प्रस्तुति - विमला अजय यादव
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-
सत्संग के उपदेश -भाग 1
- कल से आगे -
वेदसर्वस्य ग्रंथ में लिखा है-" जभी यह देखने में आता है कि सब शाखा ग्रंथो में कोई ग्रंथ व्याख्यान और व्याख्येय नहीं है किंतु काचित्क पाठभेद और पाठ न्यूनाधिक को छोड़कर सब एक दूसरे के समान है तब 1131 में से चार व्याख्या और शेष 1127 व्याख्यान है यह कल्पना करना और मानना कैसे समझा जा सकता है।"
ग्रंथकर्ताओं की राय में अध्यापक या अध्येता के भेद से पाठ के भेद या मंत्रों की कमी पेशी का नाम शाखा है क्योंकि शाखग्रंथों में इनके सिवा कोई दूसरा फर्क मालूम नहीं होता। खैर! शाखा का अर्थ कुछ भी हो लेकिन यह तस्लीम करना होगा कि न मून वेदो का मामला तय है न उनकी शाखाओं का और न उनकी तादाद का । इसी तरह भाष्यों के मुतअल्लिक़ हर कोई जानता है कि महीधर भाष्य में वैदिक मंत्रो को सख्त गंदे मानी पहनाये गए है। सायाणआचार्य एक अर्थ करते हैं स्वामी दयानंद जी दूसरे; किसे सही मानें किसे गलत माने। ईश्वर ने सृष्टि के आदि में वेद भगवान प्रकट करने की कृपा फरमाई लेकिन अफसोस! उनके असली मंत्र व अर्थ दुनिया में सदा प्रचलित रखने के लिए इंतजाम न फरमाया।
हमारी राय है कि अगर वाकई वेद ईश्वरीय ज्ञान है तो उनके अर्थो को कोई ईश्वरकोटी मनुष्य ही समझ व समझा सकता है। अगर श्रद्धालु भक्त वेद के ग्रंथ मोल लेकर उनकी पूजा किया करें तो हरचंद ऐसा करना पाप नहीं है लेकिन ऐसा करने से लोगों को वेदों के अंदर बयान किये हुए रहस्य का न कुछ पता नहीं चल सकता है और न कुछ लाभ हो सकता है । क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज
- रोजाना वाक्यात
-27 अगस्त 1932
-शनिवार:- सरदार लक्ष्मण सिंह साहब जो नामधारी पंथ के एक बड़े स्तंभ है दयालबाग हाय हुए हैं। उनसे मालूम हुआ कि नामधारी संगत के दिल में राधास्वामी मत के लिए बहुत श्रद्धा है।
मैंने दिल से शुक्रिया अदा किया कि ऐसे लफ्ज सुनने में तो आये। नामधारी पंथ के गुरु साहब से लुधियाना में मुलाकात हुई थी। निहायत सादा मिजाज और तपस्वी मालूम होते हैं। नामधारी पंथ अनुयायियों को मालूम हो कि हमारा दिल उनकी संगत के लिए पूरी श्रद्धा व प्रेम रखता है।।
रात के सत्संग में रूहानियत के मानी और पहुंचे हुए पुरुषों की चंद पहचाने ब्यान हुई। बाज लोग प्रेम या बिरह के शब्दों का पाठ सुनकर रोने लगते हैं ।
बार जोर से सर हिलाने लगते हैं ।बाज लंबी-लंबी मालाएं गले में पहने फिरत हैं बाज ढीले ढाले वस्त्र धारण कर लेते हैं। इनमें से एक भी अंतरी गति का निशान नहीं है। जैसे बिजली के छूने से बिजली की कुव्वत और गर्म चीज के स्पर्श करने से उसकी हरारत छूने वाले के अंदर प्रवेश कर जाती है ऐसे ही अंतर में किसी धाम के धनी तक पहुंच हासिल होने पर उसकी गुण अभ्यासी के अंदर आ जाती है और किसी ने सच्चे मालिक का साक्षात्कार किया है तो उसका आत्मा मामूली आत्मा नहीं रह जाता।
उसके अंदर मालिक की सी सिफ्त नजर आने लगती है। यह निहायत गंभीरता से जिंदगी बसर करता है उसकी हर बात सुनो और बकायदा होती है । वह वादा का सच्चा और कौल का पक्का होता है। वह जब मौका पडे सच्ची बात कहने से कतई खौफ नही खाता।वह अपनी जिंदगी का एक मिनट नष्ट नहीं करता।
