प्रस्तुति - उषा रानी/
राजेंद्र प्रसाद सिन्हा
*परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- सत्संग के उपदेश- भाग 2- कल से आगे :-अब योगी साहब के दूसरे एतराजों के जवाब दिए जाते हैं।
आप कहते हैं कि राधास्वामी मत में जिस कदर हृदय की पवित्रता और शुद्धता दरकार है साधारण मनुष्य से बन पडनी नामुमकिन है इसलिए साधारण मनुष्य राधास्वामी सत्संग के अंदर प्रचलित योग साधना से लाभ नहीं उठा सकते ।
योगी साहब का यह एतराज निहायत तुच्छ है। आत्मा व परमात्मा के दर्शन के लिए जितने भी प्रसिद्ध योग मार्ग हैं उन सब में यमों व नियमों का पालन पहली सीढ़ी करार दिया गया है। चंचल व मलिन चित आत्मदर्शन के कतई नाकाबिल है ।
चित्त से यह दोष दूर रखने के लिए खान पान व जगत के संग व्यवहार में खास दर्जे की सावधानी निहायत जरूरी है। इसलिए अगर राधास्वामी मत में शराब व मांस वगैरह से परहेज, हक व हलाल की कमाई का खाना खाने के लिए ताकीद, मनसा, वाचा कर्मणा किसी को दुख ना देने की तालीम और मन व इंद्रियों को घटने रोकने के लिए हिदायत की जाती है तो क्या आश्चर्य है?
हिंदुस्तान में सैकड़ों बल्कि हजारों ऐसे पुरुष हैं जो किसी किस्म का योगसाधन भी नहीं करते और जो सत्संगी भी नहीं है लेकिन फिर भी इन उसूलों पर अमल करते हैं। मुश्किल यह है कि जनता में शब्द अभ्यास के मुतअल्लिक़ गलतफहमियां फैली हुई है और जिस शख्स ने कुछ दिनों शब्द अभ्यास करके अमली तजरुबा हासिल नहीं किया वह इस अभ्यास की महिमा का पूरा अंदाजा हरगिज नहीं लगा सकता।
यह जरूरी है कि-" बुलहवासी और कपटी जन को नेक व धुन पतियाई" यानी संसार की वासनाओं से सना हुआ व कपटी मन शब्द अभ्यास के अयोग्य है लेकिन जिस शख्स के दिल में सच्चा शौक चित्त की निर्मलता हासिल करने के लिए मौजूद है वह सुमिरन करके पहले अपने मन को सावधान करता है और जरा सी सावधानता यानी तबीयत में करार आते ही फौरन शब्द अभ्यास में जुट जाता है। शब्दधार के प्रकट होते ही उसके मन की मलिनता एकदम दूर हो जाती है ।
जिन भाइयों को इस किस्म के तजुर्बे हासिल हैं अच्छी तरह समझते हैं कि इस तरीके से बिगड़ा व फैला हुआ मन कैसी सहूलियत से उदित से काबू में आ जाता है और चित्त से मलिनता दूर होकर किस कदर जल्द प्रेम अंग प्रकट हो जाता है ।
हम योगी साहब को सलाह देंगे कि उनको इख्तियार है कि जिस रास्ते पर चाहे चले और अगर उनको कोई ऐसा योगसाधनाआता है जिसकी कमाई के लिए ज्यादा शुद्धता व निर्मलता की जरूरत नहीं है तो खुशी से उसका फायदा उठावें लेकिन ख्वामख्वाह का राधास्वामीमत पर कटाक्ष ना करें जबकि उन्हें संतमत के अंदर प्रचलित योगसाधनों से कतई वाकफियत नहीं है।
