Sunday, April 5, 2020

दिनेश श्रीवास्तव की 25 कविताएं




 दिनेश श्रीवास्तव: हिंदी ग़ज़ल
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       कहाँ आज गणतंत्र हमारा?
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कहाँ आज गणतंत्र हमारा,कैसे गाऊँ गीत।
चिंता यही गिरेगी कैसे,नफ़रत की ये भीत।।

ईश्वर भी हैं बँटे यहाँ पर,ख़ुदा और जगदीश।
पेश अक़ीदत करता कोई,कहीं भक्ति संगीत।।

हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई,कहते भाई भाई।
बाँटा इनको राजनीति ने,कभी न बनते मीत।।

झंडा ऊँचा रहे हमारा,विजयी विश्व तिरंगा भी।
खींच रहे हैं टाँग मगर,इक दूजे के विपरीत।।

संविधान है एक हमारा,झंडा भी है एक।
भाषा 'हिंदी' नहीं राष्ट्र की,वर्ष अनेकों बीत।।

रहते हैं हम यहाँ देश मे,खाते इसका अन्न।
पर पसंद आता है हमको,पाकिस्तानी रीत।।

सोने की चिड़िया था भारत,सर्वाधिक सम्पन्न।
गौरव गाथा पढ़ना है तो,देखो ज़रा अतीत।।

राष्ट्र भक्ति का नारा देते,थोथे हैं आदर्श।
तोड़ फोड़ कर भारत माँ से,दिखलाते हैं प्रीत।

केसरिया में काला धब्बा,लाल न बने सफ़ेद।
इस 'दिनेश' के साथ मिलो तुम,कटुता करो व्यतीत ।।

                       जय हिंद🇮🇳

                      दिनेश श्रीवास्तव
 दिनेश श्रीवास्तव: दोहे
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              मधुमय भारतवर्ष
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पिकानंद मधुमास या,कामसखा ऋतुराज।
मधुमाधव स्वागत करूँ, हे रतिप्रिय!मैं आज।।-१

अब वसंत का आगमन,धरती हुई विभोर।
नाच रही है साँझ भी,नाच रही है भोर।।-२

नवगति नवलय छंद से,गाती कुदरत गीत।
कोना कोना भर गया,नवरस का संगीत।।-३

कलमकार भी अब करें,अक्षर से शृंगार।
कामदेव रति का मिलन, लिखें अनूठा प्यार।।-४

कला कांति सौंदर्य का,देता शुभ संदेश।
जीवन मे हो आपके,वासंतिक परिवेश।।-५

खिले फूल अब चमन में,भौंरे गाते गीत।
कुहू कुहू कोयल करे,अब आ जाओ मीत।।।-६

ऊष्मा भी अब धूप की,देता यह अहसास।
निश्चित मेरा कंत भी,लाएगा मधुमास।।-७

पंचसरों की कामना,करते सभी सहर्ष।
शब्द,गंध,मधुरस मिले, चरम रूप उत्कर्ष।।-८

पीत पुष्प अर्पित करूँ,पूजन करूँ विशेष।
वीणापाणि सरस्वती,करना कृपा अशेष।।-९

यह 'दिनेश' भी कर रहा,कर को जोरि प्रणाम।
हंसवाहिनी आपकी,सुबह दोपहर शाम।।-१०

सबके घर आँगन दिखे,सौ वसंत सा हर्ष।
मातु कृपा से हो सदा,  मधुमय भारत वर्ष।।-११

                             दिनेश श्रीवास्तव
                              ग़ाज़ियाबाद

 दोहे
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              मधुमय भारतवर्ष
             -----------------------

पिकानंद मधुमास या,कामसखा ऋतुराज।
मधुमाधव स्वागत करूँ, हे रतिप्रिय!मैं आज।।-१

अब वसंत का आगमन,धरती हुई विभोर।
नाच रही है साँझ भी,नाच रही है भोर।।-२

नवगति नवलय छंद से,गाती कुदरत गीत।
कोना कोना भर गया,नवरस का संगीत।।-३

कलमकार भी अब करें,अक्षर से शृंगार।
कामदेव रति का मिलन, लिखें अनूठा प्यार।।-४

कला कांति सौंदर्य का,देता शुभ संदेश।
जीवन मे हो आपके,वासंतिक परिवेश।।-५

खिले फूल अब चमन में,भौंरे गाते गीत।
कुहू कुहू कोयल करे,अब आ जाओ मीत।।।-६

ऊष्मा भी अब धूप की,देता यह अहसास।
निश्चित मेरा कंत भी,लाएगा मधुमास।।-७

पंचसरों की कामना,करते सभी सहर्ष।
शब्द,गंध,मधुरस मिले, चरम रूप उत्कर्ष।।-८

पीत पुष्प अर्पित करूँ,पूजन करूँ विशेष।
वीणापाणि सरस्वती,करना कृपा अशेष।।-९

यह 'दिनेश' भी कर रहा,कर को जोरि प्रणाम।
हंसवाहिनी आपकी,सुबह दोपहर शाम।।-१०

सबके घर आँगन दिखे,सौ वसंत सा हर्ष।
मातु कृपा से हो सदा,  मधुमय भारत वर्ष।।-११

                             दिनेश श्रीवास्तव
                              ग़ाज़ियाबाद
[27/01, 15:27] anami sharan: दोहे
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              मधुमय भारतवर्ष
             -----------------------

