Tuesday, April 14, 2020

आज 15/04 मुबारक हो




प्रस्तुति - कृष्ण मेहता:

 💎💎💎  ⚜🕉⚜  💎💎💎

*🙏ॐ श्रीगणेशाय नम:🙏*
   *🙏शुभप्रभातम् जी🙏*

*इतिहास की मुख्य घटनाओं सहित पञ्चांग-मुख्यांश ..*

     *📝आज दिनांक 👉*
   
   *📜 14 अप्रैल 2020*
              *मंगलवार*
 *🏚नई  दिल्ली अनुसार🏚*

*🇮🇳शक सम्वत-* 1942
*🇮🇳विक्रम सम्वत-* 2077
*🇮🇳मास-* बैशाख
*🌓पक्ष-* कृष्णपक्ष
*🗒तिथि-* सप्तमी-16:13 तक
*🗒पश्चात्-* अष्टमी
*🌠नक्षत्र-* पूर्वाषाढ़ा-19:41 तक
*🌠पश्चात्-* उत्तराषाढ़ा
*💫करण-* बव.-16:13 तक
*💫पश्चात्-* बालव
*✨योग-* शिव-18:01 तक
*✨पश्चात्-* सिद्ध
*🌅सूर्योदय-* 05:56
*🌄सूर्यास्त-* 18:46
*🌙चन्द्रोदय-* 25:25
*🌛चन्द्रराशि-* धनु-25:58 तक
*🌛पश्चात्-* मकर
*🌞सूर्यायण-* उत्तरायन
*🌞गोल-* उत्तरगोल
*💡अभिजित-* 11:55 से 12:47
*🤖राहुकाल-* 15:34 से 17:10
*🎑ऋतु-* वसन्त
*⏳दिशाशूल-* उत्तर

*✍विशेष👉*

*_🔅आज मंगलवार को 👉 बैशाख बदी सप्तमी 16:13 तक पश्चात् अष्टमी शुरु , श्री कालाष्टमी , सर्वदोषनाशक रवि योग 19:41 तक , विशू (बंगाल ) , गुरु श्री अर्जुन देव जयन्ती ( प्राचीनमतानुसार ) , डॉ भीमराव अंबेडकर जयंती , महर्षि वेंकटरमण अय्यर स्मृति दिवस , डाल्फिन दिवस , विश्व एयरोनॉटिक्स और ब्रह्माण्ड विज्ञान दिवस , ब्लैक डे (साउथ कोरिया) व अग्निशमन सेवा दिवस ( अग्निशमन सेवा सप्ताह - 14-20 अप्रैल)।_*
*_🔅कल बुधवार को 👉 बैशाख बदी अष्टमी 16:53 तक पश्चात् नवमी शुरु , श्री शीतलाष्टमी व्रत (बासी भोजन विहित है ) , बुढा बास्योड़ा , गुरु नानक देव जयन्ती (तारीखानुसार) , गुरु अर्जुनदेव जयन्ती (तारीखानुसार) व हिमाचल प्रदेश दिवस (1948 , पूर्ण राज्य 25 जनवरी 1971 को ) ।_*

*🎯आज की वाणी👉*

🌹
*सततं यदि वैफल्यं*
    *नैराश्यं   चेद्   भजस्व  मा ।*
*तालकोद्धाटिका कुञ्जे*
    *कदाचित् कुञ्चिकान्तिमा।।*
*अर्थात्👉*
         _लगातार हो रही असफलताओं से कभी निराश नहीं होना चाहिए। कभी-कभी गुच्छे की आखिरी चाबी ताले को खोल देती है।_
🌹

*14 अप्रॅल की महत्त्वपूर्ण घटनाएँ👉*

1434 – फ्रांस के विश्वविख्यात सेंट पीटर कैथेड्रल की आधारशिला रखी गई।
1611 – टेलीस्कोप शब्द का पहली बार प्रयोग इटली के वैज्ञानिक फेडेरिको सेसी ने किया।
1659 – औरंगजेब ने दिल्ली पर हुकूमत की लड़ाई में दारा को हराया।
1736 - तस्कर एंड्रयू विल्सन के निष्पादन के बाद एडिनबर्ग में निजी दंगे हुए, जब शहर के गार्ड कप्तान जॉन पोर्टियस ने अपने लोगों को भीड़ पर आग लगाने का आदेश दिया। पोर्टरी को बाद में गिरफ्तार किया गया।
1775 - पहली बीजावृत्तिवादी संगठन का आयोजन फिलाडेल्फिया, अमेरिका में हुआ।
1809 – नेपोलियन ने बावारिया की लड़ाई में आस्ट्रिया को शिकस्त दी।
1814 – नेपोलियन को राजगद्दी से हटाया गया।
1834 - व्हिग पार्टी को आधिकारिक तौर पर संयुक्त राज्य अमेरिका के सीनेटर हेनरी क्ले द्वारा नामित किया गया।
1849 – यूरोपीय देश हंगरी ने आस्ट्रिया से स्वतंत्र होने की घोषणा की और लुईस कोसुथ को अपना नेता चुना।
1865 – अमरीका के 16वें राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन को वाशिंगटन के ‘फोर्ड थियटर’ में उस समय गोली मार दी गई, जब वो 'आवर अमेरिकन कज़िन' नाटक देख रहे थे।
1912 – विलासिता और शान ओ शौकत से भरपूर टाइटेनिक जहाज समुद्र में सफर करते समय एक हिमखंड से टकराकर यह डूब गया। जबकि टाइटेनिक को इस तरह से तैयार किया गया था कि वो कभी डूबेगा ​ही नहीं।
1944 – बंबई बंदरगाह पर हुए भयंकर विस्फोट में लगभग 300 लोग मारे गए और दो करोड़ पाउंड की क्षति हुई (1944 में मुम्बई बंदरगाह में अकस्मात आग लग जाने के कारण 66 अग्निशमन कर्मी वीरगति को प्राप्त हुए थे। इन शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करने व अग्नि से बचाव के उपाय बताने के लिए देशभर में अग्निशमन दिवस मनाया जाता है।)।

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*टेलीग्राम चैनल👇*
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1970 – अमरीकी अंतरिक्ष यान अपोलो 13 में धमाका हुआ। हांलाकि 17 अप्रैल, 1970 को अपोलो 13 सफलतापूर्वक धरती पर वापस लौट आया।
1981 – पहला अंतरिक्ष यान कोलंबिया-1 वापस धरती पर लौटा।
1988 – तत्कालीन सोवियत संघ, अमेरिका, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच अफगानिस्तान की संधि पर हस्ताक्षर हुआ। जिसके तहत सोवियत संघ को अफ़गानिस्तान से अपने सैनिकों को हटाना था।
1995 – भारत चौथी बार एशिया कप चैंपियन बना। शाहजाह में खेले गए फाइनल में श्रीलंका को हराया।
1995 - यूक्रैन में स्थित चेरनोबिल परमाणु ऊर्जा संयंत्र वर्ष 2000 तक बंद करने की घोषणा।
1999 - मलेशिया के अपदस्थ उपप्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम को भ्रष्टाचार के मामले में छह वर्ष क़ैद की सज़ा।
2000 - रूस की संसद ने संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस के बीच 'स्टार्ट-2' परमाणु शस्त्र कटौती संधि का अनुमोदन किया।
2002 - अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में मुकदमें का सामना कर रहे सर्बियाई नेता का निधन।
2003 - इस्रायल के प्रधानमंत्री एरियल शैरोन पश्चिमी तट से कुछ यहूदी बस्तियाँ हटाने पर सहमत।
2004 - अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश ने ईराक को दूसरा वियतनाम न बनने देने की घोषणा की।
2005 - भारत और अमेरिका ने अपने-अपने उड़ान क्षेत्र एक-दूसरे की एयरलाइनों के लिए खोलने का ऐतिहासिक समझौता किया।
2006 - चीन में प्रथम बौद्ध विश्व सम्मेलन शुरू।
2008 - उत्तर प्रदेश सरकार ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश का भौगोलिक नक्शा बनाने की घोषणा की।
2008 - किर्लोस्कर ब्रदर्स को दामोदर घाटी निगम (डीवीसी) की कोडरमा ताप विद्युत परियोजना से 166 करोड़ 77 लाख रुपये का आर्डर मिला।
2008 - 40 वर्ष बाद भारत व बांग्लादेश के बीच सम्बन्धों को मज़बूत बनाने के लिए मैत्री एक्सप्रेस कोलकाता और बांग्लादेश की राजधानी ढाका से एक दूसरे देश के लिए रवाना हुई।
2008 - पुरातत्वविदों ने मिस्र के सिनाई प्राय:द्वीप से रोमन सम्राट वेलेन्स के काल के प्राचीन सिक्के बरामद करने का दावा किया।
2010 - पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड और उड़ीसा में चक्रवाती तूफ़ान में 123 लोगों की मृत्यु हो गई।
2010 – चीन के किगगाई में 6.9 तीव्रता का भूकंप आया, इस आपदा में लगभग 2700 लोग मारे गए।
2011- राष्ट्रीय सुरक्षा सूचकांक (एनएसआई) द्वारा हाल ही में किए सर्वेक्षण में भारत को दुनिया का पांचवा सर्वाधिक शक्तिशाली देश माना गया। सूची में अमेरिका को पहले तथा चीन दूसरे स्थान पर है। जापान और रूस को क्रमश: तीसरा और चौथा स्थान मिला है। कार्य-कुशल जनसंख्या के मामले में भारत तीसरे स्थान पर है, चीन पहले स्थान पर है। रक्षा की दृष्टि से भारत चौथी महाशक्ति है।
2013 - सोमालिया के मोगादिशु में आतंकवादी हमले में 20 मरे।
2019 - एक आर.टी.आई के जवाब में RBI का खुलासा: मोदी सरकार में बैंकों के डूब गए रुपए 5. 55 लाख करोड़।
2019 - लीबियाई संघर्ष में 120 से ज्यादा की मौत, करीब 600 घायल : रिपोर्ट।
2019 -नेपाल: हवाईअड्डे पर खड़े हेलिकॉप्टर से टकराया विमान, दो की मौत, पांच घायल।

