प्रकट हो और फिर हमारा आत्मा बेगिलाफ होकर अपना ज्ञान हासिल करें और फिर सच्चे मालिक का दर्शन हो। अगर इन बातों को जहन में रखकर अभ्यास किया जावेगा तो बहुत से विघ्नों से रक्षा रहेगी।

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻

राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
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