पिकानंद मधुमास या,कामसखा ऋतुराज।
मधुमाधव स्वागत करूँ, हे रतिप्रिय!मैं आज।।-१

अब वसंत का आगमन,धरती हुई विभोर।
नाच रही है साँझ भी,नाच रही है भोर।।-२

नवगति नवलय छंद से,गाती कुदरत गीत।
कोना कोना भर गया,नवरस का संगीत।।-३

कलमकार भी अब करें,अक्षर से शृंगार।
कामदेव रति का मिलन, लिखें अनूठा प्यार।।-४

कला कांति सौंदर्य का,देता शुभ संदेश।
जीवन मे हो आपके,वासंतिक परिवेश।।-५

खिले फूल अब चमन में,भौंरे गाते गीत।
कुहू कुहू कोयल करे,अब आ जाओ मीत।।।-६

ऊष्मा भी अब धूप की,देता यह अहसास।
निश्चित मेरा कंत भी,लाएगा मधुमास।।-७

पंचसरों की कामना,करते सभी सहर्ष।
शब्द,गंध,मधुरस मिले, चरम रूप उत्कर्ष।।-८

पीत पुष्प अर्पित करूँ,पूजन करूँ विशेष।
वीणापाणि सरस्वती,करना कृपा अशेष।।-९

यह 'दिनेश' भी कर रहा,कर को जोरि प्रणाम।
हंसवाहिनी आपकी,सुबह दोपहर शाम।।-१०

सबके घर आँगन दिखे,सौ वसंत सा हर्ष।
मातु कृपा से हो सदा,  मधुमय भारत वर्ष।।-११

                             दिनेश श्रीवास्तव
                              ग़ाज़ियाबाद

 वसंत पंचमी
       ------------------ 

पीत पुष्प अर्पित करूँ, पूजन करूँ विशेष।
वीणापाणि सरस्वती, करना कृपा अशेष।।
यह 'दिनेश'भी कर रहा,कर को जोरि प्रणाम।
हंसवाहिनी आपकी,सुबह दोपहर शाम।।
सब के घर आँगन दिखे,सौ वसंत का हर्ष।
मातु कृपा से हो सदा,मधुमय भारत वर्ष।।

                    वसंतपंचमी की हार्दिक शुभकामना।

                         
दिनेश श्रीवास्तव
कुण्डलिया
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                          (१)
करना वंदन ईश का,सदा झुकाना शीश।
शरणागत पर फिर कृपा,करते हैं जगदीश।।
करते हैं जगदीश,नहीं फिर दुविधा होती।
शंका होती दूर, चदुर्दिक सुविधा होती।।
करता विनय 'दिनेश',ध्यान उर में है धरना।
करके मन को शुद्ध,ईश वंदन है करना।।

                         (२)
भाया मुझको कब कहाँ,आया यहाँ वसंत।
करे ठिठोली पूछता,कहाँ हमारा कंत।।
कहाँ हमारा कंत, पूछता है वह जबसे।
प्रियतम गए विदेश,पूछता है वह तबसे।।
विरहन का वो दर्द,बढ़ाने देखो आया।
अब तो फूटी आँख, नहीं हमको है भाया।।

                           (३)

पूजा वृक्षों की करें,वे ही हैं आराध्य।
वही हमारी साधना,वही हमारे साध्य।।
वही हमारे साध्य,धरा वृक्षों से भरना।
यही हमारा कर्म,धर्म है हमको करना।।
कहता यहाँ'दिनेश',नहीं कारण है दूजा।
यही हमारे देव,वृक्ष की करनी पूजा।।

                      (४)

इससे बढ़कर कौन है,परम जगत का मित्र।
वृक्षरोपण से अधिक,तीरथ कौन पवित्र।।
तीरथ कौन पवित्र,यहाँ धरती पर इतना।
धरती का श्रृंगार,सदा करने से जितना।।
जीवन का अस्तित्व,आज कायम है जिससे।
कोई नहीं दिनेश!मित्र है बढ़कर इससे।।
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विषय------पानी
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                     (१)
पानी का संग्रह करें,बूँद बूँद का मूल्य।
बिन पानी जीवन कहाँ,पानी तो बहुमूल्य।।
पानी तो बहुमूल्य, नष्ट मत करना भाई।
ये प्रकृति की देन,इसी में रहे भलाई।।
करता विनय 'दिनेश',सुनाता यही कहानी।
समझो इसका मूल्य,व्यर्थ मत करना पानी।।

                      ( २)

पानी बिन ब्याकुल रहें,जीव जंतु संसार।
दोहन इसका रोकिए,बूंद बूंद से प्यार।।
बूंद बूंद से प्यार,सदा करना ही होगा।
सबके मन मे बात,यही धरना ही होगा।।
कहता यहाँ दिनेश,सभी की राम कहानी।।
व्यर्थ धरा पर रोज,बहाते जाते पानी।।

                     (३)

पानी हो या वृक्ष हो,करना मत संहार।
दोनो ही इस जगत में,धरती का शृंगार।।
धरती का शृंगार, वृक्ष का रोपण करना।
पानी का भी खूब,यहाँ संपोषण करना।।
करता विनय'दिनेश',सुनो अब उसकी वानी।
यहाँ लगाकर वृक्ष,बचाना होगा पानी।।