*14 अप्रॅल को जन्मे व्यक्ति👉*

1862 - प्रभाशंकर पाटनी - गुजरात के प्रमुख सार्वजनिक कार्यकर्त्ता थे।
1891 - बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर ।
1907 - पूरन चन्द जोशी - स्वाधीनता सेनानी ।
1919 - शमशाद बेगम - हिन्दी फ़िल्मों की प्रसिद्ध पार्श्वगायिका।
1920 - गवरी देवी - राजस्थान की प्रसिद्ध मांड गायिका।
1922 - अली अकबर ख़ाँ - प्रसिद्ध भारतीय संगीतकार, शास्त्रीय गायक और सरोद वादक।
1940 - अवतार एनगिल - कवि एवं साहित्यकार।

*14 अप्रॅल को हुए निधन👉*

1859 - जमशेद जी जीजाभाई, अपने व्यवसाय से अत्यंत धनी बने, दानवीर थे।
1950 - रमण महर्षि - बीसवीं सदी के महान् संत और समाज सेवक।
1962 – भारत रत्न से सम्मानित प्रसिद्ध भारतीय अभियंता एवं राजनयिक मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का निधन हुआ।
1963 - राहुल सांकृत्यायन- हिन्दी के एक प्रमुख साहित्यकार।
1986 - नितिन बोस - प्रसिद्ध फ़िल्म निर्देशक, छायाकार और लेखक।
2013 - रामा प्रसाद गोयनका - आरपीजी समूह के संस्थापक और अध्यक्ष एमेरिटस थे।
2013 - प्रतिवादि भयंकर श्रीनिवास - भारत के एक अनुभवी नेपथ्यगायक थे।

*14 अप्रॅल के महत्त्वपूर्ण अवसर एवं उत्सव👉*

🔅 गुरु श्री अर्जुन देव जयन्ती ( प्राचीनमतानुसार )।
🔅 ब्लैक डे (साउथ कोरिया) ।
🔅 डॉ भीमराव अंबेडकर जयंती ।
🔅 महर्षि वेंकटरमण अय्यर स्मृति दिवस ।
🔅 डाल्फिन दिवस ।
🔅 विश्व एयरोनॉटिक्स और ब्रह्माण्ड विज्ञान दिवस ।
🔅 अग्निशमन सेवा दिवस व अग्निशमन सेवा सप्ताह (14-20 अप्रैल)।

*कृपया ध्यान दें जी👉*
    *यद्यपि इसे तैयार करने में पूरी सावधानी रखने की कोशिश रही है। फिर भी किसी घटना , तिथि या अन्य त्रुटि के लिए मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं है ।*

🌻आपका दिन *_मंगलमय_*  हो जी ।🌻

   ⚜⚜ 🌴 💎 🌴⚜⚜
[14/04, 08:24] Morni कृष्ण मेहता: ╲\╭┓
╭ 🌹 ╯           *_जय श्री हरि_*
┗╯\╲☆         *_●•=======•❥_*
    *_✹•⁘••⁘•✹•⁘••⁘•⁘••⁘•✹•⁘••⁘•✹_
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┇ ┇ ┇ ┇ *_करूणा के सागर श्री हरि जी की_*
┇ ┇ ┇ ❁        *_असीम अनुकम्पा  आप पर_*
┇ ┇ ✾                  *_सदैव बनी रहे_*
┇ ✵                               
♡  *✹•⁘••⁘•✹•⁘••⁘•⁘••⁘•✹•⁘••⁘•✹*
             🧾 *_आज का पंचाग_* 🧾
           *_मंगलवार 14 अप्रैल 2020_*

*_हनुमान जी का मंत्र : हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट् ।_*

       *_।। आज का दिन मंगलमय हो ।।_*

🌠 *_दिन (वार) - मंगलवार के दिन क्षौरकर्म अर्थात बाल, दाढ़ी काटने या कटाने से उम्र कम होती है। अत: इस दिन बाल और दाढ़ी नहीं कटवाना चाहिए । मंगलवार को बजरंगबली की पूजा का विशेष महत्व है।_*
🌐 *_विक्रम संवत् – 2077.संकल्पादि में प्रयुक्त होनेवाला संवत्सर – प्रमादी._*
☸️ *_शक संवत - 1942_*
☣️ *_अयन - उत्तरायण_*
⛈️ *_ऋतु - बसंत ऋतु_*
🌤️ *_मास - बैशाख माह_*
🌓 *_पक्ष - कृष्ण पक्ष_*
📆 *_तिथि – सप्तमी 16:12 PM बजे तक उपरान्त अष्टमी तिथि है।_*
💫 *_नक्षत्र – पूर्वाषाढ़ा 19:41 PM तक उपरान्त उत्तराषाढ़ा नक्षत्र है।_*
🔔 *_योग – शिव 18:01 PM तक उपरान्त सिद्ध योग है।_*
✨ *_करण – विष्टि 04:10 AM तक उपरान्त बव 16:12 PM तक उपरान्त बालव करण है।_*
🌙 *_चन्द्रमा – धनु राशि पर।_*
🌞 *_सूर्योदय – प्रातः 06:21:52_*
🌅 *_सूर्यास्त – सायं 18:54:52_*
🤖 *_राहुकाल (अशुभ) – दोपहर 15:00 बजे से 16:30 बजे तक।_*
🔯 *_शुभ मुहूर्त – दोपहर 12.27 बजे से 12.51 बजे तक।_*
⚜️ *_दिशाशूल – मंगलवार को उत्तर दिशा की यात्रा नहीं करनी चाहिये, यदि अत्यावश्यक हो तो कोई गुड़ खाकर यात्रा कर सकते है।_*
⚛️ *_शुभ मुहूर्त : कालाष्टमी व्रत_*
📡 *_व्यापार : आज कारोबार शुरू करने का मुहूर्त नहीं है।_*
👼🏻 *_मुंडन : आज मुंडन का मुहूर्त नहीं है।_*
👫🏻 *_विवाह : आज विवाह का मुहूर्त नहीं है।_*
🚕 *_वाहन : आज वाहन खरीदने का मुहूर्त नहीं है।_*
🏘️ *_गृहप्रवेश : आज गृह प्रवेश का मुहूर्त नहीं है।_*

          ⛲ *_वास्तु टिप्स_* 🏚️

*_वास्तु शास्त्र के अनुसार दक्षिण दिशा का संबंध लाल रंग से है। अतः दक्षिण दिशा में लाल रंग के मार्बल का यूज़ करना आपके लिये बेहतर रहेगा, लेकिन अगर किसी को ये रंग पसंद न हो या वो फर्श के रूप में लाल रंग का इस्तेमाल न करना चाहते हों, तो इसका भी एक उपाय है। आप पूरे फर्श पर लाल रंग के पत्थर का इस्तेमाल करने के बजाय पत्थर पर डिजाइन के रूप में थोड़े-से लाल रंग का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके आपको काफी फायदा होगा। इसके साथ ही इस दिशा से संबंधी लाभ पाने के लिये एक और तरीका भी है–आप दक्षिण दिशा में लाल रंग का पत्थर लगवाने की बजाय वहां पर एक लाल रंग का या लाल रंग के डिजाइन वाला कारपेट भी बिछा सकते हैं। इससे भी आपको बहुत लाभ मिलेगा।_*

