Tuesday, June 16, 2020

चीन को समझना भी जरूरी है / आलोक कुमार






आईए चीन को समझें....

चीन रहस्यमयी है। हमारी तरह ही पुरानी सभ्यता वाला। उसे डिकोट करना कठिन है। लद्दाख की घटना ने उसमें रुचि बढा दी है। कोरोना का फुर्सत है,तो इस जटिल पहेली को समझने की कोशिश कर रहा हूं।

आईए शुरुआती फाइडिंग से अवगत कराता हूं। मंदारिन वहां की भाषा और लिपि है। उसे सिखना और समझना आसान नहीं। फिर भी दिलचस्प है। इसे दुनिया की सबसे बड़ी आबादी बोलती है। नेपाल की केपी शर्मा ओली की सरकार ने बच्चों के लिए स्कूली पाठ्यक्रम में मंदारिन पढना अनिवार्य करने का फैसला लिया है। लेकिन मुझ जैसों को इसे पढ लेना फिलहाल नाको चने चबाना है। अंग्रेजी-हिंदी में चीन पर लिखी जानकारियों से ही समझने की कोशिश जारी है। संभव है,जब नेपाली मित्र सिख लेंगे, तो हमारी भी आगे  मंदारिन के अ ब ट आने लगे। नेपाल में पत्रकारिता के कुछ अच्छे दिन बिताए हैें। इसी संदर्भ में मित्रों की बात कह रहा हूं।

जितना समझा। जितना जाना। उसके मुताबिक चीन की मीडिया सरकार के अधीन है। सरकार से जिस खबर की और जितनी मात्रा में अनुमति होती है। अखबार या टीवी में वहीं छपते और दिखते है। वहां साम्यवादियों या काम्युनिस्ट का सूचना पर कड़ा पहरा है। काम्युनिस्ट व्यवस्था की सरकार है।
 सोवियत रुस समर्थित माओत्से तुंग के नेतृत्व वाली  पीपल्स लिबरेशन आर्मी की लाल क्रांति की। तब वहां सुन् यात-सेन की सरकार थी। उन्होंने चीन को गणराज्य का रुप दिया था। वहां साम्यवाद सरकार है। गांव-गांव, शहर-शहर, डगर-डगर पर साम्यवादी कैडर हैं। साम्यवादी व्यवस्था में कैडरों से चुनकर आए नेता ही शहर- प्रांत- निकाय प्रमुख बनते हैं। उनके बीच से ही सेना प्रमुख आदि आते हैं। सुगठित व्यवस्था से वह दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। लेकिन साम्यवाद और बाजारवाद के सम्मिश्रण ने वहां की आबादी में कई फाल्टलाइन डेवलप किया है। उनपर महाशक्ति अमेरिका की नजर है।

1978 में वहां खुली आर्थिक नीति लागू हुई। चीन की अर्थव्यवस्था का आकार तबतक हमारे ही बराबर था। खुली नीति वाली अर्थव्यवस्था की उछाल से उसने अपने प्रांतो को स्वावलंबी बनाया है। जीडीपी को ठीक किया है। साम्यवादियों में से ही उद्यमी निकले हैं। साधन संपन्न लोगों की फौज तैयार हुई है। सेना की टुकडियों और नायकों को व्यवस्थित तरीके से उद्यमिता में लगाया गया है।

  कोरोना को लेकर अमेरिका आज जिस चीन पर चिंघाड रहा है, उसने अमेरिका की अंगुली थामकर ही ताकत हासिल की है। अस्सी के दशक में प्रतिद्वंदी सोवियत रुस को ठिकाने लगाने के लिए अमेरिका ने  चीन को पटाया। पड़ोसी के अमेरिकी खेमे में जाने से सोवियत संघ के नायक तिलमिलाकर रह गए। बाद में यह सोवियत रुस से साम्यवाद के पतन का कारण बना।

अमेरिका से दोस्ती का हाथ राष्ट्रपति डांग शिआयोपिंग ने थामा था। उन्हें आज के चीन का जनक कहा जाता है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद द्विध्रुवीय व्यवस्था में चीन का घुलटकर साथ आ जाना अमेरिका की बड़ी कामयाबी थी। उदारवादी डांग शिआयोपिंग का रुख  यह साम्यवादी क्रांति लाने वाले माओत्से तुंग की नीतियों के उलट था। वह अमेरिका के साथ आने पर इस शर्त के साथ राजी हुए थे कि उनके आर्थिक साझेदारों को चीन की आंतरिक साम्यवादी व्यवस्था को बदलने के लिए कोई दबाव नहीं देंगे। काम्युनिस्ट पार्टी और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के बुर्जुआ नेता इस शर्त की वजह से ही खुली आर्थिक नीति के लिए राजी हुए थे।

राजनयिक हल्कों में चीन का गैरभरोसेमंद व्यवहार चर्चित है। मसलन पहली अप्रैल 1950 को चीन को मान्यता देने वाला भारत पहला गैर काम्युनिस्ट देश बना था। 1962 में भारत पर आक्रमण कर उसने इसका बदला लिया। बीते अक्टूबर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तमिलनाडु के ममल्लापुरम में चीन के राष्ट्रपति शी जिंगपिन का आवोभगत कर रहे थे। राष्ट्रपति शीं एतिहासिक कलाकृतियों के साथ मुस्कुराते हुए जब तस्वीर खिंचवा रहे थे, तब पीपुल्स आर्मी हमारे लद्दाख के नो मैंस लैंड पर घुसपैठ की व्यूहरचना कर रही थी। उनको हमारे 370 धारा हटाने औऱ लद्दाख को अलग राज्य बनाने की भनक लग चुकी थी। मुंह में राम बगल में छुरी वाली चीन की यह नीति सिर्फ हमारे साथ ही नहीं बल्कि उसके अन्य पड़ोसियों के साथ भी है।

कोरोना को लेकर विश्व समुदाय में उसकी उलट नीति की पोल खुली है। चीन को खड़ा करने वाले अमेरिका उसके खिलाफ तना है। चुनाव काल में फंसे राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंफ ने चीन की बदनियति को ही प्रमुख एजेंडा बना लिया है। लोगों के बीच जाकर चीन के खिलाफ कड़े कदम उठाने का ऐलान कर रहे हैं। चीन में फंसे यूरोपीय और अमेरिकी निवेशक नए विकल्प की तलाश में है। पड़ोसी दक्षिण कोरिया,वियतनाम, ताइवान, हांगकांग, जापान पहले से दुनिया को चीन के रवैए के प्रति कहते रहे हैं। अब जब खुद पर पड़ी है, तो महाशक्ति को समझ आया है।

                                  (जारी..)

No comments:

Post a Comment

बधाई है बधाई / स्वामी प्यारी कौड़ा

  बधाई है बधाई ,बधाई है बधाई।  परमपिता और रानी मां के   शुभ विवाह की है बधाई। सारी संगत नाच रही है,  सब मिलजुल कर दे रहे बधाई।  परम मंगलमय घ...