                              दिनेश श्रीवास्तव
[14/02, 10:25] Ds दिनेश श्रीवास्तव: वतन से प्यार है अपना,वतन दिलदार है अपना,
वही महबूब अपना है,वही तो यार है अपना।
धरा अपनी गगन अपना,ये भारत देश अपना है,
इसी से इश्क़ है मुझको,यही संसार है अपना।।

             प्रेम दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएँ।

                       दिनेश श्रीवास्तव
[09/03, 13:48] Ds दिनेश श्रीवास्तव: "होली" पर रंग-विरंगे
                                     दोहे
                                   --------

                   
कभी न करिए रंग को,होली में बदरंग।
नशा छोड़कर खेलिए,तजिए पीना भंग।।-१

सबसे सुंदर है यहाँ, चढ़े प्रीत का रंग।
द्वेष घृणा ही देश को,करता है बदरंग।।-२

रँगिए अपने आप को,सदा श्याम के रंग।
खेलें होली आप फिर,राधा-रानी संग।।-३

साली सलहज साथ में,साले पर भी रंग।
सराबोर कर दीजिए,बचे न कोई अंग।।-४

साले को चोरी छिपे,पिला दीजिए भंग।
फिर सलहज के साथ मे,खेलें खुलकर रंग।।-५

शृंगारिक परिवेश में,उद्दीपन हो भाव।
तब अनंग के रंग का,होता प्रबल प्रभाव।।-६

यही प्रीत की रीत है,रंगों का त्योहार।
दुश्मन को भी दीजिए,निज बाहों का हार।।-७

भेज पड़ोसी देश में,भारत से कुछ रंग।
कहिए उनसे अब यहाँ, छोड़ें करना जंग।।-८



किसने क्या है कह दिया,शांत समूचा हाल।
बिन गुलाल ही हो गया,गाल कहाँ से लाल।।?-९

नेता जी भी लग रहे,रँग में रँगे सियार।
गिरगिट बनने को सदा,रहते हैं तैयार।।-१०

क्या करना मुझको यहाँ, लेकर हाथ गुलाल।
'कोरोना' ने कर दिया,सबको है बेहाल।।-११

अपने ही हाथों मलें,अपने हाथ गुलाल।
सेल्फी लेकर भेजिए,फिर अपने ससुराल।।-१२

गुझिया पापड़ देखकर,इठलाता मोमोज।
खड़ा अकेले हाट में,देता सेल्फी पोज।।-१३


केसरिया के साथ में,हरा,श्वेत का रंग।
विजयी विश्व बनाइए,अरि हो जाएँ दंग।।-१४

मन को पावन कीजिए, दिल को करें न तंग।
कभी किसी के रंग में,पड़े न कोई भंग।।-१५

ले गुलाल मत घूमिए,कर से करें प्रणाम।
देता यही दिनेश है,सबको अब पैगाम।।-१६

                   


"खेलें होली - होली आज"
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मन के मैल मिटाकर कर आओ!
खेलें होली- होली आज।
दिल के वैर भुलाकर आओ!
खेलें होली- होली आज।।

सदियों से जो रहा यहाँ पर,
बहती आयी है रसधारा।
करुणा प्रेम दया की अबतक,
 बहती अविरल रही त्रिधारा।
इसमें आज नहाकर आओ!
खेलें होली- होली आज।।

धरती नभ आकाश सितारे,
सभी हमारे और तुम्हारे।
समरसता का पाठ पढ़ाते,
लगते सबको प्यारे-प्यारे।
सबको गले लगाकर आओ!
खेलें होली- होली आज।।

नदिया पर्वत झरने जंगल,
करते रहते सबका मंगल।
एक भाव से प्यार लुटाते,
नहीं सोचते कभी अमंगल।
 मंगल भाव जगाकर आओ!
खेलें होली-होली आज।
दिल के वैर भुलाकर आओ!
खेलें होली- होली आज।।

             


वायरस-कारण और निदान
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एक 'कॅरोना' वायरस,जग को किया तबाह।
निकल रही सबकी यहाँ, देखो कैसी आह।।-1

विश्वतंत्र व्याकुल हुआ,मरे हजारों लोग।
आपातित इस काल को,विश्व रहा है भोग।।-2

खान-पान आचरण ही,इसका कारण आज।
रक्ष-भक्ष की जिंदगी,दूषित आज समाज।।-3

योग-साधना छोड़कर,दुराचरण है व्याप्त।
काया कलुषित हो गई, मानस शक्ति समाप्त ।।-4

स्वसन तंत्र का संक्रमण,करता विकट प्रहार।
शीघ्र काल-कवलित करे,करता है संहार।।-5

ये विषाणु का रोग है,करता शीघ्र विनास।
रोगी से दूरी बने,रहें न उसके पास।।-6

हाथ मिलाना छोड़कर, कर को जोरि प्रणाम।
ये विषाणु, इसका सदा,शीघ्र फैलना काम।।-7

हो बुखार खाँसी कभी,सर्दी और ज़ुकाम।
हल्के में मत लीजिए,लक्षण यही तमाम।।-8

भोजन नहीं गरिष्ठ हो,हल्का हो व्यायाम।
रहें चिकित्सक पास में,करिए फिर विश्राम।।-9

तुलसी का सेवन करें,श्याम-मिर्च के साथ।
पत्ता डाल गिलोय का,ग्रहण करें नित क्वाथ।।-10