        ▶️ *_जीवनोपयोगी कुंजियां_* ⚜️

*_पैरों में तंग कपड़े न पहनें | इससे त्वचा को खुली हवा न मिलने से पसीना नहीं सूखता व रोमकूपों को ऑक्सीजन न मिलने से त्वचा-विकार होते हैं | पैरों का रक्तसंचार प्रभावित होने से पैर जल्दी थकते हैं |_*

           🍻 *_आरोग्य कुंजियां_* 🍶

*_ऊँची एडी की चप्पले थकानकारक, शरीर का संतुलन बिगाड़नेवाली, अंगों पर अनावश्यक भार पैदा करनेवाली होती हैं | अत: इन्हें न पहनें |_*

           🪔 *_गुरु भक्ति योग_* 🕯️

🌸        *_सप्तमी तिथि को आँवला एवं अष्टमी को नारियल त्याज्य बताया गया है। सप्तमी तिथि मित्रप्रद एवं शुभ तिथि मानी जाती है। इस तिथि के स्वामी भगवान सूर्य हैं तथा भद्रा नाम से विख्यात यह तिथि शुक्ल एवं कृष्ण दोनों पक्षों में मध्यम फलदायीनी मानी जाती है। इस तिथि को सुबह सर्वप्रथम स्नान करके भगवान सूर्य को सूर्यार्घ देकर उनका पूजन करना चाहिये। उसके बाद आदित्यह्रदयस्तोत्रम् का पाठ करना चाहिये। इससे जीवन में सुख, समृद्धि, हर्ष, उल्लास एवं पारिवारिक सुखों कि सतत वृद्धि होती है एवं सभी कामनाओं की पूर्ति होती है।_*
🌸         *_सोमवार और शुक्रवार कि सप्तमी विशेष रूप से शुभ फलदायी नहीं मानी जाती बाकी दिनों कि सप्तमी सभी कार्यों के लिये शुभ फलदायी मानी जाती है। सप्तमी को भूलकर भी नीला वस्त्र धारण नहीं करना चाहिये तथा ताम्बे के पात्र में भोजन भी नहीं करना चाहिये। सप्तमी को फलाहार अथवा मीठा भोजन विशेष रूप से नमक के परित्याग करने से भगवान सूर्यदेव कि कृपा सदैव बनी रहती है।_*
🌸         *_ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जिस व्यक्ति का जन्म सप्तमी तिथि में होता है, वह व्यक्ति बहुत ही भाग्यशाली होता है। इस तिथि में जन्म लेनेवाला जातक गुणवान और प्रतिभाशाली होता है। ये अपने मोहक व्यक्तित्व से लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने की योग्यता रखते हैं। इनके बच्चे भी गुणवान और योग्य होते हैं। धन धान्य के मामले में भी यह व्यक्ति काफी भाग्यशाली होते हैं। ये संतोषी स्वभाव के होते हैं और इन्हें जितना मिलता है उतने से ही संतुष्ट रहते हैं।_*

*※══❖═══▩ஜ ۩۞۩ ஜ▩═══❖══※*

⚜️          *_यदि आपके जीवन में कभी अचानक ज्यादा खर्च की स्थिति बन जाय, तो किसी भी मंगलवार के दिन हनुमानजी के मंदिर में गुड़-चने का भोग श्रद्धापूर्वक लगाएं। भोग लगाने के बाद वहीँ बैठकर 11 बार हनुमान चालीसा का पाठ भी अवश्य करें।_*
🌷          *_मंगलवार के दिन ये विशेष उपाय करें – मंगलवार को हनुमान जी की पूजा का विशेष महत्त्व होता है। आज हनुमान जी को चमेली का तेल चढ़ाना, चमेली के तेल का ही दीपक जलाना तथा माखन का भोग लगाना चाहिये, इससे हर प्रकार की मनोकामना की सिद्धि तत्काल होती है।_*

🖌 *_””सदा मुस्कुराते रहिये””_*
●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●
                   *9812224501*
[14/04, 08:24] Morni कृष्ण मेहता: *निमित्त होने का घमंड कैसा ??*

*एक लकड़हारा रात-दिन लकड़ियां काटता, मगर कठोर परिश्रम के बावजूद उसे आधा पेट भोजन ही मिल पाता था।*
*एक दिन उसकी मुलाकात एक साधु से हुई। लकड़हारे ने साधु से कहा कि जब भी आपकी प्रभु से मुलाकात हो तो, मेरी एक फरियाद उनके सामने रखना और मेरे कष्ट का कारण पूछना।*
*कुछ दिनों बाद उसे वह साधु मिला।*
*लकड़हारे ने उसे अपनी फरियाद की याद दिलाई तो साधु ने कहा कि- "प्रभु ने बताया हैं कि लकड़हारे की आयु 60 वर्ष हैं और उसके भाग्य में पूरे जीवन के लिए सिर्फ पाँच बोरी अनाज हैं। इसलिए प्रभु उसे थोड़ा अनाज ही देते हैं ताकि वह 60 वर्ष तक जीवित रह सके।"*
*समय बीता। साधु उस लकड़हारे को फिर मिला तो लकड़हारे ने कहा ---*
*"ऋषिवर! अब जब भी आप की प्रभु से बात हो तो मेरी यह फरियाद उन तक पहुँचा देना कि वह मेरे जीवन का सारा अनाज एक साथ दे दें, ताकि कम से कम एक दिन तो मैं भरपेट भोजन कर सकूं।"*
*अगले दिन साधु ने कुछ ऐसा किया कि लकड़हारे के घर ढ़ेर सारा अनाज पहुँच गया।*
*लकड़हारे ने समझा कि प्रभु ने उसकी फरियाद कबूल कर उसे उसका सारा हिस्सा भेज दिया हैं।*
*उसने बिना कल की चिंता किए, सारे अनाज का भोजन बनाकर फकीरों और भूखों को खिला दिया और खुद भी भरपेट खाया।*
*लेकिन अगली सुबह उठने पर उसने देखा कि उतना ही अनाज उसके घर फिर पहुंच गया हैं। उसने फिर गरीबों को खिला दिया। फिर उसका भंडार भर गया।*
*यह सिलसिला रोज-रोज चल पड़ा और लकड़हारा लकड़ियां काटने की जगह गरीबों को खाना खिलाने में व्यस्त रहने लगा।*
*कुछ दिन बाद वह साधु फिर लकड़हारे को मिला तो लकड़हारे ने कहा -"ऋषिवर ! आप तो कहते थे कि मेरे जीवन में सिर्फ पाँच बोरी अनाज हैं, लेकिन अब तो हर दिन मेरे घर पाँच बोरी अनाज आ जाता हैं।"*
*साधु ने समझाया, "तुमने अपने जीवन की परवाह ना करते हुए अपने हिस्से का अनाज गरीब व भूखों को खिला दिया।*
*इसीलिए प्रभु अब उन गरीबों के हिस्से का अनाज तुम्हें दे रहे हैं।"*
*कथासार- किसी को भी कुछ भी देने की शक्ति हम में है ही नहीं, हम देते वक्त ये सोचते हैं, की जिसको कुछ दिया तो  ये मैंने दिया !*
*दान, वस्तु, ज्ञान, यहाँ तक की अपने बच्चों को भी कुछ देते दिलाते हैं, तो कहते हैं मैंने दिलाया ।*
*वास्तविकता ये है कि वो उनका अपना है आप को सिर्फ परमात्मा ने निमित्त मात्र बनाया हैं। ताकी उन तक उनकी जरूरते पहुचाने के लिये। तो निमित्त होने का घमंड कैसा ??*
Bolo jai shiri ram
राम राम ।
[14/04, 08:24] Morni कृष्ण मेहता: *_⚜!!श्री् हरि् !!_*⚜
*_𖡼•┄•𖣥𖣔𖣥•┄प्रस्तुति•┄•𖣥𖣔𖣥•┄•𖡼_*
                  🙏🏻 *_पं0कृषण मेहता _* 🙏🏻
*_ईश्वर से मेरी प्रार्थना है कि आपके एवं आपके पूरे परिवार के लिए हर दिन शुभ एवं मंगलमय हों।_*

👉🏻 *_14 अप्रैल 2020 वैशाख मास कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि और मंगलवार का दिन है। सप्तमी तिथि आज शाम 4 बजकर 12 मिनट तक रहेगी। उसके बाद अष्टमी तिथि लग जायेगी। शाम 6 बजकर 1 मिनट तक शिव योग और आज शाम 4 बजकर 12 मिनट तक राज योग भी रहेगा। शिव का अर्थ होता है- शुभ। यह योग बहुत ही शुभदायक है। वहीं शाम 7 बजकर 41 मिनट तक पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र रहेगा। कैसा रहेगा राशिनुसार आपका दिन।_*

