**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज
- रोजाना वाकिआत- 23 अक्टूबर 1932- रविवार-
अमृतसर से गुरुमुखी भाषा में एक किताब प्रकाशित हुई है जिसका नाम है "श्री गुरु गोविंद सिंह जी दा जानशीन कौन गुरु है"।
सिक्खों के एक गुरुमुखी अखबार------- ने उस किताब का अपनी प्रकाशन दिनांक 20 अक्टूबर 1932 में नोटिस लिया है। जिसमें जाहिर किया है कि यह किताब ब्यास व दयालबाग की संयुक्त कोशिशों का नतीजा है। और सिखों से विरोध करने के लिए ब्यास व दयालबाग बावजूद अपने सिद्धांतों में दिन रात का फर्क रखते हुए एक हो गए हैं।
खालसा जी! आप दिन में ख्वाब देख रहे हैं। दयालबाग का सिखों से कोई विरोध नहीं है और न इस पुस्तक की इशाअत से कोई वास्ता है।
आप शौक से अपने उसूलों पर कार्यरत रहे और जिसे जी चाहे गुरु तस्लीम करें। अगर कथनअनुसार आपके किसी दयालबाग से ताल्लुक रखने वाले सत्संगी भाई ने इस किताब की तैयारी में हिस्सा लिया है तो इसके यह मानी नहीं है कि कुल दयालबाग ने हिस्सा लिया। जैसे हर सिक्ख भाई अपनी जिम्मेदारी पर कोई भी काम कर सकता है। मालूम होता है कि इस किताब में कुछ ऐसी बातें दर्ज है जो आपके ख्यालात के खिलाफ है और ऐसे तरीके पर पेश हुई है आपको जवाब नहीं सूझता।।
सिखों के लिए गुरु का मामला वाकई बड़ा मुश्किल हो रहा है सिक्ख के मानी है शिष्य या चेला। बगैर गुरु के चेला वैसा ही बेमानी है जैसा बिला पिता के पुत्र या बिला खावन्द के बीवी। इसलिये सच्ची सिखी के लिए गुरु जरूर होना चाहिए । अब बाज सिक्ख खानदानों में तो पिछले गुरु साहबान की औलाद की भक्ति जारी है।
नामधारी भाई जिंदा गुरु में आस्था रखते हैं। सिंह सभा से ताल्लुक रखने वाले भाई श्री ग्रंथ साहब को मानते हैं । अगर किसी शख्स में इस विषय के मुतअल्लिक़ कोई किताब तहरीर करके अपने ख्यालात का इजहार किया तो इसमें नाराज होने की क्या बात है ?
मुनासिब यह है कि सिख लीडरान एक मुत्तहदा कॉन्फ्रेंस करें जिसमें इस मामले पर गंभीरता से विचार करके सिक्ख अवाम के लिए कोई प्रमाणित राय कायम की जावे। श्री ग्रंथ साहब ऐसी पुस्तक है जिस पर हर सिक्ख को सच्चा एतकाद है। जब तक किसी को जिंदा गुरु न मिलें उसके लिए सिवाय उस धर्म पुस्तक के दूसरा कोई सहारा नहीं हो सकता ।
इसलिये हर सिक्ख भाई के लिए जिंदा गुरु ना मिलने की सूरत में श्री ग्रंथ साहब से प्रेम करना और उसके मनोहर उपदेशों को श्रद्धा से पढ़ना व मनन करना निहायत वाजिब व दुरुस्त कार्यपद्धति है।
दयालबाग की तरफ से सिर्फ इस कदर अतिरिक्त मशवरा दिया जा सकता है कि श्री ग्रंथ साहब से प्रेम करते हुए जिंदा गुरु तलाश का सिलसिला जारी रखो। तलाश का दरवाजा बंद न करो। और यह मशवरा कोई नई बात नहीं है।
खुद श्री ग्रंथ साहब ही में इस किस्म बार बार उपदेश फरमाया गया है। अगर दयालबाग वाले राधास्वामी दयाल को अपना गुरु मानते है इसमें खालसा भाइयों का क्या हर्ज है ? और अगर सिख भाई श्री ग्रंथ साहब को या किसी और साहब को अपना गुरु मानते हैं तो इसमें दयालबाग का क्या हर्ज है? आप अपने रास्ते पर चलें हम अपने पर चलते है। नाराज होने की कोई वजह मालूम नहीं होती।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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