जियरे में मेरे लगन लगी, नहीं दूर मैं रहूँ ।
मच्छी ज्यों जल बिन तड़फ के, मैं जान दे दऊँ ।।टेर।।
स्वामी बिना बेहाल भई, किससे मैं कहूँ ।
बहु ताप यहाँ जग में सही, अब और ना सहूँ (१)
साकार स्वामी सतगुरू, के चरण मैं गहूँ ।
निराकार राधास्वामी के , मैं धाम में रहूँ (२)
तन मन व नश्वर धन को, मैं क़तई भी ना चहूँ ।
ध्वन्यात्मक राधास्वामी शब्द, के सँग में रहूँ (३)
धारण किया है ( प्रण) यह, बिन स्वामी मैं ना जिऊँ ।
राधास्वामी आदि नाम का, निज ज़ाम मैं पिऊँ (४)
* राधास्वामी*
राधास्वामी प्रीति वाणी -४-१६८.
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