🐑 *_मेष राशि आज आपका दिन बेहतरीन रहेगा। शाम तक कोई खुशखबरी मिलाने से, घर में उत्सव का माहौल बनेगा। समाज में आज आपकी मन-प्रतिष्ठा बढ़ेगी। अगर आप कोई नया बिजनेस शुरू करना चाहते हैं, तो अभी उचित समय नहीं है। अच्छा होगा कोरोना की परिस्थितियां ठीक होने तक इंतजार करें। आज आपकी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। सेहत के मामले में दिन अच्छा रहेगा। हनुमान चालिसा का पाठ करें,  कार्यों में आ रही अड़चने समाप्त होगी!_*

🐂 *_वृष राशि आज का दिन आपके लिये खुशियाँ लेकर आयेगा। आज अचानक धन लाभ होने के योग बन रहे है। बच्चों का मन पढ़ाई में लगेगा। लवमेटस फ़ोन पर देर तक बात करेंगे, साथ ही एक दुसरे पर विश्वास और बढ़ेगा। दाम्पत्य जीवन में खुशियाँ बढ़ेगी। माता-पिता आपसे प्रसन्न रहेंगे। आज किसी पुराने दोस्त से चल रहा मन-मुटाव समाप्त होगा। कार्यों में बड़े भाई का सहयोग प्राप्त होगा। हनुमान जी को सिंदूर अर्पित करें, दाम्पत्य जीवन में और खुशियाँ आयेंगी।_*

👨‍❤️‍👨 *_मिथुन राशि कई दिनों से आपकी तरक्की में आ रही रूकावटें आज दूर हो जायेगी। वर्क फ्रॉम होम कर रहे कर्मचारियों को फ़ोन पर अधिकारियों का सहयोग मिलेगा। परिवार में सुख-शांति का माहौल बना रहेगा। बच्चें आपके साथ गेम खेलने की जिद्द करेंगे। दिनचर्या में बदलाव आने से आपको अपना कार्य पूरा करने में थोड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। आज आपका स्वास्थ्य बेहतर रहेगा। घर के बड़ों का पैर छूकर आशीर्वाद लें, कार्यों को पूरा करने में आ रही समस्याओं का समाधान मिलेगा_*

🦀 *_कर्क राशि आज आपका दिन अच्छा रहने वाला है। परिवार में सौहार्द बना रहेगा। कहीं से पैसा मिलने से आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। वर्क फ्रॉम होम कर रहे कर्मचारियों को अपना कार्य पूरा करने में थोडा वक्त लगेगा। बिजनेस मीटिंग के लिये पहले से बना टिकट कोरोना के वजह से आज कैंसिल करना पड़ेगा। कार्यों में जीवनसाथी का सहयोग मिलाने से मन प्रसन्न रहेगा। परिवार सहित घर पर ही कोई मूवी देखेंगे। हनुमान जी का ध्यान करके प्रणाम करें, कारोबार में वृद्धि होगी।_*

🦁 *_सिंह राशि आज आपका दिन सामान्य रहने वाला है। आज किसी मित्र से विडियों कॉल पर बात होगी। आज दाम्पत्य जीवन में खुशहाली बनी रहेगी। निवेश करने की सोच रहे है, तो थोड़ा रूक जाये। लवमेटस के लिए दिन अच्छा रहने वाला है। घर के बुजुर्गों के सेहत का खास ख्याल रखें। बच्चें घर में ही खेल-कूद करेंगे, उनकी शैतानियों से थोड़ी परेशानी हो सकती है। हनुमान जी को बेसन के लड्डू का भोग लगायें, आपके अन्दर पॉजिटिव ऊर्जा का संचार होगा।_*

👰🏻 *_कन्या राशि आज भाग्य आपके साथ रहेगा। किसी से बात करते समय अपनी वाणी पर संयम रखें। आज आप कोई ऑनलाइन काम शुरू करने के लिए अपने खास दोस्तों से सलाह लेंगे। आज आप ज्यादा दिन से रुका हुआ कोई घरेलू कार्य पूरा करने में सफल होंगे। लवमेटस में नोक-झोक होने की सम्भावना बन रही है, उचित होगा कि एक दुसरे से बात करते समय संयम रखे। जीवनसाथी आपसे प्रसन्न रहेंगे। गायत्री मंत्र का 11 बार जप करें, आर्थिक स्थिति मजबूत होगी।_*

⚖️ *_तुला राशि आज अपने व्यापार को नयी गति देने के लिए कोई कोई प्लान बनायेंगे। जिससे आगे चलकर आपके व्यापार की गति बढ़ेगी। इस राशि के जो लोग मार्केटिंग का काम करते है, वे फ़ोन पर कोई बड़ी डील फाइनल करेंगे। विद्यार्थियों के लिए दिन अच्छा रहने वाला है। जीवनसाथी के विचारों से आज आप प्रभावित होंगे। लवमेट्स आज थोडा परेशान हो सकते है। परिवार में सबकी सेहत अच्छी बनी रहेगी। आज आप कोई सामान घर में ही रखकर भूल जायेंगे। बड़ी बहन का सहयोग प्राप्त होगा। अपने गुरु का ध्यान करके प्रणाम करें, कार्यों में सफलता मिलेगी।_*

🦂 *_वृश्चिक राशि आज आपका ज्यादातर समय माता-पिता के साथ बीतेगा।  आज पत्नी और बच्चों का पूर्ण सहयोग मिलेगा। आज स्वास्थ्य बेहतर रहेगा। इस राशि के स्टूडेंट्स के लिए आज का दिन अनुकूल रहेगा। आज एग्जाम से रिलेटेड कोई शुभ समाचार मिल सकता है। आज दैनिक कार्यों में सफलता मिलेगी| आज ;ॐ हं हनुमते नमः मंत्र का 11 बार जप करें, आपके साथ सब अच्छा होगा।_*

🏹 *_धनु राशि अपने व्यक्तित्व को निखारने के लिए आज का दिन शानदार है। वर्क फ्रॉम होम कर रहे कर्मचरियों का काम समय से पूरा हो जायेगा। आज जीवनसाथी की मदद से आर्थिक स्थिति में भी सुधार आयेगा। इस राशि के घरेलू महिलाओं के लिए आज का दिन राहतपूर्ण रहने वाला है। कोई दोस्त आपसे सहायता मांगेगा। जीवनसाथी से कोई शुभ समाचार मिलाने से पुरे दिन मन प्रसन्न रहेगा। आज घर पर ही हनुमान जी का पूजा करें, घर में पॉजिटिविटी आयेंगी।_*

🐊 *_मकर राशि आज आपका दिन सामान्य रहने वाला है। आज काम की व्यस्तता ज्यादा होने से थोडा थकान महसूस करेंगे। लेकिन शाम तक रिलेक्स हो जायेंगे। आज किसी का गुस्सा किसी और पर निकालने से आपके रिश्तों पर नकारात्मक असर पड़ सकता है, लिहाजा घर में या फ़ोन पर बात करते समय गुस्से पर काबू रखे।  ‘ॐ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट् मंत्र का 11 बार जप करें, शत्रुओं पर विजय मिलेगा।_*

⚱️ *_कुंभ राशि आज आपका दिन समान्य रहेगा। आज परिवार वालों के साथ समय बितायेंगे। मनोरंजन के लिए घर पर ही बच्चों के साथ कोई गेम खेलेंगे। आज आर्थिक पक्ष पहले से मजबूत होगा। वर्क फ्रॉम होम कर रहे कर्मचारी अपने सहकर्मी की सहायता से अपना कार्य समय से पूरा करने में सफल होंगे।  दाम्पत्य जीवन में मधुरता बढ़ेगी। हनुमान जी के मंत्र- ऊँ तेजसे नम: का 21 बार जप करें, बौद्धिक क्षमता का विकास होगा।_*

🐬 *_मीन राशि आज दोस्तों से आपके रिश्ते मधुर होंगे। आज योग्यता और अनुभव से काम पूरा हो सकता है। वर्क फ्रॉम होम कर रहे लोगों को सीनियर्स से प्रोत्साहन मिलेगा। आज जीवनसाथी से सहयोग से कोई घरेलू काम पूरा करेंगे। आज अप घर पर अलग- अलग पकवानों का आनंद उठायेंगे। आज आप कोई नया काम शुरू करने की योजना बनायेंगे, जिसमे आप उस विषय से जुड़े लोगों से फ़ोन पर सलाह लेंगे। हनुमान जी के आगे चमेली के तेल का दीपक जलाएं, रुके हुये कार्यों में सफलता मिलेगी।_*
     