क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻*
*परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र- भाग 1-
कल का शेष -(10)
और जो लोग की मालिक को अनाम और अरूप और सर्वव्यापक समझकर मानते हैं, उनके ह्रदय में मालिक के चरणों की भक्ति पैदा नहीं होगी और ना कभी उस सर्वव्यापक स्वरूप से उनका मेल होगा और न सच्चा उद्धार उनके जीव का मुमकिन है ।
यह लोग विद्या और बुद्धि के बिलास वाले हैं , इनसे मन और इंद्रियों के रोकने का और उन को काबू में लाने की जुगत बिल्कुल नहीं कमाई जा सकती है। इस सबब से जाहिर में तो बहुत बातें बनाते हैं, पर अंतर में हमेशा खाली रहते हैं ।
जिस वक्त यह लोग मालिक की स्तुति करें या उसकी महिमा गावें,उस वक्त थोड़ा प्रेम इनके ह्रदय में और जबान से जाहिर होगा , पर यह ठहराऊ नहीं होगा और न उसकी तरक्की होगी, क्योंकि उनका घाट बिना अंतरी अभ्यास के नहीं बदल सकता यानी हमेशा मन और बुद्धि और इंद्रियों के घाट पर उनकी बैठक रहती है ।
और वह घाट दुनिया की कार्रवाई का है , उसमें मालिक का प्रेम थोड़ी देर के वास्ते, जब तक उसका जिक्र या सिफत करें आ सकता है और जब जिक्र हो चुका फिर बदस्तूर दुनियावी हालत में उसका बर्ताव रहेगा और वह हालत मालिक के प्रेम से खाली रहती है।।
( 11) इस वास्ते संतमत ही सच्चा मत है और जो कोई उसको मानेगा और सुरत शब्द का अभ्यास करेगा उसका सच्चा उद्धार होगा बाकी जीवो का जन्म मरण और नीच ऊँच जोनों में चक्कर में और फेरा किसी सूरत में बच नही सकता है।
(12) जो कोई सच्चा खोजी और दर्दी है वह सतगुरु या साथ गुरु या संतमत के भेदी से मिलकर सुरत शब्द योग की जुक्ति दरयाफ्त करके उसके अभ्यास में लग कर दिन दिन अपने अंतर में आनंद और रस लेता जावेगा और गुरु राधास्वामी कुल मालिक के चरणों में प्रीति और प्रतीती बढ़ाता जावेगा और सच्ची शर्म लेकर कोई दिन अभ्यास करके अपने उद्वार की सूरत अपने अंतर में आप देखेगा।
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻*
राधास्वामी!!
सत्संग में पढ़ा गया -बाज लोग ताज्जुब के साथ सवाल करते हैं कि पिछले जमाने में तो योग साधन में सफलता हासिल कर ने के लिए मुद्दत तक उम्र तक करना पड़ता था और साधन करने वाले को गृहस्थाश्रम का त्याग करना होता था लेकिन इस जमाने में सत्संगी हालांकि न कोई उम्र तक करते हैं और न गृहस्थाश्रम का त्याग करते हैं लेकिन निहायत संतुष्ट और प्रसन्न नजर आते हैं और योग साधन में सफलता के मुतअल्लिक़ बरमला गुफ्तगूं करते हैं, इसकी क्या वजह है?