करें विटामिन  'सी'  सदा,अक्सर हम उपयोग।
प्रतिरोधक क्षमता बढ़े,लगे न कोई रोग।।-11

रहना अपने देश मे,अनुनय करे 'दिनेश'।
प्यारा अपना देश है,जाना नहीं विदेश।।-12

आएँ अगर चपेट में,रखिये धीरज आप।
वैद्य दवा के साथ ही,महा मृत्युंजय जाप।।-13

                   
                   


गीतिका
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                चिंता चिता समान
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चिंता ज्वाला बन करे, नित प्रति दग्ध शरीर।
चिंता चिता समान है,अति उपजाए पीर।।

पंथी करता क्यों यहाँ, पथ की चिंता आज।
मिलता उसको है यहाँ, लिखी गई तकदीर।।

क्या लेकर आए यहाँ, जाओगे सब छोड़।
फिर तुम किसकी चाह में,होते यहाँ अधीर।।

नश्वर जीवन है यहाँ, पुनर्जन्म है सत्य।
चिंतित हैं फिर किस लिए,राजा,रंक, फ़क़ीर।।

जीवन मे किसको मिला,सब कुछ यहाँ जहान।
गया सिकंदर लौट कर,खाली हाथ शरीर।।

चिंतित हो चिंतन करे,मानव प्रज्ञाहीन।
चिंता में व्याकुल यहाँ, पीटे व्यर्थ लकीर।।

कर्मशील बनकर रहो,चिंतामुक्त 'दिनेश'।
सत्य यही सब कह गए, गीता,कृष्ण,कबीर।।

----------------बाल कविता

बापू ने जो राह दिखाई,
साफ सफाई करना भाई।
रोग व्याधियाँ दूर रहेंगी,
मोदी ने भी अलख जगाई।।

नए नए ये रोग निराले,
सुने नहीं थे,देखे भाले।
इसके कारण विश्व काँपता,
'कोरोना' को कौन सम्हाले।।

"स्वच्छमेव जयते" का नारा,
नारा यही हमारा प्यारा।
इससे सारे रोग भगेंगे,
यही हमारा बने सहारा।।

'कोरोना' को दूर भगाएँ,
साफ सफाई को अपनाएँ।
बापू के संदेश जगत को,
एक बार फिर से समझाएँ।।

सभी प्रश्न का एक है उत्तर,
धोना होगा हाथ निरंतर।
गर्म गर्म पानी को पीना,
इसका यह अचूक है मंतर।।

कभी न इससे है घबराना,
भीड़ भाड में कहीं न जाना।
दूर दूर से हाथ जोड़ना,
नहीं किसी को गले लगाना।।

नीबू और संतरा खाना,
मिले आँवला उसे चबाना।
लेकर शस्त्र विटामिन 'सी' का,
'कोरोना' को आज हराना।।

                 


दोहे-

            "कोरोना से बचाव"

हाथ मिलाना छोड़कर, कर को जोरि प्रणाम।
यही हमारी सभ्यता,सुबह मिलें या शाम।।-१

प्रियजन भगिनी या सुता,गले न मिलिए आप।
दूर रहें सब प्रेमिका,छोड़ प्रेम का ताप।।-२

प्रक्षालन हो हाथ का,साबुन से भरपूर।
प्रियजन को भी कीजिये,धोने को मजबूर।।-३

करें विटामिन 'सी'सदा,भोजन में उपयोग।
प्रतिरोधक क्षमता बढ़े,लगे न कोई  रोग।।-४

भीड़ भाड़ लगता जहाँ,वहाँ न जाएँ आप।
मिल सकता है आप को,कोरोना संताप।।-५

काली मिर्च गिलोय का,तुलसी अदरक साथ।
सेंधा नमक मिलाइए, बना पीजिए क्वाथ।।-६

सेवन प्रतिदिन कीजिए,नीबू एक निचोड़।
और आंवला स्वरस भी,काम करे बेजोड़।।-७

अपनी शक्ति बढ़ाइए, फिर प्रहार पुरजोर।
कोरोना भी हारकर,भगे मचाते शोर।।-८

अक्ष भक्ष को छोड़कर,भोजन शाकाहार।
करें निरंतर आप फिर,रोगों का संहार।।-९

बहुत जरूरी हो अगर, बाहर निकलें आप।
मास्क लगाकर निकलिए,करते शिव का जाप।।-१०



: गीत
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अक्ष भक्ष की धारणा,करते हैं व्यभिचार।
यही राक्षसी वृत्तियाँ,छोड़ो मेरे यार।।

मानव करता जा रहा,अपने को ही अंत।
कथनी करनी भेद से,नहीं अछूता संत।।
ढोंग प्रदर्शन को सदा,रहता है तैयार।
यही राक्षसी-----------------------।।

कुदरत के कानून को,तोड़ रहे सब लोग।
तरह तरह की व्याधियाँ,भोग रहे सब लोग।।
कुदरत भी तैयार है,करने को प्रतिकार।
यही राक्षसी--------------------।।

निष्कंटक जीवन बने,व्यर्थ मचे क्यों शोर।
मुड़कर फिर से देखिए,इस प्रकृति की ओर।।
दोहन इसका रोकिए,बने न ये लाचार।
यही राक्षसी---------------------।।

कोरोना का रोग भी,फैला है जो आज।
लगता कुदरत ही यहाँ, हमसे है नाराज।।
नष्ट भ्रष्ट हमने किया,कुदरत का शृंगार।।
यही राक्षसी--------------------।।

