जगत पालन कर्ता भगवन विष्णु जी की साधना।
भगवान श्री विष्णु जल्दी प्रसन्न नहीं होते। पर यदि साधक में दृढ संकल्प हो , सदाचारी हो और क्षमाशील हो उन्हें भगवान विष्णु की साधना में सफलता मिल ही जाती है -इसमें कोई संदेह नहीं। इसकी सिद्धि मिल जाने पर वह भगवान् विष्णु से जुड़ जाता है और तब वह परम कल्याणकारी हो जाता है। यह साधना सिद्ध होने में आठ से बारह वर्ष लग सकते हैं।
इस साधना को शुक्ल पक्ष के दूसरी तिथि से आरम्भ करना चाहिए और साथ में यह भी देख लेना चाहिए कि कहीं वह तिथि साधक की चंद्र राशि के लिए प्रतिकूल तो नहीं है। अतः उचित तिथि का निर्धारण करा लेना चाहिए। मुहूर्त का भी खास ध्यान रखा जाना चाहिए। जिस माह के शुक्ल पक्ष की दूसरी तिथि साधक के अनुकूल हो -उस दिन से साधना करना आवश्यक होता है। बिना मुहूर्त देखे -जांच कराए बिना साधना करने पर अनेकों परीक्षाओं के दौर से गुजरना पड़ सकता है। प्रह्लाद ने भी बिना कोई मुहूर्त दिखाए बगवान विष्णु की उपासना शुरू कर दी थी। परिणाम यह हुआ कि उसे भयानक संकटों के दौर से गुजरना पड़ा था। - इस युग से साधक उतनी कठिनाइयों को झेल नहीं पाएंगे। अतः खूब अच्छी तरह मुहूर्त आदि की जांच कराने के बाद ही साधना आरम्भ करना चाहिए।
साधना-विधि - यह एक प्रत्यक्षीकरण साधना है -साधना के साथ यदि साधक ध्यान या क्रियायोग साधना भी करता है तो निश्चित बागवान विष्णु के दर्शन लाभ भी करता है।
आसान और वस्त्र - लाल , पीला और गुलाबी - या इन्हीं रगों का मिला जुआ आसन-वस्त्र।
जप-माला - संस्कारित रुद्राक्ष की माला।
तंत्र - उच्छिष्ट गणपति तंत्र और जन्मकुंडली के अनुसार आवश्यक तंत्र।
साधना का समय - इस साधना में समय का कोई निश्चित समय नहीं है। साधक खुद तय कर सकता है कि कौन सा समय उसके अनुकूल बैठता है। पर , साधक जो समय एक बार तय कर लेता है - उसी समय या उसके आस-पास के समय पर नियमित साधना करे। साधनाकाल के दौरान कहीं बाहर भी जाना पड़ जाए तो आप जहाँ भी रहें -वह अपनी साधना जारी रखे रह सकते हैं। यदि आप ट्रेन में भी बैठे हों तो भी मानसिक जप कर सकते हैं या सोये-सोये भी जप कर सकते हैं। स्थान परिवर्तन का दोष नहीं लगेगा क्यों कि आप उच्छिष्ट गणपति-तंत्र धारण किये हुए होते हैं।
साधना दिशा - पूरब या उत्तर।
साधनाकाल में घी का दीपक जलाकर करें। साधना आँखें बंद कर करें। एक माला जप के बाद आवश्यकता पड़ने पर आँखें खोल सकते हैं। उसके बाद पुनः आँखें बंद कर साधना जारी रख सकते हैं।
मूल-मन्त्र है - गणेश जी का ध्यान करने के बाद अब मूल मंत्र का जप करें -
पंद्रह माला नित्य करें पंद्रह दिन तक। उसके बाद दशांश हवन करें। फिर अगले माह से शुक्ल पक्ष की दूसरी तिथि से साधना करें और यह सिलसिला आठ वर्षों तक होना चाहिए।
दशांश हवन -
हवन की लकड़ी - आम की लकड़ी , नौ ग्रह की लकड़ी और खैर लकड़ी।
हवन कुंड - 10 कोनों वाला। यदि कठिनाई तो 5 कोण वाला।
हवन सामग्री - जौ , काले तिल , गुड़ , शहद , घी , पके केले , तुलसी पत्र और अंतिम आहुति में एक सूखा खड़ा नारियल लाल वस्त्र में लपेट कर पान-पत्ते और पांच सुपारी के साथ आहुति दें।
तर्पण और मार्जन - दूध , पानी , तुलसी-पत्र , मिश्री और शहद के मिश्रण से करें।
ध्यान करें - जो साधक ध्यान करना चाहें तो ध्यान में बैठने से पहले सामने किसी पात्र या केले के पत्ते पर थोड़ा मिश्री तुलसी पत्र रख लें। भगवान विष्णु को भोग लगाने जैसा उपक्रम करें उसके बाद आप इच्छित समय तक ध्यान करें। ध्यान करने के बाद जो आपने भोग लगाया था उसे आप स्वयं खा लें।
इस साधना से पूरा जगत और प्रकृति भी साधक के अनुकूल हो जाता है।
इस साधना में गुरु-दीक्षा , ध्यान दीक्षा और साधना दीक्षा होना आवश्यक समझा जाता है।
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