श्मशान बन गई थी तैमूर की दिल्ली
यदि कोई व्यक्ति यह प्रश्न करे कि दिल्ली के इतिहास में सबसे बुरे वे कौन से दिन थे, जिनमें भारत की यह पुरानी राजधानी अपनी तबाही, बर्बादी, हत्या, लूटमार, बलात्कार, आगजनी और भयंकर सर्वनाश से चीत्कार उठी तो वह तैमूर लंग का समय था।
तैमूरलंग (1336-1405) संसार के क्रूरतम विजेताओं में से था। वह चंगेज खां का वंशज था। उसका पिता अपने कबीले का सरदार था। वह पहला व्यक्ति था जिसका कबीला इस्लाम में धर्मान्तरित हुआ था।
वर्ष 1398 में तैमूर ने भारत पर आक्रमण कर दिया और झेलम-रावी नदियों को पार करता हुआ मुल्तान, दियालपुर, पाकपटन, भटनेर, सिरसा और कैथल को लूटता हुआ दिल्ली पहुंचा। यहाँ हौज खास के पास उसने अपने डेरे डाले और सफदरजंग के मकबरे के पास लड़ाई हुई।
दिल्ली के तुगलक सुल्तान महमूद तुगलक की सेना को हराकर यह 18 दिसंबर 1398 को दिल्ली के अंदर घुस गया और 15 दिन दिल्ली में रहा। महमूद डरकर उस समय गुजरात भाग गया। एक तरह से, तैमूरलंग के आक्रमण का सामना तुगलक सुल्तान ने नहीं दिल्ली की जनता ने किया।
इस बीच तैमूर की सेना ने कई दिनों तक दिल्ली को लूटा और कत्लेआम के बाद एक लाख लोगों को कैदी बना लिया। दिल्ली के सुल्तान से मुठभेड़ में जब उसे सैनिकों की कमी पड़ी तो उसने कैदियों की रखवाली में लगे अपने सैनिकों को बुला लिया और उन एक लाख कैदियों की हत्या करवा दी। चांदनी चौक में वर्तमान दरीबा कलां बाजार का प्रवेश द्वार तैमूरलंग के इसी कत्लेआम के कारण ही खूनी दरवाजा के नाम से मशहूर हुआ।
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