ये भी जाने-----
सिंदूर का पेड़ भी होता है यह सुन आपको आश्चर्य ही होगा। लेकिन यह सत्य है हमारे पास सब कुछ प्राकृतिक था पर अधिक लाभ की लालसा ने हमे केमिकल युक्त बना दिया।
हिमालयन क्षेत्र में मिलने वाला दुर्लभ कमीला यानी सिंदूर का पौधा अब मैदानी क्षेत्रों में भी उगाया जाने लगा है।

कमीला को रोरी सिंदूरी कपीळा कमुद रैनी सेरिया आदि नामो से जाना जाता है वहीँ संस्कृत में इसे कम्पिल्लत और रक्तंग रेचि भी कहते हैं। जिसे देशभर की सुहागिनें अपनी मांग में भरती हैं। जो हर मंगलवार और शनिवार कलयुग के देवता राम भक्त हनुमान को चढ़ाया जाता है। कहा जाता है कि वन प्रवास के दौरान मां सीता कमीला फल के पराग को अपनी मांग में लगाती थीं।
बीस से पच्चीस फीट ऊंचे इस वृक्ष में फली गुच्छ के रूप में लगती है फली का आकार मटर की फली की तरह होता है व शरद ऋतु में वृक्ष फली से लद जाता है।
वैसे तो यह पौधा हिमालय बेल्ट में होता है लेकिन विशेष देख-रेख करके मैदानी क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता है।
यह पहाड़ी क्षेत्रों में भारत के अलावा चीन, वर्मा, सिंगापुर, मलाया, लंका, अफ्रीका आदि देशो में अधिक पाया जाता है। इसके एक पेड़ से प्रतिवर्ष 8 से दस किलो से अधिक सिंदूर निकलता है।

बाजारू सिंदूर से बढ़ रही बीमारियां।
यूं तो बाजार में कई ब्रांड के सिंदूरों की बिक्री हो रही है लेकिन बहुतायत में बिक्री होने के कारण लोकल कंपनियां ब्रांड सिंदूर में कई प्रकार के केमिकल मिलाकर बेच देते हैं जिससे माथे में त्वचा रोग होने का खतरा बढ़ जाता है। बाजार में बिकने वाला सिंदूर रसायनों से बना होता है। इसमें लेड की रासायनिक मिलावट होने के कारण सिंदूर लगाने वाली महिलाओं को सिरदर्द और सांस में तकलीफ  की शिकायत होती है।
प्राकृतिक रूप से तैयार होने वाला सिंदूर त्वचा या सेहत को नुकसान नहीं पहुंचाता। बाजार में इसकी कीमत अधिक है इसलिए कम खर्च वाले तरीके से उत्पादन कर कमर्शियल उपयोग में लाने की योजना बनाई गई है।

 ,यह पेड़ सरस्वती वृक्ष के नाम से विख्यात है कहीं-कहीं कमीला भी बोलते हैं यह बहुत कम मात्रा में दक्षिण भारत के जंगलों में पाया जाता है यह पेड़ धर्मस्थल, कासरगोड ,नागर स्थल जैसे केरल के क्षेत्रों में बहुत अल्प मात्रा में पाया जाता है इसके   करंज फल से बड़े आकार में कांटे नुमा फल लगते हैं फलों के अंदर छोटे-छोटे बीज होते हैं जो लाल सिंदूर से  परिपूर्ण रहते हैं इसमें निकला हुआ सिंदूर प्राकृतिक होता है और बहुत ही दुर्लभ है  इसे स्वामी परमानन्द जी ने पंजाब में पठानकोट के आश्रम में 2003 में 3 पेड़ लगाए थे उसमें से एक पेड़ आज भी जीवित है इस पेड़ के बीज सच्चिदानंद आश्रम जिला कासरगोड केरल से ला करके लगाए गए थे इस पेड़ की खोज में स्वामी जी ने अपने सन्यास जीवन के प्रारंभिक 10 वर्ष लगाए उसके पश्चात ही यह पेड़ उन्हें सुलभ हो पाया था इसके पत्ते पीपल के आकार के और रक्ताभ वर्ण  के अनेक जालीनुमा झिल्लियों से युक्त होते हैं।Prakash Kumar Choudhary नहीं, इसके फल मार्च और अप्रैल के महीने में लगते हैं उसके पश्चात अप्रैल के महीने में इनमें सिंदूर बनना शुरू होता है उसके बीच केरल के धर्मस्थल और हासन तथा नागरकोइल के जंगलों में ही उपलब्ध हो सकते हैं।

श्री_कल्पतरु_संस्थान
द्वारा प्राकृतिक सिंदूर की खेती करने की तैयारी कर रहे हैं इस प्रोजेक्ट में सिंदूर के पांच हजार पौधों की नर्सरी तैयार की जा चुकी है प्राकृतिक रूप से तैयार होने वाले इस सिंदूर का उपयोग सर्वहित में किया जाएगा ।

मित्रों हमारे संस्कृति ,धर्म और साहित्यों को कुछ इसतरह से खण्डित किया गया है कि हम सभी थोड़े थोड़े अंशों में ही जानकारी रखते है  लेकिन सभी जानकारियों को एक जगह अगर रखी जय तो एक संग्रह बन जाती है जिससे आनेवाली पीढ़ियों के लिये एक सकारात्मक ऊर्जा प्रदान होगी  मेरा प्रयास  यही होता है कि इस ग्रुप के सभी बुद्धिजीवियों के बीच विचार मंथन होकर एक संग्रह तैयार हो और हम अपने संस्कृति को एक नया ऊर्जा प्रदान करें । कई विषयों में आप हमसे ज्यादा जानकारी रखते होंगे और कई विषयों में आपसे ज्यादा में रखता हूं लेकिन ज्ञान का आदान प्रदान ही बौद्धिक छमता को बढ़ाती है।

           #शस्त्र_तथा_अस्त्र (#अस्त्र-#शस्त्
जाने------
कोई भी उपकरण जिसका प्रयोग अपने शत्रु को चोट पहुँचाने, वश में करने या हत्या करने के लिये किया जाता है, शस्त्र या आयुध (weapon) कहलाता है। शस्त्र का प्रयोग आक्रमण करने, बचाव करने अथवा डराने-धमकाने के लिये किया जा सकता है। शस्त्र एक तरफ लाठी जितना सरल हो सकता है तो दूसरी तरफ बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र जितना जटिल भी।

#इतिहास
आयुध उन यंत्रों को कहते हैं जिनका प्रयोग युद्ध में होता है। इस प्रकार तीर, तलवार से लेकर बड़ी-बड़ी तोपों तक सभी यंत्र आयुध हैं। आयुध के विकास का इतिहास उतना ही पुराना है जितना मानव जाति के विकास का। मानव जीवन आदिकाल से संघर्षपूर्ण रहा है। जीवनरक्षा के लिए उसे भयानक और शक्तिशाली जीवजंतुओं से लड़ना पड़ा होगा। मनुष्य के पास न तो उन जीवजंतुओं के बराबर बल था, न उतना मोटा और कठोर चर्म और न तीव्र तथा घातक दाँत तथा नख ही थे। अपने अनुभवों तथा बुद्धि से मनुष्य ने प्रथम शस्त्रों का आविष्कार किया होगा। एँडे या लाठी का विकास बरछा, गदा, तलवार, बल्लभ और आधुनिक संगीन में हुआ। इसी प्रकार फेंककर मारनेवाले साधारण पत्थर का विकास भाला, धनुष-बाण या धनुर्विद्या, गुलेल, गोला, गोली तथा आधुनिक परमाणु बम में हुआ।

आयुधों के विकास और बढ़ती शक्ति के साथ-साथ प्रतिरक्षा के उपकरणों की आवश्यकता हुई और उनका आविष्कार हुआ। संभवत: चर्म को लकड़ी के डंडों में फँसाकर ढाल बनाने की कला बहुत पुरानी होगी। कालांतर में कवच और आधुनिक युग में आकर कवचयान (टैंक) का आविष्कार हुआ। यह देखा गया हे कि मनुष्य ने जब-जब संहार के साधनों का निर्माण किया, उसके साथ-साथ प्रतिरक्षा के साधनों का भी विकास हुआ।

आयुधों का वर्गीकरण

आयुधों का वर्गीकरण साधारणत: उनके प्रयोग, विधि ओर विशेषताओं के आधार पर किया जाता है। इनके अनुसार पाषाणयुग से बारूद के आविष्कार तक के आयुधों का वर्गीकरण इस प्रकार है :

शस्त्र वे हथियार है जो फेंके नहीं जाते। इनके उपवर्गीकरण के अंतर्गत निम्नलिखित शस्त्र हैं :

(अ) काटनेवाले शस्त्र; जैसे तलवार, परशु आदि;

(आ) भोंकनेवाले शस्त्र, जैसे बरछा, त्रिशूल आदि;

