नर क्यों टेकों में भरमाया ।
भक्ति मार्ग को स्वामी चलाया,
खोजी ही गह पाया ।।टेर।।
समय के सतगुरू जिनको भावे, वो भक्ति कर पाया ।
प्रेम अंग प्रगटाया घट में, तब ही ध्यान बन आया (१)
समय चूकने पर क्यों बौरे, नाहक मूंड पचाया ।
गया वक़्त फिर ना लौटावे, खाली हाथ रह जाया (२)
जो स्वाँसों की पूँजी बची है, सेवा में लगो जाया ।
सतगुरू को जिन प्रसन्न कीन्हा, नाम दान उन पाया (३)
जो अब भी ना चेतो प्यारे, काल शीश मँडराया ।
राधास्वामी दयाल सा हीरा पटक के, कंकर गाँठ बँधाया (४)
*राधास्वामी*
राधास्वामी प्रीति बानी -४-१८५
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