Tuesday, April 7, 2020

आज 07/04 को सत्संग में पढा गया बचन




**राधास्वामी!!

07-04-2020-                   

आज शाम के सतसंग में पढे गये पाठ:-                                                                       
 (1) सुनी मैं महीमा सतसंग सार। जगा मेरे हियज में गहिरा प्यार ।। सेव गुरु करता उमँग जगाय। गुरु परताम रहा हिये छाय।। (प्रेमबानी-3,शब्द-2,पृ.सं.216)                                                                                   
(2) दरश आज दीजिये मेरे राधास्वामी प्यारे हो।।टेक।। (प्रेमबिलास-शब्द95,पृ.सं.136)                                                                (3) सतसंग के उपदेश-भाग तीसरा-कल से आगे।।           

  🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**


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*राधास्वामी !! 06-04 -2020- आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन/

 कल से आगे/( 103)-

लोग पूछते हैं कि आदि में यानी रचना होने से पहले सुरत और मालिक की एकता किस तरीके सै कायम थी यानी यह जो कहा जाता है कि आदि में सुरत मालिक से अभिन्न थी तो उस वक्त सुरत का क्या स्वरूप था?  अगर उस वक्त सुरत व मालिक  एक हो रहे थे तो मानना होगा कि रचना होने पर मालिक के टुकड़े हो गये।

 जवाब यह है कि जो बुद्धि इस वक्त सवाल करती है और रचना से पहले का भेद समझा चाहती है वह खुद रचना होने के बाद प्रकट हुई है यानी वह ऐसे मसाले की बनी है जिस पर रचना का अमल काम कर चुका है इसलिए इस बुद्धि में या काबिलियत नही है कि रचना से पहले की अवस्था का हाल समझने-के लिये हमें बुद्धि इस्तेमाल कलनी होगी जिस पर रचना का अमल असर नही डाल सका और और वह चेतन बुद्धि है जो सुरत की ज्ञानशक्ति है।

  लेकिन चूँकि मन इन बातों से शांत नहीं होता और बावजूद अपने अंदर अपने से बरतर मसाले की हालत समझने की काबिलियत न रखने के हर बात जान लेने का शौकिन है इसलिए संतों ने फरमाया है कि रचना से पहले कुलमालिक व सुरत में वही रिश्ता कायम था जो समुंद्र और पानी की बूंद में या सूरज और सूरज की किरण में होता है।

 इस मिसाल से जो लोग यह ख्याल नही रखते  कि मिसाल का सिर्फ एक ही पहलू या अंग लिया जाता है भ्रम उठाते हैं कि रचना होने पर मालिक टुकड़े-टुकड़े हो गया। उन्हें याद रखना चाहिए कि न मालिक पानी का समुंद्र है और न सुरत पानी  की बूंद।  इस दुस्तान से सिर्फ मालिक व सुरत की अभिन्नता दिखलाना मुतसव्विर है ।**   
                                                          *(कल का शेष:-07-04-2020):- 

           

 इस सिलसिले में एक दूसरी मिसाल भी जा सकती है जो शायद मालिक व सुरत के रिश्ते को ज्यादा साफ तौर से अदा करती है।

 कहते हैं कि जब कृष्ण महाराज अपनी बांसुरी बजाते थे तो उनका दर्शन करती हुई और बांसुरी की आवाज सुनते हुई हजारों गोपिया मेहव हो जाती थी और उनको अपनी अनानियत की सुध न रहती थी लेकिन बांसुरी बंद होने पर सब अपने खाते में आपे में आ जाती थी और अपने धंधो में मशरूफ हो जाती थी।

इसलिए कह सकते हैं कि रचना होने पर सोते की रचना होने पर सुरतें, जो कि रचना होने  से पहले मालिक में रत थी  और मालिक के साथ एक हो रही थी, बांसुरी बंद होने पर गोपियों की तरह जुदागना मशगलों में मशरूफ हो गई ।

🙏🏻राधास्वामी 🙏🏻 

सत्संग के उपदेश- भाग तीसरा।**

राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
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