(इ) कुंद शस्त्र, जैसे गदा।

अस्त्र वे हथियार हैं जो फेंके जाते हैं। इनके अंतर्गत ये अस्त्र हैं :

(अ) हाथ से फेंके जानेवाले अस्त्र, जैसे भाला;
(आ) वे अस्त्र जो यंत्र द्वारा फेंके जाते हैं, जैसे बाण, गुलेल से फेंके जानेवाले पत्थर आदि।
पुरातत्ववेत्ताओं के मतानुसार समय के साथ-साथ मनुष्य का ज्ञान बढ़ा और वह सोच समझकर इच्छानुसार पत्थर और लकड़ी के शस्त्र बनाने लगा। फिर इन्हीं शस्त्रों को घिसकर सपाट, सुडौल, तीव्र और चमकीला बनाना आरंभ किया। इस काल के मुख्य शस्त्र पत्थर के कुल्हाड़े, गदाएँ और छुरे थे। सहस्रों वर्ष बाद उसने धनुष और भाले का भी निर्माण किया।

लगभग 4,000 वर्ष ई.पू. तक मनुष्य धातु का पता पा चुका था। ताँबे और राँगे को मिलाकर उसने काँसा बनाना जाना ओर तब धीरे-धीरे पत्थर के शस्त्रों का स्थान काँसे के शस्त्रों ने ले लिया। इस काल के शस्त्रों में विशेषत: धनुषबाण, बरछी, छुरी, भाला, कुल्हाड़ा और गदा के तथा रक्षात्मक साधनों में केवल काँसे की ढाल के प्रमाण मिले हैं। कांसे का स्थान प्राय: 1000 ई.पू. में लोहे ने लिया।

वैदिक काल में अस्त्रशस्त्रों का वर्गीकरण इस प्रकार था :

(1) अमुक्ता - वे शस्त्र जो फेंके नहीं जाते थे।

(2) मुक्ता - वे शस्त्र जो फेंके जाते थे। इनके भी दो प्रकार थे-

पाणिमुक्ता, अर्थात् हाथ से फेंके जानेवाले और
यंत्रमुक्ता, अर्थात् यंत्र द्वारा फेंके जानेवाले।
(3) मुक्तामुक्त - वह शस्त्र जो फेंककर या बिना फेंके दोनों प्रकार से प्रयोग किए जाते थे।

(4) मुक्तसंनिवृत्ती - वे शस्त्र जो फेंककर लौटाए जा सकते थे।

आग्नेयास्त्र (फ़ायर-आर्म्स) का भी उल्लेख मिलता है, पर अधिक स्पष्ट नहीं।

आधुनिक वर्गीकरण
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भारत की अग्नि मिसाइल
शस्त्रों का वर्गीकरण कई तरह से कर सकते हैं।

कार्यक्षमता एवं उपयोगिता के आधार
(१) आक्रमणात्मक हथियार
(क) आरक्षित हथियार
(ख) भिड़त हथियार
(ग) प्रक्षेप हथियार
(२) प्रतिरक्षात्मक हथियार
दूसरा वर्गीकरण
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(१) कूटियोजनात्मक हथियार (स्ट्ट्रेटेजिक वीपन्स)
(२) समरतांत्रिक हथियार ( टैक्टिकल वीपन)
(क) आरक्षित हथियार
(ख) भिड़त हथियार
(ग) प्रक्षेप हथियार
आग्नेय हथियारों का वर्गीकरण
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(१) छोटे आग्नेय हथियार (स्माल आर्म्स)
(२) तोपें (आर्टिलरी)

हथियारों की विशेषताएँ

कुछ विद्वानों ने हथियारों के निम्नलिखित ३ लक्षण बताये हैं-

सुरक्षा (प्रोटेक्शन)
प्रहारक क्षमता (स्ट्राइकिंग पॉवर)
गतिशीलता (मोबिलिटी)
प्रसिद्ध सैन्य विचारक जे एफ सी फुलर ने हथियारों में निम्नलिखित विशेषताओं का होना अनिवार्य बताया है-

मार की दूरी (range of action)
प्रहारक क्षमता (स्ट्राइकिंग पॉवर)
फायर क्षमता (volume of fire)
अचूकता (accuracy of aim)
वहनीयता (पोर्टेबिलिटी)
उपरोक्त गुणों के साथ-साथ उत्तम हथियारों में निम्नलिखित गुणों का होना भी अत्यन्त आवश्यक होता है-

सरलता
अनुकूलता (adaptability)
दृढ़ता (endurance)
विश्वसनीयता (reliability)
मजबूती (sturdiness)

कवच
शरीर के विभिन्न अंगों की रक्षा का उल्लेख किया गया है। उदाहरणार्थ शरीर के लिए चर्म तथा कवच का, सिर के लिए शिरस्त्राण और गले के लिए कंठत्राण इत्यादि का।

यूरोप में भी इसी प्रकार के शस्त्र बनते थे। 12वीं सदी का कवच लोहे की छोटी-छोटी कड़ियों को गूँथकर बनता था। जिरहबख्तर (जालिका, चेने मेल) सुंदर और सुविधाजनक अवश्य था, पर भारी शस्त्रों की चोट से पूर्णतया रक्षा नहीं कर सकता था। इसलिए 13वीं सदी ई. से यूरोप में लोहे की चादर के आवरण बनने लगे और उन्हें जालिका के ऊपर पहना जाने लगा। योद्धा अब सिर से पाँव तक पट्टकवच (प्लेट आरमर) से ढका रहता था। शरीर के अवयवों के सरल आंदोलन के लिए इन कवचों में जोड़ बने रहते थे। पीछे अश्व के लिए भी लिए भी ऐसा ही कवच बनने लगा।

जालिका भी अश्व तथा मनुष्य दोनों के लिए बनती थी। सवार और अश्व के कवच का भार 200 से 300 पाउंड तक होता था।

13वीं शताब्दी में शस्त्रों की शक्ति में भी उन्नति हुई। अंग्रेजों का लंबा धनुष (लांग बो) इतना शक्तिशाली होता था कि उससे चलाया बाण साधारण कवचों को भेद देता था। यह धनुष छह फुट लंबा होता था और इसका छह फुट का बाण 250 गज तक सुगमता से मार कर सकता था। इसी प्रकार स्विट्ज़रलैंड का 'हैलबर्ड कुल्हाड़ा' था। इसका दस्ता आठ फुट का था और कुल्हाड़े के साथ-साथ इसमें बरछी और सवार को खींचकर गिराने के काम का एक टेढ़ा काँटा भी होता था। दक्ष लड़ाका इसकी चोट से अच्छे कवच को भी काट सकता था।

बारूद एवं आग्नेयास्त्र

बारूद के आविष्कार ने (1294 ई. में) मनुष्य के हाथ में एक ऐसी शक्ति दे दी जिसने युद्ध की रूपरेखा ही बदल दी। यह निश्चित है कि 14वीं शताब्दी के आरंभ में आग्नेयास्त्र बन चुके थे। प्रथम आग्नेयास्त्र तोप थी। यह मुख्यत: दो प्रकार की बनाई गई - एक छोटी नालवाली (मॉरटर) और दूसरी लंबी नालीवाली (बंबार्ड)।

ये तोपें पहले ताँबे और काँसे की बनीं और फिर लोहे की बनने लगीं। 15वीं शताब्दी में तोपें 30 इंच परिधि की होती थीं और 1,200 से 1,500 पाउंड भार के पत्थर के गोले चलाती थीं। आधुनिक हाविट्ज़र और भारी फ़ील्डगन मॉरटर और बंबार्ड के ही विकसित रूप हैं। इसी शताब्दी के अंत तक छोटी हाथ की तोपें बनीं। इनका स्थान 15वीं शताब्दी के आरंभ में हाथ की बंदूक ने लिया।

इसी का विकास धीरे-धीरे मस्केट, मैचलॉक, फ्लिंटलॉक और आधुनिक राइफल में हुआ। तीव्र गति से लगातार गोली चलानेवाली बंदूक बनाने की चेष्टा और इस संबंध के प्रयोग 16वीं शताब्दी से होने लगे थे और इसी के फलस्वरूप 1884 में प्रथम सफल मशीनगन बनी। आज की मशीनगन एक मिनट में कई सौ गोलियाँ तक चला सकती है। अन्य महत्वपूर्ण शस्त्रों का भी आविष्कार 14वीं से 16वीं शताब्दी में हुआ, जैसे हाथ का बम (1382 ई.), कांसे के विस्फोटक गोले, पिस्तौल (1483 ई.), दाहक गोले (1487 ई.), इत्यादि। शस्त्रों का अधिक विकास आधुनिक काल में हुआ। 16वीं शताब्दी तक आग्नेयास्त्र इतने प्रभावशाली बन चुके थे कि मनुष्य के स्वरक्षात्मक कवच व्यर्थ थे। सन् 1915 का मनुष्य आग्नेयास्त्र के सामने असहाय रहा, परंतु इसी वर्ष प्रथम कवचयान (टेंक) का निर्माण हुआ। मनुष्य अब इस्पात की मोटी-मोटी चादरों से बनी इस गाड़ी में बैठकर हल्के आग्नेयास्त्र के प्रहार से बच सकता था।

