Friday, April 3, 2020

सत्संग के उपदेश




सतसंग के उपदेश
भाग-2
(परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज)

बचन (56)

सतसंगी भाइयों व बहनों की अहम ज़िम्मेवारी।

(पिछले दिन का शेष)
       
ये बातें कहने और सुनने के लिये तो निहायत आसान हैं लेकिन अमल में लानी आसान नहीं हैं। हमारी रहनी गहनी में इच्छानुसार तब्दीली तभी हो सकती है जब हमारे दिल में संसार की जानिब से किसी क़दर सच्चा वैराग्य और हुज़ूर राधास्वामी दयाल के चरणों में सच्चा अनुराग आ जावे। जिस सतसंगी भाई का हृदय इस वैराग्य और अनुराग से ख़ाली है उसकी रहनी गहनी आम दुनियादारों से किसी हालत में बेहतर नहीं हो सकती। ये वैराग्य व अनुराग कैसे पैदा हों? ख़ास क़िस्म के संस्कारों से। ख़ास क़िस्म के संस्कार कैसे हासिल हों? इसके लिये चेतकर सतसंग करना ही अकेला इलाज है। यह दुरुस्त है कि कामिलों, बुज़ुर्गों व प्रेमीजनों के रचित ग्रन्थों को पढ़ने और संसार में दुख सुख की ठोकरें खाने से भी इन्सान की समझ बूझ में बहुत कुछ तब्दीली होती है नीज़ ऐतिहासिक ग्रन्थों के पढ़ने, दुनिया की हालतों का मुशाहिदा करने और जवानी का दौर ख़त्म होकर अधेड़ अवस्था आने पर भी इन्सान के ख़्यालात बदल जाते हैं लेकिन जिस दर्जे का वैराग्य और जिस क़िस्म का अनुराग परमार्थी रहनी गहनी हासिल होने के लिये दरकार है वह इस तरीक़े से हासिल नहीं होता। योगदर्शन में फ़रमाया गया है कि प्रत्यक् चेतन यानी आत्मदर्शन हासिल होने पर ”पर वैराग्य“ की प्राप्ति होती है। जिन महापुरुषों को आत्मदर्शन प्राप्त होकर ”पर वैराग्य“ हासिल हुआ है उनके चरणों में हाज़िरी देने, उनके अमृतबचनों व रहनी गहनी का असर लेने और उनकी दयादृष्टि व सहायता से जो संस्कार पैदा होते हैं वे और ही क़िस्म के होते हैं इसलिये सतसंगी भाइयों पर फ़र्ज़ है कि जब दया से हुज़ूर राधास्वामी दयाल अपने चरणों की नज़दीकी इनायत फ़रमायें यानी उन्हें सतसंग में शामिल होने के लिये मौक़ा व सहूलियत बख़्शें तो वे उसका पूरा फ़ायदा उठायें और इस तरीक़े से चेतकर सतसंग करें कि उन्हें सतसंग का पूरा फ़ायदा हासिल हो और वे ख़ास संस्कार, जिनकी महिमा ऊपर बयान की गई, उन्हें भरपूर हासिल हों और कुछ अर्सा इस तरह सतसंग का असर लेकर सतसंगी भाई अपनी हालत पर दृष्टि डालें और देखें आया उनकी रहनी गहनी में कोई ख़ुशगवार तब्दीली हुई है या नहीं। अगर हुज़ूर राधास्वामी दयाल हम जीवों को अपने चरणों की नज़दीकी का शुभ अवसर बख़्शिश फ़रमाते रहें और सतसंगी भाई व बहनें इस तरह अमल करते रहें और इस तरह हमारे अन्दर तब्दीलियाँ वाक़ै हों तभी सतसंग का दुनिया में क़ायम होना और हमारा हुज़ूर राधास्वामी दयाल की चरणशरण लेना सफल हो सकता है और तभी सर्व साधारण की तवज्जुह सतसंग की तालीम और आदर्श की जानिब मुख़ातिब हो सकती है और तभी वह अहम ज़िम्मेवारी, जो औरों से पहले हुज़ूर राधास्वामी दयाल की चरण शरण मिलने की वजह से हम पर आयद होती है, पूरे तौर से व हुज़ूर राधास्वामी दयाल की मर्ज़ी के मुवाफ़िक अदा हो सकती है।
राधास्वामी






सतसंग के उपदेश
भाग-1
(परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज)
मिश्रित बचन
       70- इस मन का कुछ एतबार नहीं है, जब उमंग में आता है तो तन, मन, धन सभी निछावर करने के लिये तैयार हो जाता है लेकिन ज्यों ही कोई बात मर्ज़ी के ख़िलाफ़ हुई, रूखा फीका हो जाता है। मन की यह हालत जंगली जानवर की सी है। अगर जीव कुछ दिन संतों के सतसंग में शामिल होकर सेवा में लगे तो मन की यह आदत छूटने में आवे।
       71- जब किसी जीव को दुनिया में दुख मिलता है तो घबरा कर सतसंग की जानिब दौड़ता है कि अगर सतसंग में ठिकाना मिल जावे तो रूखा सूखा खाकर और मोटा झोटा पहिन कर गुज़ारा कर लूँगा। लेकिन जब उसको सतसंग में ठिकाना और कोई काम ज़िम्मेवारी का मिल जाता है तो उस वक़्त उसके सब इरादे बदल जाते हैं और दूसरों के आराम और तरक़्क़ी को देख कर हर तरह के आराम व सहूलियत की चाह उठाने लगता है। और जब वह चाह पूरी नहीं होती तो रूखा फीका या उदास होकर सतसंग से भागने की सोचता है। जो लोग सतसंग में रहकर सेवा करने के ख़्वाहिशमंद हैं उनको मन की इस घात से ख़बरदार रहना चाहिये।
       72- छोटों के साथ बड़ों के प्यार करने को दया कहते हैं, और बड़ों के साथ छोटों के प्यार करने को भक्ति कहते हैं। गोया भक्ति व दया दोनों प्यार ही के नाम हैं। इसलिये जो शख़्स मालिक या सतगुरु से दया का उम्मीदवार है अगर वह मालिक के या सतगुरु के चरणों में भक्ति करता है, तो कौन एहसान करता है? एहसान तो मालिक या सतगुरु करते हैं जो बावजूद इतने बड़े होने के तुच्छ जीव के साथ प्यार करते हैं। लेकिन मूर्ख लोग उलटा ही ख़्याल करते हैं और सतगुरु या मालिक की भक्ति करने में अपनी बड़ाई समझते हैं।
राधास्वामी

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