स्वामी से जो मिला है अपने ही घट में ।
बाहर जो भटकते माया बट में ।।
पत्थर और पानी का सामान सब जगह बना ।
उलट के लाना श्रुत तिल पट में ।।
समय के सतगुरु से लेना है रास्ता ।
साथ तोहिं देंगे वे निज घट में ।।
राधास्वामी परवाना ले राह जब चलोगे।
स्वामी मिलेंगे तोहिं निज मठ में (६)
स्वामी ने भेजा है सतगुरू अवतार को ।
सुरतों का धोने सब मैल भारा ।।
मन का संग कर मैली सब हो गई ।
बिना सतगुरू कैसे जावे पारा ।।
सतसंग उनके लगे मान मन के तजे ।
वही लौटेगी सुरत धारा ।।
राधास्वामी गावेगी पार वही जावेगी ।
हो जावेगा उसी का सत्त उद्धारा (७)
राधास्वामी छन्द बन्द-रेखते
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