आग्नेयास्त्रों के कार्यकरण का सिद्धान्त
बंदूक, राइफल और तोपों के कार्यकरण का सिद्धांत एक ही है। किसी तीन ओर दृढ़ता से बंद पात्र में बारूद रखी जाती है और इसके बाद छर्रा, गोली या गोला रखकर चौथी ओर से पात्र को अस्थायी रूप से बंद कर दिया जाता है। फिर बारूद में किसी युक्ति से आग लगा दी जाती है। तब बारूद तुरंत जलकर गैसों में परिवर्तित हो जाती है। अत्यंत कम स्थान में उत्पन्न होने के कारण ये गैसें बहुत संपीडित (दबी हुई) रहती हैं। इसलिए छरें, गोली या गोले को वे बहुत बलपूर्वक दबाती हैं। गोला जब तक यंत्र के नाल में चलता रहता है तब तक उसपर दाब पड़ती रहती है और उसका वेग बढ़ता रहता है। इस प्रकार उसमें बहुत अधिक वेग उत्पन्न हो जाता है। नाल के कारण उसकी दिशा भी निर्धारित हो जाती है; इसलिए नाल को घुमा फिराकर गोले को इच्छानुसार लक्ष्य पर मारा जा सकता है।

तोप

सन् 1313 ई. से यूरोप में तोप के प्रयोग का पक्का प्रमाण मिलता है। भारत में बाबर ने पानीपत की लड़ाई (सन् 1526 ई.) में तोपों का पहले-पहले प्रयोग किया।

पहले तोपें काँसे की बनती थीं और उनको ढाला जाता था। परंतु ऐसी तोपें पर्याप्त पुष्ट नहीं होती थीं। उनमें अधिक बारूद डालने से वे फट जाती थीं। इस दोष को दूर करने के लिए उनके ऊपर लोहे के छल्ले तप्त करके खूब कसकर चढ़ा दिए जाते थे। ठंढा होने पर ऐसे छल्ले सिकुड़कर बड़ी दृढ़ता से भीतरी नाल को दबाए रहते हैं, ठीक उसी प्रकार जैसे बैलगाड़ी के पहिए के ऊपर चढ़ी हाल पहिए को दबाए रहती है। अधिक पुष्टता के लिए छल्ले चढ़ाने के पहले नाल पर लंबाई के अनुदिश भी लोहे की छड़ें एक दूसरी से सटाकर रख दी जाती थीं। इस समय की एक प्रसिद्ध तोप मॉन्स मेग है, जो अब एडिनबरा के दुर्ग पर शोभा के लिए रखी है। इसके बाद लगभग 200 वर्षों तक तोप बनाने में कोई विशेष उन्नति नहीं हुई। इस युग में नालों का संछिद्र (बोर) चिकना होता था। परंतु लगभग सन् 1520 में जर्मनी के एक तोप बनानेवाले ने संछिद्र में सर्पिलाकार खाँचे बनाना आरंभ किया। इस तोप में गोलाकार गोले के बदले लंबोतर "गोले" प्रयुक्त होते थे। संछिद्र में सर्पिलाकार खाँचों के कारण प्रक्षिप्त पिंड वेग से नाचने लगता है। इस प्रकार नाचता (घूर्णन करता) पिंड वायु के प्रतिरोध से बहुत कम विचलित होता है और परिणामस्वरूप लक्ष्य पर अधिक सच्चाई से पड़ता है।

1855 ई. में लार्ड आर्मस्ट्रांग ने पिटवाँ लोहे की तोप का निर्माण किया, जिसमें पहले की तोपों की तरह मुंह की ओर से बारूद आदि भरी जाने के बदले पीछे की ओर से ढक्कन हटाकर यह सब सामग्री भरी जाती थी। इसमें 40 पाउंड के प्रक्षिप्त भरे जाते थे।

साधारण तोपों में प्रक्षिप्त बड़े वेग से निकलता है और तोप की नाल को बहुत ऊँची दिशा में नहीं लाया जा सकता है। दूसरी ओर छोटी नाल की तोपें हल्की बनती हैं और उनसे निकले प्रक्षिप्त में बहुत वेग नहीं होता, परंतु इनमें यह गुण होता है कि प्रक्षिप्त बहुत ऊपर उठकर नीचे गिरता है और इसलिए इससे दीवार, पहाड़ी आदि के पीछे छिपे शत्रु को भी मार सकते हैं। इन्हें मॉर्टर कहते हैं। मझोली नाप की नालवाली तोप को हाउविट्ज़र कहते हैं। जैसे-जैसे तोपों के बनाने में उन्नति हुई वैसे-वैसे मॉर्टरों और हाउविट्ज़रों के बनाने में भी उन्नति हुई।

प्राय: सभी देशों में एक ही प्रकार से तोपों के निर्माण में उन्नति हुई, क्योंकि बराबर होड़ लगी रहती थी। जब कोई एक देश आधिक भारी, अधिक शक्तिशाली या अधिक फुर्ती से गोला दागनेवाली तोप बनाता तो बात बहुत दिनों तक छिपी न रहती और प्रतिद्वंद्वी देशों की चेष्टा होती कि उससे भी अच्छी तोप बनाई जाय। 1898 ई. में फ्रांसवालों ने एक ऐसी तोप बनाई जो उसके बाद बननेवाली तोपों की पथप्रदर्शक हुई। उससे निकले प्रक्षिप्त का वेग अधिक था; उसका आरोपण सराहनीय था; दागने पर पूर्णतया स्थिर रहता था, क्योंकि आरोपण में ऐसे डैने लगे थे जो भूमि में धँसकर तोप को किसी दिश में हिलने न देते थे। सभी तोपें दागने पर पीछे हटती हैं। इस धक्के (रि-कॉयल) के वेग को घटाने के लिए द्रवों का प्रयोग किया गया था। इसके प्रक्षिप्त पतली दीवार के बनाए थे। इनमें से प्रत्येक की तोल लगभग 12 पाउंड थी और उसमें लगभग साढ़े तीन पाउंड उच्च विस्फोटी बारूद रहती थी। प्रक्षिप्त में विशेष रसायनों से युक्त एक टोपी भी रहती थी, जिससे लक्ष्य पर पहुँचकर प्रक्षिप्त फट जाता था और टुकड़े बड़े वेग से इधर-उधर शत्रु को दूर तक घायल करते थे। यह दीवार के पीछे छिपे सैनिकों को भी मार सकती है।

प्रथम विश्वयुद्ध (1914-1918) में जर्मनों ने 'बिग बर्था' नामक तोप बनाई, जिससे उन्होंने पेरिस पर 75 मील की दूरी से गोले बरसाना आरंभ किया। इस तोप में कोई नया सिद्धांत नहीं था। तोप केवल पर्याप्त बड़ी और पुष्ट थी। परंतु हवाई जहाजों तथा अन्य नवीन यंत्रों के आविष्कार से ऐसी तोपें अब लुप्तप्राय हो गई हैं।

अग्निबाण अर्थात रॉकेट

अग्निबाण उसी सिद्धांत पर चलते हैं जिसपर दीपावली पर छोड़े जानेवाले बारूद भरे बाण। द्वितीय विश्वयुद्ध के अंतिम वर्ष में अग्निबाण बहुत कार्यकारी सिद्ध हुए। अग्निबाणप्रेक्षेपक में 30 अग्निबाण तीन-तीन इंच व्यास के लगे रहते थे और प्रत्येक में कॉर्डाइट नामक विस्फोटक भरा रहता था। प्रत्येक के सिर का भार 29 पाउंड था। दागने पर प्रत्येक अग्निबाण 3,900 से 8,000 गज तक जा सकता था। प्रत्येक बिजली के स्विच से दागा जाता था। इन स्विचों को या तो इस प्रकार व्यवस्थित किया जा सकता था कि अग्निबाण आध-आध सेकेंड पर अपने आप छूटते रहें या इच्छानुसार कई अग्निबाण या कुल अग्निबाण एक साथ ही छूटें। उच्च विस्फोटक के इस एकाएक धमाके से शत्रु की सेना को भारी क्षति पहुँचती थी और वह अत्यंत भयभीत हो जाया करती थी।