                         


निर्भय दिवस
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निर्भय दिवस मनाइए
खुश होइए
निर्द्वंद होकर
सो जाइये।
क्योंकि
दरिंदे सो गए
चिरंतन नींद में।
अब कभी नहीं
होगा बलात्कार,
बहू बेटियों का
होगा सत्कार।
नहीं मरेंगी बेटियाँ अब
लेकिन भ्रूण हत्या
रुकेगी कब?
हत्या तो हत्या है,
चाहे पेट में या
सड़क पर।
फाँसी का विकल्प
केवल और केवल
होता है संकल्प
हत्या न करने का
पेट मे या सड़क पर।।

                     
दोहे


                  "धैर्य"   

दस लक्षण हैं धर्म के, प्रथम धैर्य का नाम।
 धैर्य सदा धारण करें, ज्यों पुरुषोत्तम राम।।-१

सदा धैर्य को धारिए, कभी न बनें अधीर,
 सुख-दुख में समदर्शिता, रखते केवल वीर।।-२

धीर- वीर-गंभीर जो,कर जाते हैं काम।
उनका ही होता सदा,यहाँ जगत में नाम।।-३

  जीवन का पहिया चले, धूरी धैर्य सशक्त।
 धैर्य बिना जीवन कहाँ, मानव रहे अशक्त।।-४

राम कृष्ण या बुद्ध हों, महावीर सम वीर।
विपदा का जब काल था, बने न कभी अधीर।।-५

जीवन में रखिए सदा,धैर्य धीरता आप।
 संजीवन बूटी यही, मिटे सभी संताप।।-६

विपदा है आई बड़ी, निकल रही है आह।
 धैर्य अगर टूटा यहाँ,होगा विश्व तबाह।।-७

विपदा के इस काल में, मानव है जब तंग।
 धीर पुरुष बन जीतिए, 'कोरोना' से  जंग।।-८

 धैर्यशीलता मनुज का, सद्गुण एक महान।
 होती विपदा काल में, इस गुण की पहचान।।-९

धारित करती धारिणी, धरा जगत का भार।
 धरती की यह धीरता, उपकृत है संसार।।-१०

                 



अपील
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सुन सारे!कहाँ से आवत हवे रे घूम के?
जब मना बा त का जरूरत बा एने वोने घुमला के।बुझात नइखे का।पूरा देश परेशान बा आ तोहार मटरगस्ती चालू बा।
सुन ले सुमेरवा!कान खोल के-
थेथरई मत कर न त टास्क फोर्स पकड़ लेई तब का करबे?घरवे में बैठला के काम बा।

आपो सभे कान खोल के सुन लेयीं और गाँठ बाँध लेयीं-

लबर लबर कर के समान  नहीं खरीदिये।दुकान भागल नहीं जा रहा है।

बढ़िया से हाथ गोड धो के बिस्तर पर पड़े रहिए।हाथ त कई बार सबुनाइये।मन घबराए त बी बी सी लंदन घरहि में बैठ के सुन लीजिए नाहीं त घरवे में जोगीरा गाईये।बहरा जायके कौनो काम नइखे।

घर के लईकन आ बुढ़ऊ क हाथ पैर बांध के घरहि में रखिये।

भोरे खरिहान जाना है त अकेलही जाईये।

खयिनी अकेलहिं ठोकिये और अकेलही खाइये।केहुसे न त माँगिये और न दीजिए।

कोरोना भुतहा रोग नहीं है।केहू ओझा सोखा के पास मत जाइए।

बुखार खाँसी सर्दी ज़ुकाम पहिलहुँ होखे।घबराए के नइखे।हँ कई दिन से होखे त डॉक्टर बाबू के पास जरूर जाईये।

बाकी भगवान पर भरोसा रखिये।कुछु ना होई।

हाँ, मोदी क कहना मान के एक दिन 22 के घरहि में अपने को बंद कर लीजिए।

            राम राम🙏

               



जनता कर्फ्यू"

जनता कर्फ्यू का करें,अभिनंदन सब लोग।
दूर भगेगा जानिए,कोरोना का रोग।।
कोरोना का रोग,बैठकर घर में रहिए।
कुछ दिन का ये कष्ट,इसे हँसकर अब सहिए।।
करता विनय दिनेश, धर्म है सबका बनता।
मोदी जी की बात,सभी अब माने जनता।।

                   


वायरस-चेन
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तोड़ दीजिए चेन को,हो जाएँगे मुक्त।
घातक है जो वायरस,हो जाएगा सुस्त।
हो जाएगा सुस्त,यहाँ फैलाव रुकेगा।
जाएगा ये हार,और फिर यहाँ झुकेगा।।
कोई आये पास,हाथ को जोड़ लीजिए।
यही वायरस चेन, इसे अब तोड़ दीजिए।।

                     

गीतिका-

              सफल रहे अभियान
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जहाँ नहीं कुछ हाथ में,ईश्वर का हो ध्यान।
वही शक्ति देगा हमे,और बचेगा प्रान।।