वजह यह है कि इस जमाने में राधास्वामी दयाल बजाय उम्र तप के सच्ची भक्ति द्वारा मनुष्य के हृदय को शुद्ध कराते हैं। जैसे पिछले जमाने में लोग मिट्टी का चिराग जलाकर रोशनी करते थे जिसकी रोशनी कमजोर रहती थी और जिसकी बत्ती बार-बार बढानी पढ़ती थी और जिसके धुँए से कमरा भर जाता था और आजकल जरा से बटन दबाने से बआसानी निहायत तेज रोशनी हो जाती है जिसमें धुएँ का नामोनिशान भी नही होता। हरचंद दोनो ही रोशनी करने के लिए माकूल इंतजाम है और दोनों ही में सृष्टिनियमों से काम लिया जाता है लेकिन एक में अदना सृष्टिनियम इस्तेमाल होते हैं और दूसरों में आला और आला सृष्टिनियमों के इस्तेमाल से हमेशा सुख ज्यादा और कष्ट कम होता है। पिछले जमाने में जो योगसाधन जारी था वह अहंकार का मार्ग था और अब जो साधन जारी है और वह भक्ति का मार्ग है जो अहंकार के मार्ग से आला है इसलिए इसमें सुख ज्यादा है और कष्ट कम। मनुष्य का स्वभाव है कि संसार के जीवों में पदार्थों से सहज में मोहब्बत पैदा कर लेता है और मोहब्बत कायम होने पर उन्हीं का हो रहता है ।अगर मनुष्य बजाए संसार के जीवो व पदार्थों के सच्चे मालिक के सच्चे सद्गुरु से मोहब्बत कायम करें तो कुदरती तौर पर यह उनका हो जाएगा और सहज में इसकी संसार व संसार के सामानों से मोहब्बत टूट जावेगी। यही भक्ति मार्ग है और राधास्वामी दयाल का मार्ग है। राधास्वामी दयाल अपने चरणों में काम कराके जीव को संसार के मोहजाल से छुडाते हैं इसलिए सतसंगी आमतौर पर संतुष्ट व प्रसन्न नजर आते हैं। उनको पिछले जमाने की सी काष्टा झेले बगैर संसार के बंधनों से रिहाई हासिल हो जाती है। मनुष्य को संसार में रहने की बासना ही ने संसार में बांध रखा है ।सद्गुरुभक्ति द्वारा उसके अंतर के अंतर मालिक के चरणो में निवास हासिल करने की वासना दृढ हो जाती है और यह वासना उसे सृष्टि नियम अनुसार सहज में भवसागर से पार करके मालिक के चरणो में पहुंचा देती है।🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻 सत्संग के उपदेश भाग तीसरा।
[02/04, 22:08] Contact +918377958104: *परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- रोजाना वाक्यात- 20 अगस्त 1932 शनिवार:- बंगलुरु से जवाब आ गया है। सितंबर के पहले हफ्ते में कुछ दिन के लिए वहां जाना होगा। पटना से सूचना आई है कि माह नवंबर की नुमाइश के लिए मकानों का मनचाहा बंदोबस्त हो गया है। मिस्टर अब्दुल अजीज बैरिस्टर -एट-लॉ का खत पढ़कर दिल को अत्यधिक खुशी हुई। खत क्या है मिश्री का कूजा है। बैरिस्टर साहब दयालबाग से और मुझसे कतई अपरिचित हैं लेकिन आपका दिल दरिया-ए- गंगा की तरह पाक व उदार मालूम होता है। मुबारक है वह वालिदैन जिन की औलाद उदारदिल है। मुबारक है वह शहर जहां पर उदारदिल बसते हैं ।। रात के सत्संग में बयान हुआ कि दुनिया में तीन किस्म के आदमी है। बेतमीज, बदतमीज और बातमीज। बेतमीज आदमी आवारा जिंदगी बसर करते हैं। न कोई उद्देश्य जिंदगी का रखते हैं मैं स्वयं को सुखी बनाने की फिक्र करते हैं ।जहाँ देखा सो गये, जिधर देखा निकल गये। खाने के लिए मिल गया तो हंस पड़े, न मिला तो रो दिये। अर्थात संसार में धक्के खाते फिरते हैं और कमोबेश बरहमनी( जिनका वध न किया जा सके) सांडो की सी जिंदगी बसर करते हैं। बदतमीज आदमी रहने के लिए मकान बनाते हैं लेकिन उसके अंदर हर चीज बेतरतीब रहती है। चारो तरफ गंदगी के अम्बार नजर आते हैं। बाल बच्चे हैं लेकिन न किसु का मुँह धुला है न किसी के बदन के कपड़े दुरुस्त हालत में है। फुर्सत का वक्त मनोरंजन स्थलों में व्यय करते हैं और अपनी आमदनी का बडा अंश व्यर्थ बातों में नष्ट करते हैं । 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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