वह हमेशा प्रेम के रंग में रंगा दिखाई देता है। मुश्किल से मुश्किल काम निहायत आसानी से पूर्णता कर देता है। वह संसार सागर में रहता है लेकिन लकड़ी के टुकड़े की तरह हमेशा उसकी सतह पर तैरता है।
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-
सत्संग के उपदेश-
भाग दो-
शुरू में अपनेतई आद्दी बनाने के लिए समय का मुकर्रर करना जरूरी है और नीज दुनियावी कामकाज के झमेलो और मन की कमजोरियों से बचने के लिए हमेशा मुकर्ररा वक्तों पर अभ्यास में बैठना मुफीद है लेकिन साथही यह भी याद रखना चाहिए कि वह सच्चा मालिक, जिसकी पूजा की जाती है, किसी वक्त गाफिल नहीं होता और ना ही किसी वक्त खास वक्त अपने भक्तों की तरफ खासतौर पर मुखातिब होता है।
उसका दरवाजा 24 घंटे खुला रहता है और वह हर वक्त दया व बक्शीश करने के लिए तैयार रहता है। समय नीयत करने की जरूरत हमारी अपनी कमजोरियों की वजह से पैदा होती है न कि सच्चे मालिक के समयविभाग के कारण। इस बयान से जाहिर है कि अगर कोई शख्स दिन रात में सिर्फ एक मरतबा मालिक की याद में हो और अपनी तवज्जुह अंतर में जोड़ लें तो वह शख्स उन लोगों से, जो दिन में 5-7 मर्तबा नमाज पढ़ते हैं लेकिन अपनी तवज्जुह पर काबू नहीं रख सकते, हजार दर्जे नफे में है ।
लेकिन अगर यह लोग 5-7 मर्तबा की नमाज में हरबार या अक्सर अपनी तवज्जुह अंतर में जोड़ लेते हैं तो ये नफा में है ।
क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हूजूर महाराज-प्रेमपत्र-भाग-1,
(16)-【वर्णन दर्जों का जो संतो ने रचना में मुखर्रर किये है और बडाई संत मत की】:- (1) राधास्वामी दयाल ने जो दर्जे रचना में वर्णन किए हैं अथवा जो स्थानों का भेद दिया है, उसको सही मानना चाहिए और उसकी प्रतीति करके उसके मुहाफिक अभ्यास में चाल चलनी चाहिए और धुर स्थान का पूरा पूरा यकीन करके वहां के पहुंचने का इरादा सच्चा और पक्का मन में धरना चाहिए।।
(2) एक दृष्टांत दिया जाता है उससे हाल कुल दर्जो का जो राधास्वामी दयाल ने वर्णन किया है अच्छी तरह समझ में आ सकता है। तिल का जो दरख्त है उसके देखने से मालूम होता है कि उसकी जाहिरी सूरत स्थूल रूप में दाखिल है और अंतर में जो रस की जड़ से डाली और पत्तों तक रगों में होकर जारी रहता है वह उसका सूक्ष्म रूप है और बीज उसका कारण रूप है, और जिस वक्त की बीज को पेला यानी उसका मंथन किया तब उसके तेल प्रगट हुआ और स्थूल और कारण रुप के खोल खल रूप होकर जुदा हो गए। यह तेल तुरिया रुप है ।
जब उसका भी मंथन किया गया यानी उसको रोशन किया तब उसकी रोशनी कि लौं में यह दर्जे जाहिर होते हैं।
(१) पहले सफेद और साफ रोशनी। यह दयाल देश का रूप है और इसका जो आखिरी सिरा ऊपर की तरफ को है वह सुन्न के मुकाम से मेल रखता है या वह सुन्न के स्थान का बताने वाला है ।और बाकी सफेद रोशनी में दयाल देश की रचना के दर्जे गुप्त है।।
(२) और जहां से कि सफेदी के ऊपर सुर्खी शुरू हुई, वह त्रिकुटी का नमूना है।
( 3) और जहां से कि सुर्खी के ऊपर पीली रोशनी हरे रंग से मिली हुई शुरू हुई, वह सहसदलकमल का नमूना है
क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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