अभी शेष है देश में,तरह तरह के शस्त्र।
अभी कृष्ण का चक्र है,अभी राम का बान।।

विश्व जगत व्याकुल हुआ,वैज्ञानिक सब फेल।
सभी धार्मिक जगत का,व्यर्थ हुआ सब ज्ञान।।

संत पुरोहित थक गए,मुल्ले सभी फ़क़ीर।
आज चिकित्सा जगत का,करना है सम्मान।।

अहर्निशं सेवामहे, लगे चिकित्सक नर्स।
बजे तालियाँ आज फिर,उनका ही हो गान।।

छोड़ छाड़ सब आज फिर,लेकर चम्मच-थाल।
उनको भी दे दीजिए,थोड़ी सी मुस्कान।।

अँधियारा तो क्षणिक है,पुनःउजाली रात।
खंडित करना है यहाँ, अँधियारे का मान।।

टूटेगा अब आज यह,महासंक्रमण चेन।
जन जन का होगा यहाँ,निश्चित ही कल्यान।।

हारेगा यह एक दिन, मन में है विश्वास।
कोरोना का बाप भी,'मोदी' का फरमान।।

संकट की यह बात है,और संक्रमण- काल।
करता विनय 'दिनेश'है,सफल रहे अभियान।।

                दिनेश श्रीवास्तव
               २२ मार्च २०२०
               
दोहे

                  "धैर्य"   

दस लक्षण हैं धर्म के, प्रथम धैर्य का नाम।
 धैर्य सदा धारण करें, ज्यों पुरुषोत्तम राम।।-१

सदा धैर्य को धारिए, कभी न बनें अधीर,
 सुख-दुख में समदर्शिता, रखते केवल वीर।।-२

धीर- वीर-गंभीर जो,कर जाते हैं काम।
उनका ही होता सदा,यहाँ जगत में नाम।।-३

  जीवन का पहिया चले, धूरी धैर्य सशक्त।
 धैर्य बिना जीवन कहाँ, मानव रहे अशक्त।।-४

राम कृष्ण या बुद्ध हों, महावीर सम वीर।
विपदा का जब काल था, बने न कभी अधीर।।-५

जीवन में रखिए सदा,धैर्य धीरता आप।
 संजीवन बूटी यही, मिटे सभी संताप।।-६

विपदा आयी है बड़ी, निकल रही है आह।
 धैर्य अगर टूटा यहाँ,होगा विश्व तबाह।।-७

विपदा के इस काल में, मानव है जब तंग।
 धीर पुरुष बन जीतिए, 'कोरोना' से  जंग।।-८

संयम,साहस,धीरता,शुचिता संव्यवहार।
'कोरोना' के रोग पर,इनसे करें प्रहार।।-९

 धैर्यशीलता मनुज का, सद्गुण एक महान।
 होती विपदा काल में, इस गुण की पहचान।।-१०

तालाबंदी हो गया,प्रतिष्ठान सब बंद।
धीरज रख कर मानिए,सरकारी प्रतिबंध।।-११

धीरज का आया यही,यहाँ परीक्षण काल।
सरकारी अनुदेश पर,उठे न कभी सवाल।।-१२

अक्षरशः पालन करें,कुछ दिन की है बात।
बाद अँधेरी रात के,आता सुखद प्रभात।।-१३

धारित करती धारिणी, धरा जगत का भार।
 धरती की यह धीरता, उपकृत है संसार।।-१४

धीरज के इस काल में,पड़े न साहस मंद।
कलम सदा चलती रहे,घर दरवाजे बंद।।

'कोरोना'से मुक्त हो,स्वछ रहे परिवेश।
धैर्य न टूटे आपका,विनती करे 'दिनेश'।।-१६

                 

                 

कोरोना महामारी तथा तद्जनित प्रभाव पर आधारित कुछ कुण्डलिया -

                    चिकित्सा-सेवक
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                        ( १)

मानव सेवा में लगे,करते हो तुम काम।
तुमको करता हूँ यहाँ,शत शत बार प्रणाम।।
शत शत बार प्रणाम,चिकित्सा सेवा करते।
अहर्निशं तैयार,हमेशा ही तुम रहते।।
कहता सत्य दिनेश,सभी खाते हैं मेवा।
 तुम करते हो वीर,हमेशा मानव सेवा।।

                           (२)

करना होगा अब हमें,उनका भी सम्मान।
इस विपदा के काल मे,लगे हुए जी जान।।
लगे हुए जी जान,हमेशा तत्पर रहते।
करें चिकित्सा कर्म,नहीं हैं फिर वे डरते।।
झोली उनकी आज,प्यार से भरना होगा।
मान और सम्मान,हमेशा करना होगा।।

                    (३)

करते सेवा रात दिन, सभी चिकित्सक नर्स।
बजा तालियाँ दीजिए,उनको भी कुछ हर्ष।।
उनको भी कुछ हर्ष,दीजिए!वह मुस्काएँ।
पाकर कुछ सम्मान,आज हर्षित हो जाएँ।।
कहता सत्य दिनेश,सभी के दुख को हरते।
बने ईश-अवतार,हमारी सेवा करते।।


           मजदूर/गरीब
           -----------------
                       (४)

कोरोना ने विश्व को,किया आज है त्रस्त।
विपदा भारी आ पड़ी,अब गरीब हैं पस्त।
अब गरीब हैं पस्त, उन्हें अब कौन बचाए।
मजदूरी है बंद, कहाँ से भोजन पाए।।
कहता सत्य दिनेश,भाग्य में उनके रोना।
सबसे दुखी गरीब,बनाया है कोरोना।।

                       (५)

