Sunday, June 14, 2020

रोजाना वाक्यात /






परम गुरु हजूर साहबजी महाराज

 रोजाना वाकयात - 30 ,31 अक्टूबर 1932- रविवार व सोमवार:-


 अक्टूबर का महीना जैसे-तैसे खत्म हो गया।  ज्यादातर वक्त चारपाई पर गुजरा। मगर आज मालूम होता है कि अब मौसम बदलने लगा है । संतों ने जिस्म को तंबूरे से उपमा दी है।  जैसे कोई तार बिगड़ जाने पर तंबूरा बेकार हो जाता है ऐसे ही जिस्म का कोई तार बिगड़ जाने पर जिस्म बेकार हो जाता है। आप हजार ख्याल उठायें, इरादें करें, एक पेश नहीं जाती।  ऐसे मौके पर दुनियादार कहते हैं कि बीमारी ने निकम्मा कर दिया है और परमार्थी कहते हैं कि मालिक की मौज खामोश बिठलाने की है।

पहली सूरत में निराशा पैदा होती है दूसरी में शांति ।पहली सूरत में इंसान हकीमों डॉक्टरों की शरण लेता है दूसरी सूरत में मालिक की । वक्त आने पर तार दुरुस्त हो जाता है और सब का सब कारखाना बदस्तूर यथावत चलने लग जाता है। दुनियादार हकीमों डॉक्टरों का शुकराना अदा करता है परमार्थी मालिक के कदमों में सर झुकाता है।


यह जिक्र मामूली दुनियादार व परमार्थीती का है । बढ का दुनियादार बेबसी की हालत देखकर हद दर्जे के हाय तौबा मचाता है और बढ का प्रमार्थी खामोश व राजी व मौज पर निर्भर रहता है ।।         


अपनी बेबसी का तजुर्बा भी इंसान के लिए एक अजीब नेमत है । मामूली तौर पर इंसान ठोकरें खाता है । लेकिन जब किसी ना किसी का सहारा पाकर धीरज धर लेता है। लेकिन जब सब तरफ से मायूसी हो जाती है और मालूम होता है कि अब कश्ती पानी में डूबने जा रही है उस वक्त उसके दिल में सच्ची दीनता का इजहार होता है ।


अहंकार दिल से दम के दम ऐसे उडू हो जाता है जैसे आग लगने से पेट्रोल । सच्ची दीनता आने पर इंसान से मालिक की याद बन पड़ती है और मालिक की सच्ची याद का जो लुत्फ है उसका मुकाबला दुनिया की कोई भी नेमत नहीं कर सकती।।                                             


राधास्वामी दयाल की शरन लेने पर छोटा से छोटा सत्संगी इन सब हालतों के तजरूबे हासिल होते हैं और जिनका का तार अंतर में जुड़ा है उनके लिए यह सब हालते महज संसार के तमाशे की हैसियत रखती है क्योंकि वह बखूबी जानता है कि- बहरेआलम(भवसागर) की जितनी मौजें- सभी को जाने खुदा की रहमत(कृपा) कि जल्द साहिल पे पहुँचो तुम जा-घडी में कुछ है घडी में कुछ है। 

                             

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

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