Monday, June 8, 2020

संत कबीर






*संत कवि कबीर दास के जयंती पर कबीर दास जी पर एक संक्षिप्त नजर*
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आज ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा है और खुशी की बात ये है कि इसी शुभ दिन को हिंदी साहित्य जगत के पूर्व मध्यकाल अथवा भक्तिकाल के निर्गुण धारा या ज्ञानमार्गी शाखा के प्रमुख संत कवि *कबीर दास जी* का अवतरण हुआ था।

*मैं हिंदी का एक अबोध पुत्र होने के नाते आप सभी को संत कबीरदास जी के अवतरण दिवस की अनंत शुभकामनाएँ देता हूँ।*

संत कबीर ने अपने कवित्त और पद से ना सिर्फ तथाकथित ब्राह्मण के पाखंड को वरन् मौलवियों की कुरीति का भी खंडन किया है। इस संदर्भ में उनका एक कवित्त मैं नीचे प्रस्तुत कर रहा हूँ।

*ना जाने तेरा साहिब कैसा है?*
*मुल्ला होकर बाँग जो देवै*
*क्या तेरा साहिब बहरा है?*
*कीडी पग जो नेवर बाजे*
*सो भी साहिब सुनता है।*
*माला फेरी तिलक लगाया*
*लंबी जटाता बढाता है,*
*अंतर तेरे कुफर कटारी*
*यों नहीं साहब मिलता है।*

ये कबीर साहब की बेबाकी नहीं तो और क्या? इसलिए कबीर सिर्फ किसी विशेष जाति के लिए ही पूज्यनीय नहीं वरन् संसार उनके सोच को और उनकी सीख के आगे नतमस्तक होता है।

यों तो कबीर साहब के बारे में कुछ कहना सूर्य को दीपक दिखाने जैसा है  परंतु मैं फिर भी ये धृष्टता कर रहा हूँ। आपसे इस पर क्षक्षमाप्रार्थी भी हूंँ। पर *उनकी कवित्त जैसे ही अधरों पर आती है और जवान के माध्यम से जुबानी हो जाती है और ध्वनि जैसे ही मुख से निकलकर कबीर के कवित्त की कानों में जाती है मानो ऐसा लगता है वो चित्त में बैठ गया और एक अनोखे आनंद की अनुभूति सी होने लगती है, जिसके आगे संसार का सारा सुख फीका पडने लगता है।*

कबीर जयंती के उपलक्ष्य में कुछ दोहे और कवित्त निम्न प्रस्तुत है-

*तोर हीरा हिराइल वा किचडे में।*
*कोई ढूँढे पूरब कोई ढूँढै पच्छिम,*
*कोई ढूँढै पानी पथरे में।*
*दास कबीर ये हीरा को परखैं*
*बाँध लिहलै जीयरा के अँचरे में*

*जाति न पूछो साध की, पूछ लीजिए ज्ञान।*
*मोल करो तलवार का पड़ा रहन दो म्यान।।*
*हस्ती चढिए ज्ञान को सहज दुलीचा डारि।*
*स्वान-रूप संसार है, भूँकन दे झक मारि।।*

*पानी बिच मीन प्यासी।*
*मोहिं सुन सुन आवै हाँसी।*
*घर में वस्तु नजर नहीं आवत।*
*बन बन फिरत उदासी।।*
*आतमज्ञान बिना जग झूँठा।*
*क्या मथुरा क्या कासी।।*

*मोकों कहाँ ढूँढे रे बन्दे, मैं तो तेरे पास में।*
*ना मैं देवल ना मै मसजिद ना काबे क

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