आती विपदा जब कभी,पहले पड़ती मार।
उस गरीब के पेट पर,जाता है वह हार।।
जाता है वह हार, टूटकर सदा बिखरता।
उसका जाता फूट, भाग्य,फिर नहीं सँवरता।।
होता दुखी दिनेश,देखकर फटती छाती।
मजदूरों के भाग्य,सदा विपदा ही आती।।

             जागरूकता/हिदायत
             --------------------------
                              (६)

शिक्षा देकर आज फिर,जागृत करें समाज।
विपदा के इस काल मे,यही जरूरत आज।।
यही जरूरत आज,करें मत लापरवाही।
कुछ दिन की है बात,बंद हो आवाजाही।।
करता विनय दिनेश,माँगता है वह भिक्षा।
सुधरें खुद भी आप,और को भी दे शिक्षा।।

                       (७)

यही हिदायत आपको,घर में रहकर आप।
बैठ वहीं पर कीजिए, माँ गायत्री जाप।।
माँ गायत्री जाप,सुखद जीवन बीतेगा।
आया जो संताप,मनुज इसको जीतेगा।।
मानो मेरी बात,करो मत कहीं शिकायत।
घर मे रहना आप,आपको यही हिदायत।।

                     ( 8)

तोड़ दीजिए चेन को,हो जाएँगे मुक्त।
घातक है जो वायरस,हो जाएगा सुस्त।।
हो जाएगा सुस्त,तभी फैलाव रुकेगा।
जाएगा ये हार, और फिर यहाँ झुकेगा।।
कोई आये पास,हाथ को जोड़ लीजिए।
यही वायरस चेन,इसे अब तोड़ दीजिए।।

                   (९)

कोरोना ने विश्व का,छीन लिया है शांति।
चेहरे सबके मलिन हैं,मुख पर दिखती क्लांति।
मुख पर दिखती क्लांति,और मुरझाया लगता।
मानव से ही दूर,आज मानव है भगता।।
करता विनय दिनेश, धैर्यता कभी न खोना।
मन मे रखना आस,नष्ट होगा कोरोना।।

                      ( १०)

सहयोगी बन कीजिए, सबका ही सहयोग।
विपदा के इस काल ने,सबसे सुंदर योग।।
सबसे सुंदर योग, अभी बाहर मत निकालें।
सरकारी अनुदेश, सभी का पालन कर लें।
करता विनय दिनेश,यहाँ पर जो हैं रोगी।
विपदा के इस काल,बने उनके सहयोगी।।


                   

                 
 गीत

                "
दे दो अपना साथ"



माँग रहा सहयोग जोड़कर,सबसे अपना हाथ।
भारत के लोगो! तुम दे दो,उसको अपना साथ।।

सबकी है चिंता वह करता,सभी निभाए रीत।
गाता केवल देशभक्ति का,पल-प्रतिपल वह गीत।।
नियमों का बंधन भी देता,देता वह सौगात।
भारत के लोगो! तुम दे दो,उसको अपना साथ।।

विपदा आन पड़ी है जग पर,खड़ा तुम्हारे पास।
फिर भी कुछ हैं लोग उड़ाते,हास और परिहास।।
फिक्र तुम्हारी हर पल करता,दिन हो चाहे रात।
भारत के लोगो! तुम दे दो,उसको अपना साथ।।

भारत का मुखिया जब कहता,"घर मे बैठो आप"।
तभी मिलेगी मुक्ति यहाँ पर,'कोरोना' का शाप।।
घड़ी एक विपदा की आई, मानो उसकी बात।
भारत के लोगो! तुम दे दो, उसको अपना साथ।।

समझो उसको कान खोलकर,क्या देता पैगाम?
संदेश सुनाता क्या क्या तुमको,और देश के नाम?
फिर उसका संदेश भुलाकर,करते हो प्रतिघात।
भारत के लोगो! तुम दे दो,उसको अपना साथ।।

नहीं मानते आज अगर तो,कल मुश्किल हो जाएगा।
पूरा देश यहाँ पर तब तो,गीत मर्सिया गाएगा।।
पता चलेगा फिर तो अपनी,कितनी है औकात।
भारत के लोगो! तुम दे दो,उसको अपना साथ।।

                     
: भविष्य का वध
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अनवरत जीवन चक्र का
अचानक रुकना,
मानो आसमान का
पृथ्वी पर झुकना।
खण्डित होना गर्व का,
विखंडित होना दर्प का।
कैसा ये संकेत?
बताओ न अनिकेत!

अब तो चेतो मानव!
बनना छोड़ो दानव।
प्रकृति को क्यों किया विखंडित?
निश्चित करेगी वो दण्डित-
तुम्हारे किये गए
समस्त दुराचरण
के लिए।
तुम्हारे विध्वंसक आचरण
 के लिए।

आओ!अब तो चेत जाएँ,
कुदरत को न सताएँ।
ऐसा न हो कि कल,
केवल हम-
पछताएँ ही पछताएँ।
क्योंकि यह जानते हुए भी कि-
वर्तमान से स्वतंत्र कोई
भविष्य नहीं होता,
और हम
वर्तमान में भविष्य का
करते जा रहे हैं-
वध और केवल वध।।

                   
दोहा-छंद

           "
अपना भारत देश"
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सभी स्वस्थ सानंद हों,ईश हरे त्रय ताप।
विकट समय है देश का,मिटे सभी संताप।-१