दीर्घपरास अग्निबाण
द्वितीय महायुद्ध के अंत में जर्मनी ने बिना मानवी संचालक के और बहुत दूर तक पहुँचनेवाले अग्निबाण बनाए, जिनका नाम वी-एस और वी-दो पड़ा। देखने में वी-एक वायुयान के समान होता था। इसमें 130 गैलन पेट्रोल आता था और मशीन का भार लगभग एक टन रहता था। उड़ते समय इसका वेग 350 मील प्रति घंटा हो जाता था और चलने में यह भयानक ध्वनि उत्पन्न करता था। साथ में वी-दो का चित्र दिखाया गया हे। इसमें ऐल्कोहल और द्रव आक्सीजन का प्रयोग होता था। प्रत्येक बाण में लगभग तीन टन ऐल्कोहल और पाँच टन द्रव आक्सीजन भरा रहता था। इसका महत्तम वेग लगभग 3,000 मील प्रति घंटा था। यंत्र की आकृति सिगार की तरह होती थी और बिना ईंधन भार लगभग एक टन।

राडार

वायुयान इतने वेग से चलते रहते हैं कि उनको तोप से मार गिराना कठिन ही होता था, परंतु अमरीकी वैज्ञानिकों ने राडार और वायुयानघातक तोपों का ऐसा संबंध जोड़ा कि तोप अपने आप वायुयान पर सधी रहती थी। सन् 1944 के उड़न बमों पर विजय इसी से मिली, क्योंकि ये राडारयुक्त तोपें लगभग 70 प्रतिशत ऐसे बमों को मार गिराती थीं।

बम

ये कई प्रकार के होते हैं। कुछ प्रमुख बम जो आजकल के युद्ध में प्रयुक्त किए जाते हैं, निम्नलिखित हैं :

1. विखंडक बम 2. विध्वंसक बम 3. अग्निबम 4. रासायनिक बम 5. जीवाणु बम 6. विकिरण बम

विखंडक बम - इसमें विशेष प्रकार के धातु के खोखले पात्र के भीतर विस्फोटक पदार्थ भरा होता है। जब यह वायुयान अथवा राकेट से गिराने पर पृथ्वी से टकराता है तो धमाके के साथ फट जाता है और इसके टुकड़ों से लोग घायल होते हैं। कभी-कभी यह वायुयान से गिराने पर पृथ्वी से कुछ ऊँचाई पर हवा में ही फूट जाता है। इन बमों का कुल भार 2 कि.ग्रा. से लेकर 50 कि.ग्रा. तक होता है। साधारणतया ये बम बड़े क्षेत्रों में गिराए जाते हैं।

विध्वंसक बम - इसका भार 50 कि.ग्रा. से लेकर 1,000 कि.ग्रा. तक होता है। इसमें साधारण विस्फोटक भरा रहता हे।

अग्नि बम - ये घनी आबादीवाले शहरों तथा बड़े-बड़े कारखानों पर गिराए जाते हैं जिनसे वे जलकर नष्ट हो जाते हैं। इसमें आग लगानेवाला पदार्थ एक विशेष प्रकार के प्रज्वालक पलीते के साथ भरा होता है। आग लगाने के लिए फासफोरस, नेपाम और थर्माइट इलेक्ट्रान जैसे रासायनिक यौगिक प्रयुक्त किए जाते हैं और तब इनके नाम प्रयुक्त पदार्थ के अनुसार भी हो जाते हैं।

'रासायनिक बम - यह एक प्रकार का बैलून होता है जिसकी दीवार पतली होती है। यह विषैली वस्तुओं से भरा हुआ होता है। यह बम जमीन अथवा जमीन से कुछ ऊपर हवा में विस्फोट करता है तो विषैली वस्तुएँ, गैस, तरल या ठोस जो भी होती हैं, खोल से बाहर निकलकर जमीन अथवा हवा में बिखर जाती हैं और कुछ ही क्षणों में उस विस्फोट स्थल के आसपास बादल का रूप धारण कर लेती हैं।

जीवाणु बम - इसका भार लगभग 75 क्रि.ग्रा. तक होता है। इसमें कई कक्ष होते हैं। प्रत्येक कक्ष में जीवाणु, रोगग्रस्त कीड़े अथवा जुएँ भरे होते हैं। बम गिराने पर इसमें लगा फ्यूज जल उठता है और इसी समय इसके कक्षों का ढक्क्न, जो कब्जेदार होता है, झटके के साथ खुल जाता है और रोग फैलानेवाले जीवाणु हवा में बिखरकर फैल जाते हैं। यदि इस बम के खोल का ढक्कन जमीन से 30 फुट पर खुल जाता है तो ये जीवाणु लगभग 400 वर्ग मीटर में फैल जाते हैं। जिस क्षेत्र में जीवाणु बम गिराए जाते हैं उसमें मनुष्य, जीव जंतु और पेड़ पौधे आदि सभी रोग के शिकार हो सकते हैं क्योंकि सारा वातावरण दूषित हो जाता है।

विकिरण बम - यह रासायनिक बम की तरह होता है लेकिन इसका खोल कुछ पतला रहता है। इसके भीतर रेडियमधर्मी पदार्थ विस्फोटक पदार्थ के साथ भरा होता है। विस्फोट होने पर ये पदार्थ धूल की तरह हवा में मिल जाते हैं जिससे वहाँ की हवा रेडियमधर्मी पदार्थों से संदूषित हो जाती है। इस प्रकार वहाँ के लोग रेडियमधर्मी विकिरणजन्य रोगों से ग्रस्त हो जाते हैं।

जैविक बम अर्थात जीवाणु बम

ये परमाणु बम एवं हाइड्रोजन बम से भी अधिक भयानक सिद्ध हुए हैं। ये ऐसे अस्त्र हैं जिन्हें छोड़ने पर किसी प्रकार का धमाका नहीं होता है। जीवाणु अस्त्र में रोग फैलानेवाले जीवाणु होते हैं और जिस युद्ध में ये इस्तेमाल किए जाते हैं वह बहुत बीभत्स एवं संहारक होता है। प्रथम विश्वयुद्ध में युद्धभूमि में 51,259 अमरीकी सैनिक मरे थे, पर उसके बाद जीवाणुओं से फैली बीमारी से मरनेवालों की संख्या 51,447 थी। प्राचीन काल में लोग रोगी के शव को दुश्मनों के घेरे में डाल देते थे ताकि उनकी मृत्यु जीवाणुओं के माध्यम से होने लगे।

जीवाणुकर्मक (रोग पैदा करनेवाले जीव)
ये युद्ध में अस्त्रों के रूप में प्रयुक्त किए जाते हैं और कई प्रकार के होते हैं। ये मनुष्यों, पशुओं तथा पौधों में संक्रामक रोग फैलाते हैं। इनका प्रयोग दुश्मन की युद्ध करने की क्षमता घटाने के लिए होता हे। ये जीवाणु उचित वातावरण पाने पर बहुत कम समय में लाखों सैनिकों को रोगग्रस्त कर देते हैं।

युद्धास्त्र के रूप में नाना प्रकार के जीवाणु प्रयोग में लाए जाते हैं और प्रत्येक प्रकार के जीवाणु अलग-अलग प्रकार के संक्रामक रोग फैलाते हैं। रोग फैलानेवाले जीवाणुओं के लिए जिन विभिन्न साधनों का उपयोग संभव है उनमें से कुछ साधनों के नाम निम्नलिखित हैं :

1. राकेट, 2. वायुयान, 3. कीड़े, 4. जीवाणु बम, 5. एयरोसोल, 6. मिसाइल, 7. कुएँ में डालकर।
एक बार छोड़ दिए जाने पर ये सूक्ष्मजीवी हवा में बिखर जाते हैं और वायु के साथ-साथ हजारों मील के क्षेत्र में फैल जाते हैं। उदाहरणार्थ बैसिलाई (बैक्टीरिया) को एयरोसोल के द्वारा समुद्रतट से 240 कि॰मी॰ की लंबाई में छोड़ दिया जाए तो ये अपने आप 1,30,800 वर्ग कि॰मी॰ भूभाग में फैल जाएँगे। इस प्रकार उस भूभाग में ये जीवाणु रोग फैलाते हैं। ऐसा पाया गया है कि अस्त्रों के हमले से मरनेवाले सैनिकों की अपेक्षा इन रोगाणुओं के संक्रमण से मरनेवाले सैनिकों की संख्या अधिक होती है। जीवाणुओं के प्रजनन की जो असीम क्षमता है वह जीवाणु अस्त्रों को और अधिक घातक बना देती है। यदि ये जीवाणु एक बार जाते हैं तो इन्हें नष्ट करना आसान नहीं होता। इन जीवाणुओं का कोई विशेष रंग, स्वाद और गंध नहीं होता। इन विशेषताओं के कारण जीवाणु अस्त्रों का महत्व दिन-प्रति-दिन बढ़ता जा रहा हैl

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