राधास्वामी!!
09-06-2020-
आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन
【 राधास्वामी- मत के तीन साधन】
:- कल से आगे
( 14 ) राधास्वामी -मत सिखलाता है कि जैसे जगत् की भौतिक शक्तियां केंद्र से फैल कर वृत(क्रिया क्षेत्र) में काम करती हैं इसी तरह सुरत भी अपने केंद्र से ,जो दिमाग के खास स्थान में स्थित है , चैतन्य धारों के द्वारा अपने वृत अर्थात मनुष्य - शरीर में फैल कर काम करती हैं,
और जोकि यह एक साधारण नियम है कि हर शक्ति के धार के साथ-साथ एक ध्वनि अर्थात शब्द की धार भी जारी रहती है और हर शब्द की धार में अपने भंडार के गुण मौजूद रहते हैं इसलिए चैतन्य धारों के साथ भी ऐसे चैतन्य शब्द की धार जारी रहती है
जिसमें उसके भंडार अर्थात सुरत के गुण मौजूद हैं, और जोकि सुरत का विशेष गुण प्रेम अर्थात केंद्र की ओर आकर्षण है इसलिए जिस दम किसी अभ्यासी के घट में चैतन्य शब्द प्रकट होता है उसे तत्काल प्रबल अंतरी आकर्षण का अनुभव होता है,
और जोकि इस आकर्षण का रुख सुरत के केंद्र की ओर होता है इसलिए उसके प्रभाव से अभ्यासी के मन और सुरत उस केन्द्र पर सिमट आते हैं और उसकी तवज्जुह हर तरफ से हट कर चैतन्य केंद्र पर जम जाती है।
मतलब यह है कि सुमिरन और ध्यान की सहायता से आध्यात्मिकता की उन्नति का अभिलाषी अपने मन को संसार के नामों और रुपो की तरंगों से किसी कदर आजाद कर लेता है।
उसके बाद आध्यात्मिक शक्ति के किसी कदर जाग जाने पर चैतन्य शब्द के प्रभाव से उसके मन को पूरी स्थिरता प्राप्त हो जाती है और इस प्रकार संसार से टूट और छूट कर उसके लिए संभव हो जाता है कि वह चैतन्य स्थानों की ओर कदम बढ़ावे।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ प्रकाश- भाग 1-
परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!
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