कभी अँधेरा था कहाँ,इतना बड़ा महान।
रोक सका है आज तक,होता रहा विहान।।-२

संचित भारत देश में,पुन्य प्रसून अगाध।
भष्म सभी होंगे यहाँ, इनसे शीघ्र निदाध।।३


ऋषि मुनियों की भूमि है,अति पवित्र यह देश।
इसके कण कण में भरा,जिजीविषा संदेश।।-४

धैर्य धरा धरती यहाँ,रत्नों की है खान।
पूरित करती है सदा,खान पान अनुपान।।-५

गंगा जल से है जहाँ, बनता अमृत योग।
रोग शोक शीतल करे,करता सदा निरोग।-६

देता हो जिस देश को,सूरज  दिव्य प्रकाश।
निश्चित ही होगा यहाँ, कृमि अणुओं का नाश।।-७

पवन जहाँ इस देश को,देता मलय समीर।
आशंका निर्मूल है,होगा स्वस्थ शरीर।।-८

पत्ता पत्ता है जहाँ, औषधि का भंडार।
देने को आतुर सदा,वृक्ष हमे उपहार।।-९

ऐसे भारत देश में,होगा शीघ्र विनाश।
यहाँ गले में आज जो,फँसा 'कोरोना' फाँस।।-१०

कुछ दिन की ही बात है,घर मे रहो 'दिनेश'।
शीघ्र स्वस्थ हो जाएगा,अपना भारत देश।।-११

                   

                   
                       



कविता तुम कौन हो
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कविते!तुम कहाँ रहती हो?
तुम कौन हो?
बताओ न!
क्यों मौन हो?

कविश्रेष्ठ!तो अब सुनो!
तुम जहाँ जहाँ जाओगे
वहीं वहीं मुझे पाओगे
मैं सर्वत्र व्याप्त हूँ,
होती नहीं समाप्त हूँ,
जिसकी बेटी हूँ
उसका नाम है अक्षर
फिर कैसे जाती मर?

मैं हीं वर्तमान हूँ,
भूत में थी व्यवस्थित,
भविष्य के गर्भ में भी
हूँ सुरक्षित।
कुछ उदाहरण बताती हूँ,
इन्हें सुनो और जो
अच्छा लगे,उसे चुनो।


जानते हो कविवर!
मैं ही प्रथम कवि की
चाह हूँ और
क्रौंच युगल की
कराह हूँ।
मैं हीं चूल्हे की आँच पर
सिकी हुई रोटी  हूँ तो
किसी चूल्हे की बुझी हुई
राख भी ।
मैं हीं कर्ज में डूबे हुए
किसान की आह हूँ,
तो किसी बैंकर की
साख भी ।

मैं ही तो माँ की गुनगुनाती
लोरी हूँ तो कहीं
बोझ से दबे पिता की
मजबूरी।

मैं हीं तो किसी मासूम की
चीत्कार में हूँ तो
अस्मत लूटने वालों के
धिक्कार में।
किसी मजदूर के भूख में हूँ
तो कहीं महाजन के
 संदूक में।
मैं ही देश के गद्दार में हूँ तो
कहीं  सीमा पर तने
 बंदूक में।


मैं हीं तो कहीं पुण्य में हूँ
तो कहीं पाप में।
छलिया इंद्र के जाल में हूँ
तो कहीं किसी गौतम के
शाप में ।

मैं हीं तो कृष्ण की
गीता में हूँ, तो कहीं
तुलसी की
सीता में।
मैं ही भीष्म की
शरशैया में हूँ तो
तो कहीं वंशी धारी
कृष्ण कन्हैया में।


कवि श्रेष्ठ!मैं कहीं प्रकाश में हूँ
तो कहीं अंधकार में।
किसी संस्कार में हूँ तो
किसी मन के विकार में।

तो हे कविवर!तुम
अपना शब्दभेदी बान
जहाँ जहाँ चलाओगे
वहीं वहीं घायलावस्था में
मुझे पाओगे और
करुण क्रंदन के साथ
मुझे ही गुनगुनाओगे।।

                   



दोहा छंद आधारित हिंदी ग़ज़ल
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               "फिर से होगी भोर"
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दीप दीप जलता रहे,अँधियारा घनघोर।
आह्वाहन है देश का,फिर से होगी भोर।।

 नव ऊर्जा नव जोश से,मन में भर उत्साह।
करें अंत इस क्लेश का,फिर से होगी भोर।।

 रोशन होगा देश अब, होगा शीघ्र विनाश।
आया रोग विदेश का,फिर से होगी भोर।।

 विपदा के इस काल में, धीरज का संदेश।
पालन हो संदेश का, फिर से होगी भोर।।

नेह डोर को थामकर, जले दीप निर्वाध।
 क्षीण न हो आवेश का, फिर से होगी भोर।।

 विस्तृत धवल प्रकाश से, मिट जाए चहुँ ओर।
 अँधियारा परिवेश का, फिर से होगी भोर।।

 छिन्न भिन्न होगा यहाँ, हो जायेगा अंत।
 राज्य यहाँ तिमिरेश का,फिर से होगी भोर।।

तमसो मा ज्योतिर्गमय, महामंत्र उपचार।
ऐसे रोग विशेष का,फिर से होगी भोर।।

कण कण आलोकित यहाँ, फैले जगत प्रकाश
कहना यही 'दिनेश' का, फिर से होगी भोर।।

                           दिनेश श्रीवास्तव

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